पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३८९

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३४६ जीव-नौवाखामो १०न या अनेकान्तवादियों का पारिभाषिक जीवशः। नक्षत्र । (जोति०१८महानिम्बरक्ष, यकायनका पेठ ! स्तिकाय पदार्थभेद। यह दो प्रकारका है-एक मुना । (मानक पू) और दूसरा यह यात्म मारो। सो कम पावरगोपि मोव-हिन्दी एक कवि। ये लगभग १०५० सम्म विमुक्त हैं जिनको जन्म जरा मृत्य का दुःख नहीं और विद्यमान थे। जिनके पासय पन्धके कारणरूप मन बचन-कायको किया जीवक (म'• पु०) जोयाति प्रारोग्यं करोति जोय. . नट हो गई है, ऐसे कालिक वा देवलज्ञानके धारक णिच् ख ल । १ जीवन, पष्टवान्तगत पौषधिगेप. परम मिहोंको मुक्त जोव कहते हैं। और जो सर्वदा। एक जड़ो या पोथा। इन मस्कृत पर्याय-चंगोप, .. मोह आदि आचरणोंमे दूपित ही कर निरन्तर जम्म जरा मधुरक, शृङ्ग, इस्वाग, जीवन, दोर्चायु, प्राणद, जोय, मृत्य के दुःवमे दुःखित है तथा जिनके सयंदा कर्मों का भृङ्गाह, प्रिय, चिरजीवी, मधुर, मनस्य, कूर्चगोषक, पासव, बन्ध गादि होता रहता है, उनको १६ अर्थात् | सद्धिद, प्रायुगान्, जोबद और बलद। एमके गुम या मसारी जीव कहते हैं। जीवारमा देखो। मधुर, शीतल तथा रक्तपित्त, वायुरोग, क्षय. दाइ पोर .. ११ उपाधिप्रविष्ट ब्रम्म अर्थात् वाक -मन-अन्त:करण । ज्वरनाशक ( राजनि०) बन्नकारक, छगता पोर मात. समूह के मध्य अनुपविष्ट ब्रहा के वाकान अन्तःकरण प्रादि नागक है। इसके मेवनमे जीवनको सहि होतो है, म. द भौतर सूक्ष्मभावने प्रविष्ट होने पर वह जीवपदवाच्य लिए एमको जीयक कहते हैं। जीयक फन्द या कूर्च- होता है। शोध को जातिका ऋषभ कसे शोटा है और इसके मस्तक १२ घटायच्छिम श्राकाशको भौतिका शरोरवयाव- से कूर्चाकार शोर्ष (जैसा कि नारियन आदि के पेड़की विश्व चैतन्य । भूत माल्टिज और लिङ्ग इन तोनी । 'दोटी पर निकला हुआ रहता है ) निकलता है। जीपक का नाम जोव है। प्राकागशरीर बहत बड़ा है. पर और पम दोनों ही एक जाति तथा दोनों का ही कर . घटावच्छिय घटप्रविष्ट होने पर वह घटके बराबर हो| | प्रानको भांतिका होता है। उनके पत्ते बाप्त पारोक. .' जाता है, उसी तरह बहा शरोरवयम रहते ममय जोय होते है पर जोवक का शीर्ष का कार (धोके करतात है। जिम प्रकार घट टूट जाने से घटाकाश प्राकारका ) और पभका गोपं बैन के मोंगके समान महाकाम विलोन हो जाता है, उमो तरह इम शरीर- होता है । इममे मास्तम होता है कि, Caplatus नामक वयक नट.हने पर जीव भी ब्राह्म में लोन हो जाता है। एक प्रकारका कंटोला मौंगको आक्षतिका हम है, जो . १३ दर्पणस्थित गाल के प्रतिविम्पको भौति बुद्धिस्थित देखनेमें गोल उगतो नसा लगता है, इममे पत्तियां - चैतन्य प्रतिषिम्य दुडि और चैतन्य जब प्रतिविम्बित होता नहीं होती। इमो चारो तरफ लम्बी लम्बी धारिया है, तभी यह जोधके नामसे पुकारा जाता है। . होती हैं। २पोत मालहक्ष । ( गायप्र०) ३ सयणक, दिगम्बर १४ प्राणादि कालका धारशिता । जितने दिन प्राण (जैन) मुनि । ४ अपितुगिहा, म पड़ा। ५ दिनीयो. रहे, सतने दिन उसको जीव कहा जा सकता है। व्याज ले कर जौयिका निर्वाह करनेयाला, मृदवार । ___(मायत) ६ मेवक । ७ प्राणधार, प्रानको धारण करनेवाला १५ निन्देह । (भागवत ) पञ्चतन्मात्र-गब्द, स्पर्ग जैन राजा मत्यन्धरके पुत्र । जोनन्धरस्वामी देसा। .. रूप, रम, गन्ध, गुण-तत्त्व, रज, तम, पोड़ग यिनि-जोयग्रम ( प.) जीयत पम्या में ग्रहण, जोतनाम एकादश प्रन्द्रिय और परभूत इन चीजोम तत्वों के साथ पकड़ना। युक्त होने पर भीषपदवाण होता है। हम जोवना परि-जीयगोस्खामो-गोड़ोय वंणय सम्प्रदाय के छह गोम्यामि माण पेशाग्र के गहन भागका एक भाग है। योमि एस । यदिग्दर्शनीमें इनके नाम पादिका १६ विग। (भारत १३.१५५१६८) १० , पनेपा । समय इस प्रकार निवारे- . . . . . .