पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१३

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मौवन्धन-जीयोत्पत्तिवाद : जोवेशन ( म सो०) नोवरून मधन रूरक कर्मधार । एष भागवनमतावलम्बियों का यह मा निराकरतोय . जोयरुप काठ। नहीं है। कोशि परमात्मा एक प्रकार पोर व जविंग (म पु०) परमात्मा, ईश्वर । प्रकार होते हैं। "स एप्पा या मिया भवति" (बुध) . जोवेटि (म. पो. ) जोयोगिका पष्टिः । वृहस्पतिमात्र, इत्यादि श्रुति परमात्माको बहुभायसे पपस्थित कहा घर या जो गृहस्पति के लिए किया जाता है। गया है। निरन्तर पनन्यचित्त हो कर पभिगमनादिका जोधोत्पम्विाद (म'. पु०) जोवस्य महापंगाभिधस्य | याराधनामें तत्पर होना चाहिये। पसले मसगे यह । उत्पत्ती सत्पत्तिविषये वादः प्रतिवादः ६-तत् । जोधको अंश भी निपिद नहीं है। पोंकि रिपोर स्मृति उत्पत्ति के विषयका प्रतिवाट । पञ्चगन पाटि वैरण्य | दोनों गाम्सों में ईश्वरप्रणिधानका विधान है। इसलिए ग्रन्त्र जोयको उत्पत्तिका विषय इम प्रकार लिजा पञ्चरात्र मत पविरुद्ध है, न कि श्रुतिविरुद। है। भगवनों का कहना है कि, भगवान् वामदेव एक उन लोगों का कहना है कि, पामुदेवमे गाण की.. हो हैं, वे निरन्जन पोर जानवपुः है तथा वही परमार्थ- महामे प्रद्य नको और प्रद्य नमे पनिकहको तापशि . तत्व हैं। अपनेको चार प्रकारों में विभाग कर विराजा होती है। दूरा · निराकरणके लिये भारोरक... मान हैं और इन चार प्रका में विमल करके हो जीवाको भाष्यकारने वच्चमाण प्रमाणको अयतारणा को है। उत्पत्ति को है। जोव यदि उत्पत्तिमान ही हो, तो उसमें घनित्य व पादि । . __ वासदेवव्यह, सरपंणव्य कप्रा नथ हपौर पनि- दीप भी रहेंगे, पोंकि संमारमें जितने भो पदार्थ उत्पन्न माय ने चार प्रकारके व्युह उन्होंके स्वरूप है। होते हैं ये सब हो अनित्य हैं। उत्पत्ति गोन पदार्य वासदेषका टूमरा नाम परमात्मा. मर्पणका दमरा । प्रनित्य के मिया नित्य नहीं हो सकते। जोय पनित्य नाम जीर, प्रद्य त्रका टूमरा नाम मन और अनिसहका पर्थात् नखरखभायो होने पर उमको भगवत्:माहिरूप अन्य नाम अधार है। एन चार प्रकार के व्य होम यास। मोक्ष होना सम्भव नहीं; क्योकि कारण विनागमे देयव्य ह ही पराप्रति अर्थात् मूलकारण है, मासदेव. कार्य का विनाश अवश्यम्भावी है। ध्य एमे समस्त जीवात्रो उत्पत्ति हुई है। उनमे मपण पारमा आकाश यादिको तरह उत्पय पदार्य नहीं पादि उत्स हुए हैं। इमलिए या उस पराप्रकृतिका है। क्योंकि यूनिके उत्पत्ति प्रकरणमें प्रात्मा को उत्पत्ति । कार्य है । जोन दीर्घ काल पर्यन्त अभिगमन, उपादान, निति नहीं हुई है। वरन् मज जन्मरहित इत्यादि ज्या, स्वाध्याय पौर योगमाधनमें रत रतो निष्पाप वापयामे उमकी नित्यता हो यर्णित हुई है। इन्ट्रिय होता है पीछे पापरक्षित हो कर पराप्रकृति भगवान् गुप्त शरीरमें अध्यक्ष और कर्मफलभोहन जोब नाम . वासुदेवको माग सोता है। "वासुदेव नामक परमात्मागे पामा है। यह प्राकागादिकी तरह बन मे उपय मर्पण मजक नोयको उत्पत्ति"-भागयतका यह या बाधको भांति मिय है, ऐमा संगय को मकता है। मत मारोरिक सूबभायमे खण्डित हुया है। भगवा किसी किसो ऐतिने अग्निस्फ निङ्गका शान्त दे कर का यह कहना है कि नारायण प्रकृति के बाद, परमात्मा कहा है कि, जोवारमा परवानसे उत्पन होता है. और मामगे प्रमिल है और सर्वारमा है, गृतिविरुद्ध नहीं किमो किमो युतिमें यह लिया है कि, अयिकत परमान. और यह भी अतिविरुष नहो कि, वे स्वयं पनेक | की खगर भरोरम प्रविष्ट हो कर जोवको भाति विरा. प्रकारमे या व्य ह (समूह) रूपमे विराजित है। प्रत. जित है। संशय होने पर उममें पूर्वपम मिलता है.. अभिगमन थर्यात् तद्वगतमा भोर मनायन कायमें जोष भो उत्पय होता है; म पनका पोप प्रमाण भगवदहमें जाना भादि सरदान अर्थात् पूमा सामग्री गुल्या प्रमाणका बाधक नहीं है। मारण या मागोमन । यासीन पूना या भादि । थापाय अर्थात् ५ दिने एज विहानसे सविमान प्रति दी भात बारादि मन्त्रीका मप । योग भर्षान पान भादि।। है, एकसे माननेसे सो जाना नाता है। जीपमा