पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१५

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जोवात्पतिवाद प्रोपाधिक प्रर्यात् भगेराटि उपाधि निबन्धन है। उपाधि हैं। वे मभो इंग्खर है, सभी सानगहि पोर ऐपगार को दम्पत्तिमे उपहितको : उपाधियुक्त देहादि उपहित युता बन्न, वोर्य और तेजामम्पन है, सभी वासदेव निर. प्रामाको ) उत्पत्ति और उपाधिक विनागसे उपहितका धिष्ठित और निरपद्य है । इमलिए उनके विषयों पिनाग कहा जाता है। उपाधि विनागमे विशेष. उत्पत्तिसमाव दोप नहीं है। दम पभिप्रायके प्रति " विज्ञान विनष्ट होता है, यह युति प्रमाणमे प्रमाणित कहा जाता है कि, उनका उस अभिप्रायके होने पर हुना है। विजानधन केवल विज्ञान न ममम्त भूतोंमे ! भी उत्पत्ति मम्भव दोप निर्धारित नहीं होता, प्रयोग उसिम हो कर फिर उन्हों भूतों के विनाशमे विनष्ट होता यह दोष अन्य प्रकार प्राता है। उसका प्रकार ऐ7 - ६ और उपाधि घिनाग कोनेमे मजा अत् विशेष है- महापा, प्रद्युम्न पोर पनिका ये परस्पर भिव.. विज्ञानका विनाश होता है। यह मिनाग उपाधिका एकात्मक नहीं, फिर भी सब समधर्मो पोर गा .' विनाग है, अामाका विनाश नहीं। इमका भी इम यह अर्थ अभिमत होने पर घनेक ईपर घोकार . यति प्रमाणने निराकरण हुमा है। "भगवन् ! पारमा करना हुआ। किन्तु अनेक पंजर स्वीकार करना विज्ञानधन केवल विज्ञान है, फिर भी संना नहीं रहतो. निष्प्रयोजन है। क्योंकि एक सरके माननेसे ही डर प्रापको यह बात में स्पष्ट रूपमे नहीं ममझा मका हूं।" मिहि हो मकतो है । भगवान् वासुदेय एक है प्रयोस् इम उत्तरमै ऋपिने कहा-"मैंने भ्रमकी बात नहीं अदितीय पोर परमार्य तत्त्व है, ऐमी प्रतिभा होने में कही है। पात्मा पविनाशी है, पात्माका उच्छेद और सिद्धान्तहानिदोप भी लगता है। परिणाम नही होता। हां, उमके माय माया पर्थात् ये चार व्य । भगवान् ही है और ये ममी समधर्मो विषयका मम्बन्ध होता है। विण्यमे मम्बन्ध होने के है, ऐसा होने पर भी उत्पत्ति-मामय दोष शोका यों ममय विषयरूपो और विषयमै विद होते ही वह केवल रहता है। क्योंकि प्रसिगय (छोटा बड़ा, तरसम) हो जाती है।" अविकत ब्रह्म ही शरीर मम्बममे जोर । रमनेसे वासुदेवमे सर्दणको, माइप से मप्रको ६६ यह स्वीकार करने पर भी एका विज्ञानमें सर्वविज्ञान और प्रद्युम्नसे प्रनिरुदको उत्पत्ति नहीं हो मानो। को प्रतिभा नष्ट नहीं होती। उपाधिके कारण लक्षण| कार्यकारणके मध्य पतिगयका रहना नियगित । प्रभेद हुमा है अर्थात् ब्रह्मरक्षण एक प्रकारका है और जैसे - मिट्टो और घड़ा। पतिपय मिना रहे फोनमा जीवन सा पना प्रकारका है। प्रम महजही अनुमान | कार्य है और कौनमा कारण है, मका निणय नमा किया जा सकता है कि, पारमाको उत्पत्ति नहीं होती। हो सकता। और भी देखिये, पञ्चराव-मिहान्तो यामु पूर्याश भागवतीको जो कल्पना घो, उसके प्रति और भी। देवाटिमें जानादि तारतम्यकन भेटको नहीं मानते। बहुत हेरा दिये गये हैं। वास्तवमें वे घ्य चतुष्टयको पविशेषतया यासुदेव न च कर्तृः काण" ( सा० . ) ममझते हैं। भगवानके व्य । (भिव मस्थान) या नौकमें देवदासादिक होते हुए दावादि करणचसामन्याम हो पर्याप्त हुए हैं। ऐसा नहीं है। प्रधाद यो ( किया गिप्पादया पदार्य यो) उत्पत्ति इटिगोचर म्तम्ब पर्यन्त (सम्व - Zणगुच्छ) मम्प, अगत् ही नहीं होती। फिर भी भागयतगण वर्णन करते हैं कि भगवद । यह श्रुति, स्मृति पाटि मध धर्मशागी यण नामक पत्ती जोव मधन नामक कमा मन का मत है। भागवत के गाम्नमें गुणगुणिमाय धादि उपय करता है और एम यम्मा प्रदानः मन ) में पनेक प्रकारको विरुड कम्पनाए । खुद भी गुरु । पनिका (महार) को आपत्ति होतो भागवत और सही गुणी, यह प्रयव्य की गिरुध । मागयत . को एमासको पिना घटामा मान लेना किमौके लिए.गण करते हैं कि, जानति. ऐनयंगलि घता बोय. मो मगन नी । भागयतका ऐमा पभिमाय भोको ..निधिष्टित मा अनिल, अर्थात प्रत सत्र मकता कि. टम मायण पादि जोयमायान्वित नी नी । निरषय मर्यान् नारहित । मदीप गादि 1ि.. - - -