पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५०९

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४५८ बनधर्म . में स्पादि गुणोमे मिरलर परिगमन होने दालेको पच प्रोगयुग है। यह गर्म द्रष्य पपने मकर म.. कधी पोर मनकामी पपर नाम पग्माण | सोने कारण निन्य गतिशिया परिपत और प्रयंक परमाए, परकोण माकाग्युत, एक प्रदेगायगाहो. एवं पुनको उक्षसोम माया सोने कारणभूत म्यागादि गुण युत पोर पाठ (मिमा पठन और किमोमे उत्पय नहीं पा. मनिए पाहा । मई ) | या पत्वमा मूक्ष्म होनेमे पाला, | जिम प्रकार अनप गमन ग करता पानयादारी पान्ममध्य पीर पारमाना , नया इन्द्रियमि पगोघर को चगर्न प्रेरक न होता एपा मी पपनी रामे पोर पविभागो । मध-जी या ममा के कारण ग्राण | गमन करनेवाले ममा पादिलानर कीया गम - गिपर पाटि शापारको माहो, उमे कन्ध करते / उदामोन महकारी कारणमाय है, उसी प्रकार धर्मद्रय . हैं। यद्यवि दाणुफ पादि सभा में ग्रहण निवेषण मो स्वयं गमन न करता पापौर पर गमनाने प्रक्ष । पादि म्यापार नहीं जो मसता, तयावि दिययात् मे | न होता एपा म्रय गमन करते हुये जो चोर पानोहो गमगक्रियाधिस ( बैठी हुई ) गायको "गो' कहते हैं, दामोन पयिनाभूम मरकारो माय है। तात्पर्य यर उमो प्रकार दाएक भादि कम्य ग्राण निक्षेपणादि | कि, जीव और पुदलद्रग्रमो किया जो महायको. व्यापारवान् न होने पर भी जम करनाते हैं। गम्द, 1 यह धर्म द्रव्य है। मन, मोमा पादि पर्याय मान्धीको तीन जिम प्रकार धर्म या जीय पोर पुनीको माने पाणुको। पुमन गप्दयो नियति जैनापानि रम प्रकार | महायक है, उमी प्रकार अधर्मद्रया के प्रयानमें को है-"पूण्यमित गनयनीति पुनाः पर्थात् जो पुरे | सहकारी। जैसे प्रथिनी प्रय' पनि हो मिहिर ... पोर गले, उमको पुरन रात । य प पुहन्न । र पीर की म्यितिम प्ररकरुपनी किन्न . भए, घोर कन्ध इन दोनों भेदों में प्यापक । पर्यात् । स्थितिरुपम परिणत ए पग पादिको उदागीन परिमा परमाण फन्म मिली पोर शुदै पोतस, इसलिए भूत मइकारी कारण माव , उमो प्रकार पधर्म द्रय उममें पुरण पोर गनन दोनों धर्म मौजद है। कश्च | भी स्वयं पहले होमे स्यितिरूपं परके म्यि तिपरिणाम पनिका पुनका एक समुह, प्रतः पुरनाम पभित्र प्रेरक न होता पा भी अयमेव स्थितिरपी पयरित .. नेमे छ ममें मो पुल गदा यहार होता है। । सीव पीर, पुदन!को महमारी कारणमाय ।। . . भर Aristधर्म घोर पधर्म सदमे यहां.. यहाँ यह कहना पावयास कि. जिम प्रकार . पाप पोर पुण्य नी ममममा मारिये। परन्तु यहां गतिपरिणामयुत्य पवन ध्वजा गसिपरिणामका गुकता धर्म और पधर्म गन्द व्यवाचक है न कि गुपयांव।।१, उम प्रकार धर्मद्रयमें गति-तत्व म ममझना पाये। पुल पोर पाप पा.मा परिणाम विव, पाजी. कार धर्म वा निकाय होनेमे गतिरूपम परिणमन जीवोंको ममर दुःपमे मुख कर, म धर्म पर जो नहीं करता: पोर जा सय गतिति पर दुमो मझे विपरीत कार्य को, यर धर्म" ऐमी पधं भी गतिपरिणामका सकता नहीं हो सकता। . धर्ममा यह गाना चाहिये। यह पर धर्म पर धर्म / सिर्फ 'मयको जनकी भांसिसीय भोर पुरम गोम मदोदो पोतम मार पाच ये दोनों को छदामीन महकारी मारा सी प्रचार अधर्मद्रमाको तिम ननको मामि' मम्प मोक (वि): भी निकाय पोर शोय पोर पानीको शितिम पदामीन मान पत्याने धर्मध्यका पर प्रशा कारणमाय ममझना चाहिये। मिला- - पाकागंद्रया-जो जीय पोर पुरम पारि मम्मक पमासिशय या धर्मद्रापार पर्ग, रम, गध, य पदार्याको गुगपत् पयकाm वा स्याग देता . हमे पोर माद मरीरिप पर प्रमंसिर, गमत/पाकागल्या हायर पाकामद्रया मा पानी ... मोकार या me, विस्थान पोर पमन्य पाएर पोर एक यायपि ममतपस्या