पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नधर्म. धर्म मम्यग्दर्गन, मम्यमान और मम्यक्चारित्र-रूप प्रकार ही है, अन्य प्रकार नहीं है, इस प्रकार अन . है। देव-राग परहित वीतराग, मर्वज (भूत, भविष्य | मार्ग में ग्वन के पानी · तलवारको पाव )के ममाम नियल .. और वर्तमानका ज्ञाता ) और भागमका ईश्वर (मनको यहाको नि:शहिताना कहते हैं। म पन होने हितका उपदेश देनेवाला) ही यथार्थ देव है वही मशकथित तमें किमो प्रकारका सन्देश नही' पाम है, वही ईश्वर है, यही परमात्मा है। देव यही है रहता । ॐनगास्त्रों में रम भङ्गाको पूर्ण रीतिमे पाननेवाले जिमके सुधा, पा, वुढ़ापा, रोग, जन्म. मरण. भय, | अन्ननचीरका नाम ममित है। . .. गव, राग, हेप, मह, चिन्ता मद परति, खेद; खद. 'रय नि:कांक्षित मङ्ग-जो कमीक वश हैं. या निद्रा और प्राशयं न हो। देव वही है जो उत्कट | महित है, जिसका उदय दुःखोंसे युक्त है चोर जो ज्योतियुप्ता ( केवलज्ञानयुक्त ) हो, रागरहित हो, कम पापकी योजभूत है. ऐसे सामारिक सुख में पनिवरुप मन (चार घातिया-कर्म) रहित हो. कृतकृत्य हो, मर्यज यहा रमुना अर्थात् मांमारिक सुग्नुको वाञ्छा नहीं हो, प्रादि-मध्य-अनन्त रहित हो और ममम्त जीवोंका करना ही निकांक्षित नामक 'घन है। जनशामों में हितकारी हो। आगम वा शास्त्र-शास्त्र वही है जो इम अशको पूर्णतया पालनयाली अनन्तमतीका उन्ने मयज, वीतराग और हितोपदेशी पाहारा कहा गया | मिलता है। '३य निर्विचिकित्सित बार-धमात्मा हो, प्रत्यक्ष अनुमानादि प्रमाणोंसे विरोध रहित हो, वस्तु, स्वभावमे अपवित्र किन्तु रत्नत्रय ( मम्यग्दर्शन, सन्यपान स्वरूपका उपदेश करनेवाला हो मम जीवाका हितकारक और मम्यक चारित्र ) में पवित्र गरोस्में ग्वानि न कर हो, मिथ्यामार्गका खण्डन करनेवाला हो घोर वादी प्रति उनके गुणोंमें प्रोति करनेकी निविधिमिसित बन कहते वादी द्वारा जिमफा कभी भी खण्डन न हो सके। गुरु है । इस अङ्गका पानक उदायन राजा प्रसिद्ध.हुमा है। गुरु वही है जो विपर्टीको आगाके वशीभूत न हो, ४ अमूद दृष्टि पङ्ग-दुःलों के मार्गरूप. कुमार्ग, या प्रारम्भ (दिमाजनित कार्य)-रहित हो. चोयोस प्रकारके | मिथ्यामतमें एवं उसके अनुयायी मिष्याष्टियोंमें मनसे परिग्रहका त्यागी हो और ज्ञान, ध्यान एव तपमें | महमत नहीं होना. यचनमे उनको प्रशमा नदी नोन हो। करना और गरीरसे,उनकी सहायता नहीं करना, यद इस मम्यग्दर्शन के आठ अङ्गा है-(१) नि:शद्वित्व अमूल दृष्टि ग्रनका कार्य है। इस अङ्ग के पाल ने रेवती (२) निःकांक्षित्व, (३) निर्विनिकिरिसत्व, (४) अमूद- रानोने प्रमिति पाई है। ५म उगहन अन-जो अपने दृष्टित्त्व, (५) उपटण, (६) स्थितिकरण, (७) वात्सन्य | पाप ही पवित्र है, ऐमे जैनधर्म की प्रधानी एव पस पोर (८ प्रभावना। जिम प्रकार मनुषगरीरके हस्त | मयं व्यक्तियों के पाययम उत्पन्न हुई निन्दाको दूर पाटादि अङ्ग है, उमी प्रकार ये मम्यग्दर्शनके अङ्ग हैं। करनेका नाम है उपग इनाना। इस प्रनके पासनेम जिम प्रकार मनुष्य के शरोरमें किसो अङ्गका यमाय हो, जिनेन्द्रभक्त मेठन प्रमिह पाई है। ६ष्ठ स्थितिकरण तो भो यह मनुष्यगरीर ही कहलाता है, उसी प्रकार | पन-सम्यग्दर्शनमे या समाचारित्री गित हुए यदि किमी सम्यग्दर्शन-युक्त पात्मा मम्यनारे किमी व्यक्तिको धर्म में म्यिर कर देना. स्थितिकर पग फलाना • पनाको कमी हो, तो भी वह सम्यग्द,ष्टि कहलाता है। है। इम: पालन में योणिकराजा पुत्र वारिपेणगे किन्तु उस पल के पिमा वा शरीर प्रसुन्दर और प्रशंसा | स्याति नाम की है । म धारमय -सपने महधर्मी नीय व्यय होता है। इमो प्रकार मम्याने भो ममझना| थलियोंम सहाव रखना, निष्कपटताकाहार करमा चाहिये । मानिए पटविशिष्ट मम्यग्दर्शन ही प्रशस्त पोर यथायोग्य उनका पादरमस्कार करना, वारसम्यान और पूर्ण मम्यक नाता पर्यात् पाठ पड़ी - कहनाता है। इस पर पानक विणुकुमार मुनि प्रमिड यिना सम्यग्दर्शन चपूर्ण होता है। हुए है।म मभावना पदा-समारमें चारों पोर प्रज्ञान . म निःशशित भद्र-यमका स्वरूप यहो , म | पन्धकार फेमा दुपा है, लोग नहीं जानते कि सुमार्ग