पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जैनविवाहविधि-जैनवेद्य ५३८ पुष्पो या लवङ्गोंको मालामे ) १०८ वारं जप करे।। प्रागे एक नोर्थ कर कुण्ड बनाव; उसके दक्षिण भागमें अनन्तर कन्दा उस. यन्त्रको गाजे-बाजेको साघ भति- | तो धर्म चक्रको पौर धाई तरफ तीन छत्र वा एक छत्र पूर्वक अपने चैत्यालय या घर ले पावे और उच्च एवं को स्थापन करे। पवित्र स्थान पर विराजमान कर दे और जब तक विवाह के समय कन्याका पिसा. वरका पिता, कन्या विसर्जन हो, तब तक प्रतिदिन उमका अभिषेक करे। और वरके मामा, दोनों की माताये और एक इस्पाचार्य उस दिन कन्याको रात्रिजागरणपूर्वक पञ्चमङ्गल भादि ये सात व्यक्ति अवश्य उपस्थित रहने चाहिए । विवाह का पाठ करना चाहिए। मुहारमे पहिले मर जिनेन्द्र भगवानको नमस्कार कर हमी प्रकार वरको भी विनायकयन्वका अभियेक घोड़े आदिको भवारो पर चढ़ कर सुरके घर पावे। पूजनादि करना चाहिए। कन्याको माता उसके पैर धोये, भारती उतार और पियाइसे पांच दिन अथवा तीन दिन पहले कण । मुद्रिका प्रादि प्राभूषण प्रदान करे । बरका पिता कन्याके बन्धनादिविधि सम्पन्न करना चाहिए। ग्रहस्थाचार्य को लिये लाये हुये वस्त्र भूषणादि पहरनेके लिए दे। इसके अपने हायसे कहाण बांधना चाहिए। मन्त्र इस प्रकार बाद कन्याका मामा प्रोतिपूर्य क वरका हाथ पकड़ कर मंडपमें वेदीके दक्षिण तरफ पूर्व मुखसे बड़ा कर दे "जिनेन्द्र गुरुपूजनं श्रुतवच:मदाधारण, और कन्याको भी उसीके पास ले पावे। इस जगह स्वशीलयमरक्षण ददनरातपो वृहणं । सेहरा उठा कर कन्या और वर दोनोंको परस्पर मुख इति प्रयितपद्धियानिरतिचारमास्ता तये देखना चाहिये । इसके बाद कन्याके मामा और माता त्यय प्रथनकर्मणे विहितरक्षिाबन्धनम् ॥" पितादि कुटुंबी ननोको 'तुम्हारे घरपाकी भैया करने के इसके बाद शाम्रानुसार छोटे छोटे विधानीको सम्पन्न । लिये यह कान्या देते हैं इसे स्वीकार करी' कह कर करके विवाह म'डप और वेदीकी रचना करनी चाहिए। मन्मति प्रगटी करनी चाहिये। इसके अनन्तर पर भी मंडपके चार कोनों में चार काठके स्तम्भ, लाल कपड़े सिद्ध यन्त्रको नमस्कार कर उमे स्वीकार करें। इसको . और लाल सूत ( कोली )मे वेष्टित करें। इसकी ठीक | वाद ग्रहस्थाचार्य जेनविवाहपदतिमें कही हुई विधिक मध्यभागम चार हाथ नवी घोडी एक वेदी (चौतरी)। अनुसार नित्य पूजादि कर एक मौ बारह पाइति इवन- अनाये । उमके चार कोनाम चार केले के छोटे छोटे पेड़ कुपड़मे दे। अन्तम ममपरमस्थानको प्रामिके लिए व सुके पेड़ रोपण करे। उस दीके अपर कन्याके | वदीको वर कन्याको मात प्रदक्षिणा ( फेरा) दिखा कर हायसे एक एक हाथ अंची तीन कटनी पूर्व दिशाको। पुरयाहवाचन पड़े। तरफ बनावे सस वैदीक पोछे ठीक मध्य भागमें यदए। इस प्रकार विवाह समास हो जाने पर धन्य बटुतमे यहांम पाये ये स्तम्भक ऊपर कलंगमें ६) रु. दी। प्राचार होते हैं उनके बाद यर वधूको साथम ले भपने सुपारी दुर्गा प्रसस धादि मालिक द्रव्य डाल कर एक घर चला पाता है। लाल यानकी ध्वजा लगाये। इसके बाद ग्रहस्थाचार्य वा जैनवेद्य-एक उत्कष्ट गद्यलेखक। इनका प्रशत नामा पण्डित सबसे ऊपर कटनी पर सिंह भगवानका प्रतिविज अयाहर लाल होने पर भी ये जन पके नामसे प्रमिह स्थापन करे। यदि धद न हो तो विनायकयन्य स्थापित | थे। इन्होंने कमलं मोटनो भैरवसिंह (माटक), या करे। उसके नीचेको (योचकी). कटनी पर पार्ष गत स्थान प्रबोधक पोर भानवर्ष माला भादि कई पुस्तके (जैनमानों)को विराजमान करे और नीचेकी तीसरी लियो है । इमझे मिया उन्होंने उचितवाता' जेन पादि काटनी पर पटनगल द्रशीकी स्थापना की घोर गुरु कई पका मन्पादनकार्य भी किया था। वायपुर में पूजा लिए इसी कटनो पर केसर नगो र फेदीम प्रथया नागीभवनको स्थापना भी उन्होंने बातायो। 'कागजमें लिख कर पोसठ क्ष्येि स्थापित करे। इम। मयत् १८५में इनकी मृत्य हुई।