पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९६

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५४१ नैनसम्प्रदाय मुरिकत 'भावसंग्रह', में इस प्रकार लिम्बा है,-"विक्रम ! दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें अन्तर-जैनधर्म राजाको मृत्युके वाद सोरठ देशको. वलभो नगरी में माननेवाली दो प्रधान गारवाए हैं, दिगम्बर और खेतांवर महा प्रत्यय हुआ। (१) उज्जयिनी नगरीम | ताम्बर। इन दोनीका परस्पर अनेक बातम प्रभेद है। भद्रबाहु नाम के प्राचार्य ने, जो भविष्य-नानी थे, सहको। दिगम्बर जीव, जीव, धर्म, अधर्म, प्राकाग और बुलाकर कहा कि यहां अब बारह वर्ष तक दुर्मिन। काल ये छः ट्रय मानते हैं, परन्तु मे ताम्बर काल रहेगा, इसलिए सबको अपने अपने सहसहित और और | द्रव्यको स्वतन्त्र द्रव्य नही मान; केवल धड़ो, घण्टा देशीको चन्ता जाना चाहिये । ऐसा ही हुआ। उनमें ! पादि व्यवहार कालको ही मानते हैं। दिगम्बर जैन शान्ति नामके प्राचार्य भो थे, जो अनेक गियों के साथ कहते है जिसके पास थोडासा भी परिग्रह है, ये वलमोपुर पहुंचे। किन्तु वहां भी घुछ दिन बाद न तो वास्तविक साधु हो हैं पोर न वे मुक्ति हो माग दुर्मित पड़ा, जिससे लोगोंको प्रष्टत्ति बिगड़ गई। इस कर मी परन्त ताम्बर जैन गण वस्त्र, दण्ड प्रादि निमित्तको पाकर सर्वमाधुनि कवल, दण्ड, तुंचा, | कई वस्तुओंको साधुझे लिए आवश्यक समझते हैं;

भाषरण और में तयस्त्र धारणकर लिए, ऋषियोका पा., यद्यपि मुक्ति प्राप्त होना वे भी दिग'वर पवस्थामे ही

चरण छोड़ दिया और दोनत्तिसे येठकर याचना और मानते हैं। खेताम्बर कहते हैं-तीर्थ कर यद्यपि नग्न खच्छाचार-पूर्वक बस्तोमें जाकर भोजन करना प्रारंभ होते हैं, तथापि अतिगयवश वस्त्रालारादिसे भूपित कर दिया (२)। इसके कई वर्ष बाद जब मुभिक्ष दीख पड़ते हैं ; और इसीलिये जब कि दिगम्बरानायी हुमा, तम शान्तावार्यने सबको बुलावार पूर्व पाचरण | अपनो मूर्ति योको बिलकुन्न सजायट प्रादिमे रहित ग्रहण करने के लिए कहा पोर अपनी निन्दा गर्दा को ।। यियमन स्थापित करते हैं तब ये यम्भूपणादिसे सूब इस पर उनके एक प्रधान शिष्य बहुत उत्तेजित हुए | मजाते है। और उस उत्तेजनामें पूर्व मार्गको कठिन एवं पञ्चम. इन दोनों मम्प्रदायों को देव मूर्तियों के दर्शनमें कालमें उसका पालन असम्भव बतलाते हुए उन्होंने दोनों ही पापममें ठोक विरोधो मालूम पड़ने लगते समन्य (परिग्रह ) पवस्था निर्वाण को प्राशि हो सकती | है; परन्त वाम्तवमें कुछ हो बात में फर्क है। दिगंबर है, ऐसा उपदेश देकर खेताम्मर मतका प्रचार मतानुसार स्त्रीको खो-जम्ममे मुशिमाम नहीं होती। किया (३)। वे इममें यह धापत्ति देते है--स्वी प्रतिमास रजसला होती है, इसलिये उसकी शक्ति होगा होती रहतो ...यह प्राय सं० ९९० कारपा हुआ है, प्राचीन है, अतः । है; उसके वचपभनाराच आदि मुक्ति-प्रापिके उपयुत एव हमने उस परसे श्वेताम्बरसम्प्रदायकी उत्ससिको इस कथा. संहनन नहीं होते। स्त्रियमि माया पधिक रहतो, को मत करना उचित समझा है। वे मनको मपंया वग नहीं कर मकी । परन्तु हसायर . (१) "उनोसे वारिस सए विकमरायस मरणपत्तस्म । स्नीको मुहि होना मानत है। उनके मतमे श्रीमभिः सोर उपयो सेवसंपो हुप सहीए ॥ १२ ॥ नाय तोपर मम्रोबा नामक तो ही थे। परन्तु (२) से सहिऊण निर्मिती, गहिय सम्वेहि कंबछीदरम् । मन्दिमि मूर्ति पुरुषाफार बनाते हैं और प्रतिगयवस दुधिय पत्तं च तहा, पापरणं सेयपत्यं च । पुरुष दीखत घे, ऐसा कहते है। सायर मोग तेर. नातं Rसिआयरण, गहिया भिवसाय दोणविस्ताए । हवं गुणस्थानवी कैवन मानी (मर्व के भूरा लगना उपविसिय जाइवर्ग, भुतं धमदीमु रमाए ।" मानते और भोजन करते बताते हैं। पान् दिग- . (भावसंद, ५८-५९) घर कहते हैं, कि जिसने संसारकी समस्त प्याधियाको (1) "इसरो पाहिपई, परिय पास सेवटो जामो। '] नट कर दिया है, जो रागदपको सर्वथा जोतकर "जिन' मसा सोए पम्म संगत्ये अस्यि गिबाण " (मासंपा, ६९). हो गये है, एनके मधमे बड़ो व्याधि सुधा हो को नहीं Vol. VIII. 136