पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६२७

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१६८ नान्स-जोबट 'तथापि एनम मौलिकमा कुछ भी न थी। इन्होंने किसो | न ज्ञानी और धार्मिक सिवा किमोको अपने सह । नवीन विषयका घोविश्कार नहीं किया और न किमो ही मानते थे।" पुरातन विषयमें नवोन शिक्षा हो दो है। इनमें विश्ले- जोबट-१ मध्यभारतमे भोपावर एजेन्सीके अन्तर्गत एक पण पोर पापणको समता न थी। भाषाके विषय | सुद राज्य । यह पक्षा० २२०.२१ मे २२. ३० उन्होंने किमी प्रकारको वैज्ञानिक उन्नति नहीं को और देगा। ७४. २८ मे ७४.५० पू में अवस्थित है। सिर्फ दमरी के लिए उपादान म'ग्रह किया है। प्रायः ] इमवाा क्षेत्रफल १४. वर्गमौन | माहित्य के विषय में उन्होंने जितनो पुम्त में लिखो हैं | झापा गज्य । दक्षिगा पोर पशिममें अलीराजपुर उनके पढ़नेसे मनोरध्वनके माघ माथ भनेक विषयों में तथा पूर्व में ग्वालियर है। यहां भूगि पर्यतमय है शिक्षा भो मिलती है किन्तु उनमें उनको वर्णनाक्षमता| पोर पधिकांग अधिवासो भोल। मानव में BETI और चिन्ताशक्तिको मोनिकनाका परिचय नहीं मिलना! | ट्रोंके उपदके ममय यह प्रदेग शान्त था । उत्तर उन्होंने विद्याविषयक जमो उति को यो, उससे ये | सोमाको विन्ध्यपर्वतये पोके कई एक शाखा पर्वत अवश्य ही एक मान्य और गौरव के पात्र थे। इन्होंने | इस राजामें प्रवेश हुए हैं इन्दोरसे धार और राजपुरमे पनेिक विषयों को सोखने के लिए जमा प्रयत्न घोर परि- (अलीराजपुर) गुजरात तक एक सड़क इस राज्य यम किया था, योहा विषय सोखने के लिए यदि वमा उत्तर पूर्व होकर गई है। जोवट के राना राठोरवंशके करते, तो उनके ज्ञान और विद्याको अधिकतर स्फूर्ति राजपूत है। होतो; मम्भव या कि उससे वे एक अद्वितीय पुरुष हो । यहाँको लोकमस्या लगभग ८४४३ है । यहां जाते। भोन खेतो करके अपनो जोविका निर्वाह करते हैं। जम्मका परिव हमेगा मम्मान पाता रहेगा। यहां विशेष कर उर्दू, बाजरा और ज्वार उत्पन्न । जोन्म किमो विषयको सीखने के लिए हरएक तर होती है। एका परियम उठानेको तयार रहते है। पिता माता ___ यह राज्य पांच थानामें विभक्त है, यया-जोघट, पर इनको प्रगाढ़ भक्ति थी। इनके बन्धुगा सम समय गुड़, हीरापुर, थयन्नी और जुपारी। यहांको वार्षिक इनका विश्वास कर निशिन्त रहते थे। विचारकालमें पाय २१०००) जङ्गल विभागरी पोर ४००० रु.। इनकी न्यायपरतामे ममो मन्तष्ट होते थे । कहते हैं, कि ई०१५ वीं शताप्टोमें यह राज्य कमर ___ पूर्वासिखित पुस्तकों के मिया जोम्सने निम्न लिखित देवके हाथ लगा। (अलीपुरके म्थापयिता पानन्ददेवक पुस्तकें भी भाषान्तरित की थीं-(१) दो महम्मदीय प्रा. पीवके पुत्र ) अङ्गारेजोका आधिपत्य होने के समय जोय. इन, (२) उत्तराधिकारके विषय में तया दानकर पत्र टमें राना सवलसिह राजत्व करते थे। इनके याद धिमा मरे हुए व्यक्ति के उत्तराधिकारत्वको पाइन, राना रनितसिह गंजगही पर बैठे। और १८७४ ई. में (३) निजामीसत गल्प पुस्तक, : ४) प्रकृतिके लिये। इनका देहान्त इमा। .इन्होंने १८६४ ई में परेशो को दोस्तोत्र; (५) वेदका उहतांग । रेलवेके लिये काफो जमीन देने को कहो। इसके बाद मर विलियम जोन्सकी करके अपर निम्रलिखित स्वरूपमि राजगद्दीपर बैठे पोर १८८७२ में इनका भावार्थको एक कविता निसी है- देहान्स हुा। याद इन्द्रजितसिंह राजगहो पर है। "एक मानवका देहांग इम स्थान पर निहित है, | नरेगका उपाधि राणा । .. . लेजरमे पर छ-मृत्युको नहीं। एन्होंने अपनो २मध्य भारतके भोपावर एजेसोक पन्तर्गत गोषट . स्वाधीनताको रक्षा को यो। ये पर्थ पर्व पण नहीं राज्यका प्रधान गर। यह प्रमा० २२. २० उ. और करते थे। ये धार्मिक पोर कुझियामल व्यतिरीके | देगा. ८४° ३० पू०में पड़ता है। इस नगरके नामा. . . सिधा न तो किसीको पपनेसे नीचही समझते थे पोर | नगार राज्यका नाम ट होने पर भी यह राजधारी