पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६४२

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जान उको उन उन गुण भोर दोषाम युक्ता जाननेको यथार्थ ] पुस्तक नहीं है तब यही पर प्रतिपक्ष होगा कि लेसनो जान या प्रमा कहते हैं। जैसे-मानो व्यक्तिको पण्डित रहने पर पुस्तक भो रहेगी, ऐमा कोई नियम नहीं है। जाममा, पभेको पन्धा मानमा, इत्यादि। जिम में जो लेखनी रहनेमे पुस्तक रहे तो रस मकतो है, इमलिये गुण और जो दोप नहीं है। उसमें उन गुण पोर दोषीः । लेखनी पोर पुस्तक तदभावको महचररूप साधारण का मानना; यथार्थ जान वा भप्रमा है। जैसे मूर्खको | धर्म है। साधारण धर्मरुप लेखनीको देखकर कोई विहान मामना, रस्सोको मप ममझना इत्यादि । प्रममा | व्यन्ति निसय कर सकता है कि, इस घरमें पुस्तक है, या भ्रमका एक अनुगत कोई कारण नहीं है। जैसे- वास्तवमें उम लेखनो के देखनमे ऐपा मगय हो पा पिताधिक्यरूप दोष हो जानवर अत्यन्त शुभ ग भी करता है कि, इस जगह पुस्तक है या नहीं ? तयां पीला दोखता है, प्रतिदरताके कारण बहुत बड़ा चन्द्र सन्दिग्ध यस पोर तदभावके माथ जिम वस्तु का मा मण्डल भो छोटा दोखता है और मण्ड क को चरबी | वस्यान पहले नहीं देखा गया है, ऐमी भवम्याम उम पने हुए प्रजनर्क लगानेसे वांस भी सपं मालूम हाने । वन के दर्शनको अमाधार धम दर्शन करते हैं। जेमे. लगता है। इस प्रकार के दोषी बाग जब अप्रमा वा नेवला रहने मर्य रहता है या नहीं? जिम यमिको भ्रमजान हो जाता है, तब महमा यथार्थ ज्ञान नहीं | एकतरफको निययता नहीं वह व्यक्ति यदि नयना देखे होता। जबतक मत दोष दूर नहीं होते, तबतक वम | तो उसको सपं या तदभाव किमोका भो निययजाम रहता है। (भाषापरिच्छेद १२०) देखो, गा पत्यन्त नहीं होता। मय है या नहीं, मिर्फ ऐमा मय हो रान होता है, पीला नहीं होता, ऐसे हजारों उपदेशों के । हुपा करता है। विशेष दर्शन होने पर मपयको सुनने पर भी चर्थात् गहा श्वेत है ऐमा नियय भान । नितिं होतो है। विशेष पदमे जिम वस्तुका मगय होने पर भो 'नय पित्ताधिक्य होता है, तब किसी तरह होता है, उसके व्याप्य का बोध होता है। जिस पदार्थ भी गल पोलेके सिवा खते नहीं जान पड़ता। निश्चय के न रहने से जो पदार्थ नहीं रह मकता, उसका व्याप्य पोर मंगय के भेदने जानको दो विभागोंमें विमलावही पदार्थ होता है। जैसे-बहि मिमा धूम नहीं किया जा सकता है, जैसे-एक तो यह किम हो सकता, इमनिये जिका व्याप्य धम है. समय मथानमें मनुष्य है, और हमरा यह कि इस मकान जबतक ध म न देखनमें पाये, तबतक बक्षिका मंगय मनुध है या नहो? म प्रकारके जानाको क्रममे रहता है, किन्तु धूम दृष्टिगोचर होने पा पतिका नियय पीर संशय कहा जा मकता है। मगय नाना। संशय मिट जाता है, फिर मिण्यामक भान होता है। कारणाम हो सकता है, कमी परम्पर विरुद्ध वाक्वरूप मान-मिका बुद्धि अनुभव और परप के भेदमे दो विप्रतिपत्ति याक्यको सुनकर मय होता है। जैसे- प्रकारको है। मुख पोर टु यथाक्रममें धर्म पीर धर्म किमो ममय धरम पादमा है या नहीं, इसको कोई | दाग उत्प्रय होते हैं। मुख ममस्त माग्मियोका अभिप्रेत निरायता नहीं उस ममय यदि एक प्रादमो यह य है। पोर दुःख पनभिप्रेत । पानन्द पौर चमत्कार शादिके कि “इम घरमें प्रादमी है" और एफ को कि "नहो। भदेमे सुख, पोर को पादिई मदमे दुःख नाना कार• इस घाम पादमो नही है तो घरमै पादमों है या महो। के हैं। पभिनायको हो रच्छा कहते हैं। सम चोर समका कुछ मिषय नहीं किया जा सकता। सिर्फ दुःखानापने इच्छा न उन पदाकि मानसही उत्पथ में प्रयागढ़ ही होना पड़ता है। यह मय कभो। दुपा करतो है। मुख पौर दु:नितिके माधनसे मुख. माधारण पोरं. भो प्रमांधारण धर्म दर्शन होने पर माधमता-शाम पौर दुःपमिव कता-शान होने में पर्यात् 'भी दुपा करता है देखो, जय यह देखने इस यमे मुझ सुख होता है, पोर रस मे मेरे दुःपाँ पाता है कि, किसो गरमें लखमी और पुस्तक | को निति होगी, ऐमा भान होने पर यथाक्रम राम दोनों ही है, पर किसी गृहमें सिर्फ नेपनी हो । पौर दुःखको नितिक लिए रक्षा होती है। देषो, जो Me TA | -