पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६४४

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ज्ञान ५८३ उसको उन उन गुण और दोपमि युक्त जाननेको यथार्थ पुस्तक नहीं है तब यही म्पट प्रतिपय होगा कि लेपनो जान या प्रमा कहते हैं। जैसे-मानी व्यक्तिको पण्डित रहने पर पुस्तक भो रहेगी, ऐसा कोई नियम नहीं है । जानना, अन्धे को अन्धा मानना, इत्यादि। जिममें जो लेखनी रहनेसे पुस्तक रहे तो रह मकतो है, इममिये गुण पोर जो दोष नहीं है। उसमें उन गुण पोर दोयी। लेखनी पोर पुस्तक तदभावको सहधररूप साधारण का मानना; येथार्थ चान वा प्रममा है। जैसे मूर्खको | धर्म है। माधारण धर्मरप लेखनीको देखकर कोई विज्ञान मानना. रस्मोको मप ममझना इत्यादि । प्रममा | प्यति नियय कर सकता है कि, इम घरमें पुस्तक है, या भमका एक प्रमुगतं कोई कारण नहीं है। जैसे वास्तवमें नम लेखनोके देखनमे ऐसा संगय हो एमा वित्ताधिक्यरूप दोष हो जानेपर अचन्त शुभ गइ भी करता है कि, इस जगह पुस्तक है या नहीं ? तयां पोला दोखता है, प्रतिदूरमाके कारण बहुत बड़ा चन्द्र ! मन्दिग्ध वस्तु पोर तदभावकै माघ जिम वस्तु का महा मण्डन भो छोटा दोखता है भोर मण्ड क को घरमीमें धस्थान पहले नहीं देखा गया है, ऐमी प्रथम्या उम यने हुए पश्चन लगानमे वास भो सर्प मालूम हाने । वस्तु के दर्शनको प्रसाधारण धम दर्शन करते हैं। मे. लगता है। इस प्रकारक दोषी हारा जब पामा वा नवला रहनेमे मर्प रहता है या नहीं? जिम व्यक्तिको भ्रम मान हो जाता है, तब सहमा यथार्थ मान नहीं एकतरफको निययता नहीं वह व्यक्ति यदि नेयना देखे, होता। लवतक ना दोष दूर नहीं होते, तबतक भ्रम तो उसको सपं या तदभाव किमोका भो निययजाम रहता है। (भाषापरिच्छेद १२५) देखो, गह प्रत्यन्त | नहीं होता। सर्प है या नही मिफ ऐमा मय हो शुभ होता है, पोला नहीं होता, ऐसे इमारों उपदेश हुमा करता है। विशेष दर्शन होने पर मयको सुनने पर भी पर्यात् गा श्वेत ई ऐसा नियय भान , नित्ति होतो है। विशेष पदमे जिम का मगय होने पर भी जब पित्ताधिक्य होता है, तब किमी तरह होता है, उसके व्याप्य का बोध होता है। जिम पदार्थ भी शहर पोलेके सिवा नहीं जान पड़ता। निश्चय के न रहने से जो पदार्थ नहीं रह सकता, उसका व्याप्य पौर मंगयके भेदमे भामको दो विभागोम विमत यही पदार्य होता है। जैसे-वडिल बिमा धम नहीं किया जा सकता है। जैसे-एक तो यह किम | । हो सकता, इमलिये यतिका व्याप्य धमई. सतर्ग मथानमें मनुष्य है, और दूमरा यह कि इम मकान में । जबतक धम न देखनमें भावे, तबतक घटिका मगय मनु प हैं या नहीं? इस प्रकारके जानाको क्रममे रहता है, किन्तु धूम दृष्टिगोचर होने पर पतिका मिपय पोर मंगय कहा जा मकता है। मगय नाना मंशय मिट जाता है, फिर निययामक जान होता है। कारणाम हो सकता है, कमी परस्पर विरुड वाक्यरूप जानामिका बुद्धि अनुभव पौर स्परपके भेदमे दो विप्रतिपत्ति याक्यको सुनकर मंगय होता है। जैसे प्रकारको है । मुख पोर दुःख यथाक्रममे धर्म और अधर्म किमो ममय घरमें पादमा है या नहीं, इसको कोई हाग उत्पन होते हैं। मुख ममम्त प्राणियोका अभिप्रेत नियता नहीं उमममय यदि एक प्रादमो यहई। है पोर दुःष अनभित । पानन्द और चमत्कार प्रादिके कि “म धरने पादमी है" पोर एक कई कि "नहो | भेदेमे सुख, पोर केश पाटिई भेदमे दुःख नाना प्रकार म घाम पादमो नही हैं तो घरमै पादमो है या नहो | के है। पमिलापको हो रहा करते हैं। सा चोर इसका कुछ निराय नहीं किया जा सकता | सि । दुपामाप रहा उन उम पदार्योक भानस ही उत्पा मगयाक्ट को होना पड़ता है। यह मयय कमो, हुपा करती है। मुग्न और दुनिप्तिके माधनमे सुपु. माधारण पोर कमो पसाधारण धर्म दर्शन होने पर साधनता-शान पोर दुःपनियत क्षमा-भान रोन, पर्यात् भो दुपा करता है । देखो, अव यह देखने में | इम वसुमे मुस स होता है, भोर रस बरामे मेरे दुःपाँ पाता है कि, किसो एहमें सनी और पुस्तक को निति लोगो, एमाशान होने पर यथाकारमे सुप दोनों ही पोर किमी हमें मिर्फ नेपनी हो । पोर दुःनुको निति के लिए होती है। देवो, जो