पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७२

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जयमल-जयरात प्रकवरके हाथ निहत हुएं । अकबर बादशाहने यद्यपि , लगे, 'कौनसे हितपो मिवने हमारे गत पो को इम' नोचनामे इनको मारा था। किन्तु तो भी वे उनको प्रकार निहत किया ? इतनेमें वह पराजित राजा भी अनुपम तेजोवोर्य को महिमा म मूल मके थे। उन्होंने । उनके सामने आ गया और हाथ जोड़ कर कहने उक्त दोनों राजपूतीको प्रस्तरमूत्तियां बनवा कर दिल्ली में लगा-"महाराज ! मैं बिना जाने जैसा अन्याय कार्य अपने प्रासाद के सामने स्थापित करवाई थी। करने आया था, उसका प्रतिफल मुझे अच्छी तरह मिन्त • एस घटनारी प्रायः सौ वर्ष पछि मिह भ्रमणकारी | गया । आपके कोई एश श्यामम तिधारी योरपुरुष धर्णियारने दिलीके सिंहधारमें प्रवेश करते समय उ} घोड़े पर सवार हो कर आये भोर क्षणमात्र मेरो समस्त मतियों को देख कर दोनों धीरों को तथा उनकी वीर्य सेनाको धराशायी कर विद्युगसे न माल म कहाँ 'वतो मातामों को बहुत प्रगःसा को थी। चलं गये। अन मैं पाप शत्रुता नहीं करना चाहता २ एक धर्म शोल राजा। ये परम विष्णुमत थे, इनके श्राप मेरा समस्त राजाधन ग्रहण करें। में आपको प्रामादमें श्यामसुन्दर नामको एक देवमति थीं। सम्पूर्ण वम्यता स्वीकार करता है। किन्तु उन श्यामस पाप कमसे कम दादण्ड समय लगा कर नित्य उनको ) सुन्दर पुरुषको देखनेके लिए मेरा मन चंचल हो रहा पूना किया करते थे। इस दगदगड समयके मौतर यदि है, यदि पाप उन्हें पुनः एकबार दिखा दें, तो मैं अपने उनका राजा भो नष्ट हो जाय तो भोघे कणपूजा को लतसताय सगभूगा । मेरा सर्वस्व गयो है, जाने छोड़ कर नहीं उठते थे। इनका ऐसा नियम जान कर दो मुझे जरा भी दुख नहीं, किन्तु उस महायोर मर्तिके एक राजाने उसो अवसरमें उनके राजा पर भाक्रमण भीतर न माल म कैसो एक अनिर्वचनीय मधुर मूर्ति किया। भव भोके हाथ से जन्म इमका राजा नष्ट होने थी; जिसको देख कर मे । उदय पिधन्न गया है। मैं लगा, तब इनको माता रोती हुई देवटहमें पहुंची माता सती ई देवदहमें पहुंची। फिर उन्हें देखना चाहता हूं।" पब जयमल समझ और बोलौं-"वत्स ! सबै नाग उपस्थित है, शव बा गये कि, वह वीरपुरुप इष्टदेव श्यामसुन्दर दौथे। तद. कर सम्हार राजाको सूट रहे हैं, राजा नष्ट हुआ जा नन्तर जयमन्त अपने शव राजाको साथ ले कर श्यामनु रहा है, इतने पर भी सम निशिन्त बैठे हो कैसे ? सुन्दरके मन्दिरमें पहुंचे, वहाँ जा कर उन्होंने कहा तुम्हारी प्राजाके बिना सेना युद्ध नहीं करना चाहतो, 'महाराज ! आप जिन वीरपुरुपको देखना चाहते हैं. प्रत्यु त.खड़ो खड़ी पराजित हो रही है।" परन्तु जयमल- देखिये, ये हो वे कोर पुरुष हैं।" पोछे शव राजा भो को जरा भो घबड़ाहट नहीं, प्रतात वे कहने लगे- हरिभक्त वैपाव हो कर दिन बिताने लगे। ( मकमाल) "माता ! क्यों पाप.उदिन हो रही हैं। जिन्होंने हमें जयमांधव-सूक्लिकर्णामृतत एक कविका नाम । यह विपुल सम्पत्ति दो है, वे ही जब उसे ले रहे हैं, जयमाल (हि. स्त्रो०) १ विजयोको विजय पाने पर तो किसको मशाल है जो उन्हे रोक सके। सामान्य पहनाई जानेवाली माला । २ यह माला जिसे स्वयंवरके राजाकी बात तो दूर रहो, उस समय यदि शव पा कर | समय कन्या अपने वरे हुए पुरुपके गलेमें डालती है। मेरे मस्तकको उतार लें, तो मी में नियमित पूजा नहीं जयया (म.पु.) नयाथ यन्न । प्रखमेध यज्ञ । छोड़ गा।" इसो समयं जयमलके इटदेव श्यामसुन्दर जयरध-काश्मोरके सुप्रसिद्ध कवि जयद्रयके माता। अपने भक्त के हितसाधनाथ वीरवेशसे निकल पड़े, और इन्होंने अभिनवगुमरचित तन्वालोकको तन्नातोकविवेक शन मण्डली में प्रवेश कर उन्होंने राजाके सिवा और / नामसे टोका लिखो है । जयद्रय देखे।। समस्त शव भों का विनाम कर दिया। इसके उपरान्त | जयराज-शरमपुरके एक प्रमिद गजा। राजा भो नियमित पूजा को समाप्त कर योदवशी समर जयरात ( पु.) कलिङ्कराज पुत्र, कोरम पक्षके एक भूमिमें पहुंचे, वहां उन्हें राजाके सिवा और समस्त योद्धा । ये कुरुक्षेत्रके युद्ध में भीमके हाय मारे गये शत्र पो को धराभायो देख बड़ा पायर्य हुपी, वे सोचने]थे। ( मारत १५५१२८) !