पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७८

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जयशलमेर ( जैसलमेर) कर बहुतसा धन सञ्चय किया था। पञ्चनद की एक राजा ' पुरका पुनः संस्कार कराया था। चोहिरके दो पुत्र ये कन्याके साथ इनका विवाह हुआ था। कोला और गिरिराज। इन दोनोंने कोलागिर और वेयरने तूर्ण देवो के स्मरणार्थ तोतगढ़ बनवाया गिराजगिर नाममे दो नगरोंको स्थापना को थी । प्रक्षन के था। यह गढ़ पूरा बन भी न पाया था कि, मध्यम- । चार पुत्र धे-देवसिंह, विलि, भवानो ओर रकैचो। रावको मृत्यु हो गई। देवसिइके वंशधर "रेवरी" अर्थात् उष्ट्रपालक और रेके. तीतगढ़ वराह-सम्प्रदाय के अधिकारको सीमा पर चौके वशधर इस समय श्रोसवाल नामसे प्रमिह है। बना था, इसीलिए वराहमर तत्नेि उस पर पानी राजा तण को विजयसेनी देवीको महायतामे गुग मा किया। किन्तु राजा केय रके प्रयनसे उन्हें पीठ धन प्राहा हुअा, जिमसे उन्होंने विजयनोत् नामका एक दिखा कर भाग जाना पड़ा। बहुत उमदा किला बनवाया और ८१० सवत्के मार्ग- वि० स० ७८७ माघमासमें मङ्गलवार के दिन राजा , शोप माममें, रोहिणी नक्षमै उस टुर्ग में विजयवामिनी केय रने तर्ण माताके उपलक्ष में एक मन्दिर वनवाया। नामक देवोकी म ति स्थापित को। इन्होंने ८० वर्ष फिर वराह राजपूतों के साथ मन्धि हुई। दूसो समय राज्य किया था। मलराजको कन्याके साथ राह-सारका विवाह हो ८७० संवत्में विजयगय मिहासन पर बैठे। उन्होंने गया। राजपद प्राप्त कर अपने विणत, वराहीको प रूपसे महिजातिके इतिहाममें केय रका सबसे अधिक सम्मान परास्त किया। है। बहुतोंके मतसे केयरका पूर्ववर्ती इतिहास अधिः भूतवनको राजकन्याके साथ विजयरायका विवाह काश उपाख्यानम लक है, इन केय रसे ही यथार्थ इति । हुआ था। ८९३ मवतमें उनके गर्भमे देवगज नामक हासका प्रारम्भ है। एक पुत्रने जन्म लिया। कुछ दिन बाद वराह और केय रके पांच पुत्र धे-तर्ण, उतिराय, चन्नर, काफरी | लङ्गाहा जातिने फिर भघिराजके विरुद्ध अम्बधारण किया । और दायम । इन पांचों के वशधरों के नामानुसार माह किन्तु इस बार भी उन्हें परास्त हो कर लौट जाना पड़ा। जातिको प्रधान भाखाओं का नामकरण हुआ है। थोड़े दिन बाद वराहपतिने विजयरायके पुबके साथ केय रके बाद तण राजा हुए। उन्होंने वराह और अपनी कन्याका विवाह करनेके बहानसे नारियन मुलतानका लङ्गाहा राज्य अधिकार किया। किन्तु शीघ्र भेजा । विजयराय अपने प्रियपुत्र देवराज का विवाह ही हुसेनगाह म्लेच्छधर्मावलम्बो लङ्गाहाराजपत, दूदि करने के लिए वराहराजामे पाये। यहां वराहपतिक मिति, कुकुर, मोगल, जोहिया, योध और सैयद सेनाओंके | पड़यन्वसे राजा विजयराज और उनके आठ मौ ज्ञाति- साथ तण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आ पहुंचे। उस कुटुम्म मारे गये। देवराजने वराहपतिके पुरोहितके समय वराहसार भो म्लेच्छ राजाके साथ मिल गये। घर भाग कर अपने प्राण बचाये। यहां उनके चिरशत तया के पुत्र विजयरायके पराक्रमसे सभी परास्त हुए और वराहगण उन्होंके अनुवर्ती हुए थे । धार्मिक पुरोहितने पीठ दिखा कर भाग गये। तर्ण के विजयराय, मकर, जब देखा कि राजकुमारकी रक्षा करना अब मुगकिल जयतुग अन्नन और राक्षस ये पांच पुत्र थे। . है, तब उन्होंने अपना यस व उन्हें दे दिया और मकरके पुत्र देशावने अपने नाम एक बड़ा इद उनके साथ एक पात्रमें भोजन करने लगे। इस तरह खुदाया था । मकरके वशधर ममी सूबधार थे, जो इस देवराजके प्राण बचे ! समय "मकर सूतार" कहलाते हैं। जयतुनके रतनसिंह। वराहोंने तर्पोत अधिकार कर लिया । कुछ दिनो के और चोहिर ये दो पुत्र थे । रतनसिंहने विध्वस्त विक्रम लिए भहिजातिका नाम तक इतिहाससे विलुप्त हो गया।

  • इस राजपूतशाखाका इस समय चिन्हमा भी नहीं है। देवराजने कुछ दिन छद्मवेधसे एक योगोके पायसमें

महुत दिनों से ये मुसलमान हो गये हैं। पराहमें ही बिताये और फिर वे भूतवनमें मामाके यहां