पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८२६

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मोद ७५५ होने लगे। इसके बाद जब शेख इमाम उदोनने काश्मोर विद्रोही नवायको प्रायः वार्षिक १०३०००, २० मायको के गुलाबसिंहके विरह विद्रोह ठाना, तब झींद राजने जमींदारी जम्त कर राजाको टो गई। विद्रोह दमनमें अंगरेजों को महायता के लिए अपना | इसके अलावा राजाको सगरूर के निकटवर्ती वार्षिक सैन्यदल भेजा था। इस व्यवहारमे पूर्व के १० हजार प्रायः १३८०००, रु. पायक १३ ग्राम दिये गये और रुपयेको अथ दण्ड उन्हें लोटा दिया गया और माय हो। उनके मान्यस्वरूप विद्रोहो मिर्जा प्रकपरके दिनोस्य युध ममाल होने पर अंगरेजीसे कृतघ्नता स्वरूप वार्षिक वासभवन भो अपंपा किया गया। राजा फर्जन्द दिल- ३ हजार रुपये पायको भूसम्पत्ति भो मिलो। इसके सिवा वान्द रसिक-उन्त प्रतिकाद नामको उपाधि राजा अंगरेजोंने यह भो म्वीकार किया कि वे उनके उत्तगः | स्वरूपसिह बहादुरको मिनी । उनके मान्यके धिकारीसे किमी प्रकारका कर न लेंगे। मोद-राजने | लिये तोपसंख्या भी बढ़ाई गई तथा उन्हें पोर इसके बदले अपना मन्चटल अंगरेजोंके वावहारमें रखा | भी कई एक अधिकार मिले। मङ्गकरके सार इनके और राज्यमें सड़क की मरम्मत करन, रुतदामप्रथा,मतो. अधीनस्थ मामन्तमें गिने जाने लगे पोर अपुवक अवधा दाह पोर शिशुहत्या बन्द करने की प्रतिज्ञा भी को।। में गजाको मृत्य होने अथवा उत्तराधिकारी नाबालिग हुमके अलावा उन्होंने बाणिज्य ट्रयों के ऊपर जो ग्राम रहने पर उचित वावस्या करने का निश्चय किया गया। दनी और रफतनो शुल्क लगता था उसे भी उठा दिया। १८६३ ई० में गजाको "नाईट ग्राण्ड कमाण्डर टार यफ राजाके इस व्यवहारमे खुश हो कर गवगटने उन्हें इण्डिया"को उपाधि मिली। १८६४ ई.के १६ जन- और भी वार्षिक १०००, २० पायको एक भूमम्पत्ति | वरोको राजाको मृत्यु हुई। इसके बाद उनके पुत्र दी। वीरप्रकृति ममरकुगल मुहि रघुवीरमि' मिहामन मिपाही-विट्रोइक ममय भी दके राजा स्वरूपसिंह पर पमिपित हुए। गद्दी पर बैठने के माथ हो इनका सबसे पहले विद्रोही सैन्यको दमन करने के लिये दिलो- ध्यान दादरीको पोर प्राकर्पित हुपा। वहांको प्रजा की ओर अग्रसर हुए। वहां उनकी मेना प्रभूत परा नवीन राजस्व जो उन पर निर्दारित किया गया था, देने- क्रमक साथ युद्धक्षेत्रमें भागे लड़ कर सटिश मेना. को राजी न हुई। पन्तमें लगभग पचाम गाँवक नोग पतिको प्रशसाभाजन हुई थो । बादलोमरायके युद्ध खुलमखुल्ला बागी हो गये। उन्हें दमन करनेके लिये झींद एक सैन्यदलने ऐसी वोरता दिखलाई थी. कि रघुवीरसिंहने २००० योदामोंको एकत्र किया। विद्रोह रणस्थल में ही मंगरेज सेनापति उन्हें धन्यवाद दिये ठण्टा किया गया और पुनः पूर्ववत् शान्ति विराजने लगी। विना रह न सके । इस पुरस्कारमें सेनापतिने एक तोप इन्होंने १८७८ ई के अफगानयुहमें मंगरेजोको खूब उन्हें दी जो लूट कर नाई गई घो। फिर झीदको दूसरी सहायता की थी। सगरूर गहरका इन्होंने ही संस्कार सेनाने दिलीसे २० मील उत्तर वाघपतका पुल विद्रो- किया । इनके समयमै झौंद, दादरी पोर सफिदम हियोक हाथमे बचाया था। सोमे मोरटसे मंगरेजी | सपतिकी परम मीमा तक पहुंच गया था। १८८७९ में सेना यममा पार कर वार्णाडके साथ मिल गई थो। पचलको पाए। बाट एनके पाठ वर्ष के पोते झांसी, होसार, रोहतक प्रभृति म्यानों के बहुतसे विद्रोही| रणवीरमि राजमिहासन पर पारद धुए। इनके झीदमें प्रवेश कर यहाके अधिवामियोको उत्तेजित करके | नावानगी तक राजकार्य रेजेन्मो धारा चलाया गया। थे, किन्तु राजाने अत्यन्त दनतासे सभी विद्रोहियोंको १८४८ में राज्यका पूरा भार इन पर सुपुर्द एमा, दमन कर डाला। इनकीएरा उपाधि इस प्रकार है-फरजन्द-र-टिन . अंगरेज गवर्म गटने राजाको ऐसी प्रभूत सहायतामे बन्द, रसिक-उल-इतिकाद, दौलत-इ-गलिसिया, राज. प्रत्यन्त सन्तुष्ट हो प्रकाश्मरूपसे सतनता पौर धन्यवाद -राजगान महाराज मर रपवोरसिंह राजेम्ट्र यहादुर । प्रकट किया । . झींदसे २० मोल दविद्यस्य दादरीके | लो० सी० पाई. ३०, के. सी० एस० पाइ। इन्हें