पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/९१

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८५ जयंसाम गणि--जयापोड़ करते और उन्हें पादरपूर्वक पाहार करते है। यदि जयस्कन्धावार ( म० को. ) वह शिविर जिसे विनो-- मंरा वश होता तो में ऐसे साधुनों को राज्य में निकाल राजा जोसे हुए स्थान पर स्थापित करते है। बाहर करतो ।" रानी कुढ़ गई. थों, उन्होंने मुनिगज | जयस्तम्भ (म पु०) जयसूचकः स्तः । जयसूचक को मुना सुना कर दो चार वात' कहो किन्तु मुनि. | स्त, वह स्तंभ जो विजयी राजाले . किमो देशको । राजने उम पर कुछ भी ध्यान न दिया। विजय करने के उपरान्त विजयके स्मारक स्वरूपं बनाया , कुछ ही दिन बाद, मनिनिन्दाके महापापसे रानीको जाता है । कुष्ठय्याधि हो गई। उनका अनुपम मीन्दय घृणाका | जयस्वामी (प्त पु.) कात्यायन कल्पसूबके मौणकार। " स्थान बन गया । शरीरमे दर्गन्ध निकलने लगी पोपजयश्यामा (म'० स्त्रो. ) जैनों के १२वें तीर्थदर विमनं ।। खून प्रादि बहने लगा। महारानोको थोड़े ही दिनों में नाय भगवानको माता। ऐसो दुर्दशा देव कर राजाको वड़ा. पाथर्य हुआ; जयो (म स्त्रो०) जीयतेऽनया जि करणे अच् ततष्टाप । उन्होंने रानौसे पूछा-"मच तो कहो, एकाएक तुम्हारा १ दुर्गा। २ जयन्तोक्ष, जैतका पेड़ । जगतो देसो। शरीर ऐमा क्यों हो गया "महारानी जयसेनाको सच तिथिविशेष. वयोदगी, अष्टमो और सतोया तिथिका मुच हो बड़ा पथात्ताप हया था। उन्होंने कहा-"नाथ!! नाम जया है। ४ पुण्यदायिनी हादशो तिथि का नाम। . उस दिन जो मनिराज पाहार के लिए प्राय थे। उनकी | ५ घरोतको, हड़। दुर्गा को एक सहवरोका 'नाम । मैंने खूब निन्दा को यो. उन्हें बरे वचन भी कहे थे। . दुर्गा। वराहगल के पोठस्थान पर भगवतो जयादेयोको शायद उमो महापाप का यह फल है।" जयसेनको बड़ा | मति विराजमान हैं । ( देतीमा० ४७०१५२ ) - गामा दुख हुपा। उन्होंने कहा ---"पापिनो ! यह तन क्या यागमो यक्ष छोंकर । ८ नोजदूर्या, हरी दूध। १. पग्नि किया ? मुमिनिन्दाक महापापमे तुम नरोके घोर मन्यत, परणीका पड़ । ११ पताका, धजा । १२ वरन दुःख सहने पड़ेंगे; यह तो कुछ भी नहीं है।' रानी औपविशेप, बुखार हटानेवाली एक प्रकारको दया। मरकका नाम सनतको कवठठों व उसो समय पालको १३मगा. मांग । १४ जपापुष्य, गुड़हल का फम्स, पड़एला । में बैठ कर मुनिराज पाम यनमें पदचों और बड़ो। १५ सोलह माटकापमिसे एका १६ एक प्रकारका पुराना भतिसे प्रणाम कर मनिराजसे करने लगो-"रुपा-याना। इसमें बनाने के लिए तार लगे होते थे। १० पाये। मिन्धो ! मेरा अपराध क्षमा कोजिये। मैंने प्रजामताम | तोका एक माम । १८ माघमामको शक एकांदगी । १८ मुनिनिन्दा को है। पाकर नरक दुामे मेरा उहार जवापुष्पच, अलका पेड़ । २० महोदन्तोहत, केयार कीजिये ।" मुनिराज को महारानोके परिवर्तनमे बड़ा या कोकका पे४। २१ पपराजिता, विणकाम्तालता, कप पा । उन्होंने नन्हें धर्म का उपदेश दिया। रानोको कोवाठोठी । २२ शालमनोहत, गेमका पेड़।' : मुनि महाराजके व्यवहारसे जैनधर्म पर पोर भी यहा | जयानन (म० की.) स्रोतोलनमैद. सुरमा । .. हो गई। उन्होंने सम्यग्दा नपूर्वक गृहस्यधर्म ( पाठ | जयादित्य ( म० पु०) कामोरके एक विख्यात 'रामा मूलगुण पांच अनुयात पादि) पषसम्मान किया। पौर कागि कात्तिके प्रणेता । यस्य, काश्मीर और नया . गई देसो। सके बाद भक्तामरस्तोब २८३ श्लोकके मन्यका . . . . | जयाय ( म मो.) जयन्तो पोर पड़ा. . . जल छिड़कते रहनेमे कुछ दिनोंम उमफा कुष्ठरोग मी जयानन्द- एक मैथिल कादि। ये करण कायस्य । आता रहा। इसमे महारानी जयमेनाको जैनधर्म पर २ घेतन्यमनल प्रीता। पप यहां हो गई । ( महामरकथा नो. २९) | जयानोक (म.पु. १ पदराजाने एक पुत्रशा नाम जयसीम गन्दि-एक वित्यात जैनपण्डित। रम्हाने पर विराट् गाजाकै एक माईशा नाम ! जय देयो।.. प्रयस्तित्तिको रचना की है। ! जयापीड़ (म.पु.) कामोरके एक राशा। मपामा.