पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१०२

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मुवारिज उल-मुल्क-मुमुक्षुता . राणाका आगमन-संवाद पा कर निजाम-उलमुल्कने । इन्धुवर्ग उसे अह्मदनगर दुर्गमें ले गये। वहां उन्होंने सुलतान मुजफ्फरको सूचित क्रिया, कि चालीस हजार देखा, कि दुर्ग शोंके हाथ लग गया है । अव घुड़सवारके साथ राणा इदर पर चढ़ाई करनेके लिये कोई रास्ता न देख मुवारिज उल-मुल्क वाणी नगरको वागरमें अपेक्षा कर रहे है । इस समय इदरकी सैन्यः | भागा। संख्या पांच हजार घुड़सवारसे अधिक न थी । फिर ____ अमदावादके शासनकर्ता कियाम उल-मुल्क मुवा. इनमें भी कुछ अह्मदनगरमें रहते थे । सुलतानके | रिज उल-मुल्कको सहायतामें आ रहा था। किन्तु राहमें मन्त्रियोंने यह संवाद कुछ समय तक छिपा रखा। किंतु उसने सुना, कि अमदावादके युद्धमें मुवारिज मारा जब उसने देखा, कि इस प्रकारका संवाद गुप्त रखने गया । पीछे तीसरे दिन जब उसे मालम हुआ कि यह से भविष्यमें विपदको आशङ्का है, तव सुलतानके निकट संवाद सरासर झूठा है, तव मुवारिजको लानेके लिये यह वात खोल दो। सुलतान मुजफ्फरके निजामके | आदमो भेजा। दोनों रावणपाल नामक ग्राममें मिल कर सहायतार्थ उनसे सलाह पूछने पर उन्होंने उत्तर दिया | राणाका पोछा करनेकी तय्यारी करने लगे। किन्तु कि निजाम-उल-मुल्क अक्सर वृथा युद्धको आशङ्का । जव उन्होंने सुना, कि राणाने चित्तोरको यात्रा कर दी, किया करता है। अतएव वादशाहके गुप्तचर द्वारा जव | तब मुवारिज उल मुल्क फिरसे अमदनगर लौटा। तक कोई संवाद न भेजा जाय, तब तक इस विषयमें मुदारिज उल मुल्क श्य-१म मुबारिज उल मुल्क- हस्तक्षेप करना उचित नहीं। का लड़का। इसका असल नाम युसुफ था। सम्राट अतः सुलतानने वजीरोंकी बात मान कर उस समय | | वहादुर शाहने निजाम खाँको मुवारिज-उल-मुल्ककी कोई सेना नहीं भेजी । इधर राणा सजधज कर इदरमें | पदवी दी थी। आ धमके। निजाम उल-मुल्कने इस समय मुगारिक मुगलिगा ( अ० पु.) बहुत बढ़ कर कहो हुई बात, लंबी उल मुल्ककी उपाधि धारण की थो। कोई उपाय न देख । चौड़ो वात, अत्युक्ति । उसने युद्ध करनेका संकल्प किया । किन्तु उसके बंधु- मुबाहिसा (अ० पु०) किसी विषयक निर्णयके लिये चान्धवोंने उसे ऐसा दुःसाहसिक कार्य करनेसे रोका। होनेवाला विवाद, वहस । क्षोभ और अपमानसे वह जल भुन रहा था, इस कारण मुमकिन (अ० वि० ) सम्भव, जो हो सकता हो। किसाको वातको कान न दे अह्मदनगरको यात्रा कर मुमतहिन (अ० पु०) परीक्षा लेनेवाला, इम्तहान लेने- वाला। अमदनगर जाते समय राइमें सुलतान द्वारा भेजी | मुमुक्षा (सं० स्त्रो०) मुक्तिमिच्छा, मुच-सन्, अटाप । गई सेनाके साथ मुव रिज-उल-मुल्क को भेंट हुई। अब मुक्तिको इच्छा, मोक्षकी अभिलाप । सवोंने मिल कर उक्त नगरमें राणाका मुकाबला करने की मुमुक्षु (सं० पु०) मोक्तुमिच्छतोति मुव-सन, तत उ। दूढ़ प्रतिज्ञा को। अतः अझदनगरमें कुल १२०० घुड़ मुक्ति अभिलापो, जो मुक्तिको कामना करता हो। सवार और १००० पैदल सिपाही नगरको रक्षा के लिये | "एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः । दुर्गमें रख वे लोग युद्धके लिये आगे बढ़े। राणाको कुरु कम्व तस्मात्त्व पूर्वः पूर्वतरं कृतम् ॥" . सेनाके नगर पहुंचने पर ४०० मुसलमान घुड़सवारने (गीता ४।१५) घुस कर एक एक कर सभीको यमपुर भेज दिया। यहां मुमुक्षु को चाहिये, कि.वे निषिद्ध और काम्यकर्मका तक, कि ४०० सेनाने प्रायः २० हजार हिन्दू सेनाको छिन्न परित्याग कर श्रवण और मननादि द्वारा भगवत्को भिन्न कर बहुत दूर तक खदेरा था। किन्तु ऐसा प्रभाव आराधनामें प्रवृत्त होवें। दिखलाने पर भी कोई फल नहीं निकला। क्योंकि, | सुमुक्षुता (सं० स्त्री० ) मुमुक्षोर्भावः तल-टाप् । मुमुक्षय, राणाकी सैन्यसंख्या बहुत ज्यादा थी। मुवारिजके | मुमुक्षका भाव या.धर्म.। . .