पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/११८

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१५ मुर्शिद कुली खाँ खण्ड के समीपस्थं आरण्य प्रदेशमें अपना वासस्थान | उसे पिला दिया। फल यह हुआ, कि उदरामयरोगसे निर्दिष्ट करके खाधीन भावसे राज्य करते थे। मुर्शिद किङ्करसेन थोड़े ही दिनोंके मध्य कराल कालका शिकार कुली लाख चेष्टा करके भी उसका दमन न कर सके। । बना। त्रिपुरा, कोचविहार और आसामके हिन्दूराजे उस जब कभी राजस्व देने में विलम्ब होता, तव नवाव हिंदू समय भी स्वाधीन भावसे राज्य करते थे। कुलो खाँ उन: जमिदारोंको कठोर दण्ड देते थे। उन्हें पालकी आदि से कर स्वरूप वार्षिक कुछ भेंट लिया करते थे। वे लोग पर चढ़नेका हुकुम नहीं था। उत्सवादिमें आतशबाजी भी नवावको हाथी, गजदन्त, मृगनाभि आदि विविध कोई भी नहीं कर सकता था । किन्तु उनके राजकर्म- बहुमूल्य द्रष्य उपहारमें दे कर उसके बदले खिलअत पाते | चारी अधिकांश हिन्दू थे। .. थे तथा नवावकी श्रेष्ठता स्वीकार करते थे। राजशाहीके जमींदार उद्यनारायण नवावके कहते हैं, कि कुलो खाँने जिस समय वादशाहके अत्यन्त प्रियपात्र थे। किसी घटनामें उदयनारायणके समीप कागज-पत्र पेश किया, उस समय प्रधान कानूनगो आत्महत्या करने पर उनकी जमिदारी रामजीवनको दी रूपनारायणने उस पर अपना हस्ताक्षर करनेसे इन्कार गई। . . किया था। इस कारण नवाबने मौखिक मित्रता दिखा . नवाब वैशाख मासके आरम्भमें एक एक पुण्याह कर पीछे उन्हें अनाहार मार डाला। इस घटनाके प्रायः करके तीस लाख रुपया राजस्वं और विविध उपहार श्चित्त स्वरूप नावने दर्पनारायणके पुत्रको पितृ-पद | दिल्ली भेजते थे। प्रदान किया। राजशाही देखो। भूषणाके जमींदार सीतारामरायने वहांके मुसलमान मुर्शिदकुली जब दीवान थे, उस समय हुगलीका | फौजदार आवू तूरपको मार डाला था । इस कारणे फौजदार स्वाधीनभावसे कार्य करता था। किन्तु कुली नवावने अत्यन्त ऋद्धं हो वक्स अली खाँके अधीनं खाने वङ्गालका दीवान और नाजिम दोनों पर पाकर एक दल सेना भेज कर सीतारामकी जमींदारी लूटने दिलोके वादशाहके आदेशानुसार वाली वेग नामक और उन्हें कैद करनेका हुकुम दिया। स्टुवार्टने लिखा एक व्यक्तिको हुगलोका फौजदार बनाया। पहले फौज- है, कि सीताराम पकड़े जा कर मुर्शिदाबाद लाये और दार मुजिया उद्दीन जैन उद्दनने फरासी और भोलन्दाजों | शूली पर चढ़ा दिये गये तथा उनके स्त्रीपुत्र दासरूपमें की सहायतासे नबावको सेनाके साथ चन्दननगरके | विक गये। इस समय दिल्लीमें सिंहासन ले कर बड़ी समीप युद्ध किया। नवावका एक हिन्दूसेनापति जिस- गड़बड़ी मच रही थी। आखिर आजिम उस्सानका बड़ा को नाम दलीप बा दिलायतसिंह था, एक फरासी- लड़का फर्रुखसियर १७१३ ई० में दिल्लीके सिंहासन पर कमानके गोलेसे पञ्चत्वको प्राप्त हुआ। वैठा। कुलो खाँ वङ्गालके दीवान और नाजिम बनाये जैन उद्दीनने अनुचरों तथा पेशकार किङ्करसेनक गये। नवावने भी यथासमय उपयुक्त उपहार और साथ दिल्लीको यात्रा की। वहां उसकी मृत्यु होनेके | वार्षिक राजख भेज कर वादशाहका सम्मान किया। वाद किङ्करसेन मुर्शिदावाद लौटा और निर्भयसे मुर्शिद इसके पहले अगरेज कम्पनीने औरङ्गजेबसे विना कुलो खांको वाएं हाथसे सलाम बजाया। नवावके शुल्कके अथवा कम शुल्क पर नाना स्थानोंमें कोठी खोल इसका कारण पूछने पर उसने कहा, कि "जिस दाहिने | रखी थी। किन्तु मुर्शिद कुलीने देशी वाणिज्यकी उन्नति- हाथसे वादशाहको सलाम किया है, उस हाथसे किस | के लिये अंगरेजोंकी प्रार्थनाको ग्राह्य नहीं किया तथा प्रकार नवावको सलाम करूगा ।" जो कुछ हो, नियमित शुल्क दे र वाणिज्य करनेका हुकुम दिया। नवाचने उस समय उसे कोई सजा न दी । पीछे | इस पर अगरेजोंने वादशाहके निकट दूत भेजे । अंगरेजी तहविल हड़प करनेके अपराधमें किङ्करसेनके पाजामे | दूत बडे. कौशलसे सैयद अवदुल्ला और सैयद होसेन चिड़ाल ठूस दिया और मैं सके दूधमें नमक मिला कर भलो खाँ नामक सम्राटके दोनों वजीरों मुट्ठीमें ला कर