पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४१

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१३८ मुसलमान वहुत प्राचीन समयसे ही मुसलमान-वणिकोंके साथ इस लामधर्मके माननेवाले मुसलमानोंके दो भारतीय रमणियोंका सम्बन्ध हुआ था। आजैदकी फिर्के हैं। एक शिया और दूसरा सुन्नी । भारत, तुर्की- विवरणीसे इसका प्रमाण मिलता है। यह विवरणी| स्तान, तुरुष्क और अरवमें सुन्नो और फारसमें शिया- सन् १९६ ई०में तय्यार हुई थी। उन्होंने उस समय सम्प्रदायका प्राधान्य दिखाई देता है । महम्मदके चलाये सिंहली स्त्रियोंको चरित्र हीनताका विषय वर्णन किया मुक्तिमार्गके अनुसरणमें परस्पर पृथक पथका अवलम्बन करने पर भी इन दोनों सम्प्रदायोंमें विशेष रूपसे मत आविसिनी और निनो जातीय मुसलमान भारतमें प्रार्थाक्य दिखाई देता है । सुन्नी सम्प्रदायका कहना है, हवशी, हवसी और सिदि नामसे विख्यात हैं। भारत कि महम्मदके बाद आखूबकर, उमर, उस्मान और अली सम्राट् और देशीय राजन्यवर्गके यहां गुलामो या नौकरो | ही खलीफा पदके उत्तराधिकारो थे । किन्तु इसके किया करते थे। पीछे भारतमें मुसलमानोंकी संख्या विपरीत शिया-सम्प्रदायवालोंका कहना है, कि महम्मदके वढ़ गई। वम्वई नगरके कई कोस दक्षिण समुद्र किनारे बाद उनके दमाद और भ्राता अली खलीफा पदका यथार्थ जंजीरावासी सिद्दि सम्प्रदायने स्वाधीन भाव तथा उत्तराधिकारी हैं और ये खुदाके भेजे दूत हैं। दोईण्ड प्रतापसे राज करता था। दानों सम्प्रदायके भारतीय मुसलमान भिन्न भाव और ___ भारत प्रायद्वोपके उत्तर-पश्चिम किनारे गुजरात, भिन्न स्थानों में खुदाईकी इबादत किता करते हैं। किंतु सिन्धु, कच्छ और वम्बई प्रदेशमें और राजपूतानेमें वोहरा इन दोनों फिमें शेख, सैयद, मुगल, पठान हैं। इनमें नामके मुसलमान दिखाई देते हैं। ये शेख-उल जवलके | पिता-पुत्रमे भी मत-प्रार्थक्य दिखाई देता है। कहीं कहीं चेलोंसे उत्पन्न हैं। अपनेको इस्माइल कहा करते हैं। वेटा सुन्नों तो पतोहु शिया दिखाई देता है। वोवो वाणिजा ही इनकी प्रधान जीविका है। फातमाके गर्भसे अली पैदा हुए। इनके लड़केवाले मह- सिन्धु प्रदेशमें मेमन या मेहमन नामसे जिन मुसल- म्मदके नाती सैयद या सायादत (प्रभु.) नामसे मशहूर मानोंको वसाई वे हिन्दू वंशधर हैं। सुना जाता है, कि हैं। ये दोनों फिकों को मानते हैं। शेख खास कर अरवी सिन्धुवासी एक निःसन्तान हिन्दू अपनी स्त्रीके साथ पुत्र है। मुगल, पठान, सैयदक सिवा सुन्नी फिर्केवाले सभी कामनासे ६०० वर्ष पहले मुसलमान बन गया। महमून शेख कहलाते हैं। इसलिये इनमे अनेक मिस्री भी मिल सुमानीने बुगदाद नगरमें उलकी कामनाकी पूर्त्तिके लिये | गये हैं। पठान अफगानो खान्दानक है । ये भारत ईश्वरसे प्रार्थनाकी। इससे उसको सात पुत्र उत्पन्न पर आक्रमण करनेवाले मुसलमानों के साथ आ कर हुए। उक्त मुसलमान वंशधर आज भी सुभानी नाम- भारतके सामा पर बस गये हैं। बलूची अफगानों के का बड़ा आदर करते हैं। गुजरात और ववई विभाग- लाथ यहां आये। ये सभी वार और युद्ध-व्यवसायो में इस श्रेणोके मुसलमान वाणिज्य कर जोविका थे। कितने हो अपने देशके उपजानेवाली चीजों को चलाते हैं। ला ला कर भारतके विविध बन्दरों में वेवते भौर अन्य सुमाता आदि भारतीय द्वीपपुञ्जके पश्चिम अञ्चलमें चीजें यहांसे खरीद कर अपने देशमें ले जाते हैं । भारतके भी इस लोम धर्मका प्रचार कर मुसलमानोंने अपनो | विविध स्थानीमें ये कावुली कहे जाते हैं। संख्या बढ़ाई है। वहांको पहाड़ी जातिने यद्यपि इस- मुगलोका 'वेग' अलकाव है। ये अरवी मुसलमानों लामधर्मको स्वीकार कर लिया हैं। तथापि इनके आदिम की अपेक्षा गुढ़ काय ( मजबूत ) और गोरे होते है, तैमूर- धर्म (मूर्तिपूजा ) का भाव इनके हृदयसे नहीं गया है। के अभ्युत्थानसे ही भारतमे मुगलों का अभ्युदय हुआ। चीनदेशमें जो मुसलमान हैं, वे इस लामधर्मके प्रचार इसके बाद बावरशाहसे यहादुर शाह तक मुगल-सम्राटों करनेमें विशेष यत्नशील नहीं दिखाई देते। ये इस लाम के राजत्व कालमें भारत भरमें मुगलों का प्रभाव फैल धर्मके नियमोंका विधिवत् पालन नहीं करते। जाने पर भी दूसरे अरवी मुसलमान-सम्प्रदायकी तरह