पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४२

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मुसलमान मुगल इसलामधर्मफे प्रचारमें यत्नशील नहीं हुए। किसी। मुसलमान नहीं बने हैं। वे हिन्दु देव-देवियों में आज भी हिन्दूको या किसी अन्य अन्तर्ज गुलाम जातिको वल- भी आस्था रखते हैं। कही कहीं वे मानसिक पूजा भी पूर्वक इन्होंने मुसलमान नहीं बनाया, किन्तु यह विश्वास करते देखे गये हैं। नहीं होता, कि मुगलों के इतने दिनों के शासनमें किसी भारतीय मुसलमानधर्म । ने इस लामधर्म का परिग्रह नहीं किया। सम्राट अक- कई जातियोंसे मुसलमान समाजका संगठन हुआ वर एक नया धर्म चलानेके प्रयासी हुए थे। इतिहास है, इससे इनके धर्म में पाझंक्य दिखलाई देता है। के जानकार अच्छी तरहसे जानते है, कि अकवरकी कृपा | स्वय धर्म प्रवर्तक महम्मद जिस कुरानको लिख गये थे, प्राप्त करने के लिये कितने ही हिन्दुओं ने स्वधर्म परि- उसको पढ़नेसे किसी तरह मुसलमान धर्मको निन्दा त्याग किया था। सम्राट औरङ्गजेबने इस लामधर्ममें कई नहीं की जा सकती । वुढा सनतानधर्म, हिन्दूधर्म सौ हिन्दुओं और कितने ही अनार्य जातिके लोगों को | प्रौढ़ जैन और बौद्ध, युवा ईसाई धर्म, आदिके व्यवहारिक मुसलमान बनने पर वाध्य किया था। इसके सम्वन्धः | आचारका निर्णय कर शिशु महम्मदीयधर्मने सत्य और में केवल इतना ही कहा जा सकता है, कि पूर्णके मुसल- मुक्तिका द्वार खोल दिया है, उससे महम्मदीय अभि- मानों की तरह मुगल धर्म फैलानेमें कटिवद्ध न हो राज्य व्यक्तिको सारवत्ता और सार्थकता सूचित होती है। मह- विस्तार करनेमें यत्नशील हुए थे। धनागम और राज्य- म्मदने "एकमेवाद्वितीयम्" पथका अनुसरण कर एक विस्तारको बलवतो याशा उनके धर्म और मोक्षके पथ- । ईश्वरकी ही उपासना प्रचलित की है । कुरान पढ़नेसे यह को पार कर काम और अर्भके मार्ग पर दौड़ रही थी। स्पष्ट मालूम होता है, कि विविध सम्प्रदायके प्रति विशेष पास्तविक ही वे धर्म चर्चा और ज्ञानप्राप्तिमें परांम ख। वीतराग न थे। किन्तु धर्मप्रचारक प्रसङ्गमें महम्मद् या हो गये थे। और तो क्या बहुतेरे हो अरबी भापामें : महम्मदीयोंने इस साधुवाश्यकी रक्षा की थी या नहीं, लिखित कुरानके एक दो आयतों के सिवा और कुछ। यह मुसलमान-समाजको लड़ाईके इतिहासमें लिखा है। नहीं जानते थे। उनके अध्ययनके लिये फारसो और विधमी काफिर पिछले युगके उद्धत और जयस्पद्धी हिन्दुस्तानी भाषाओं में और सर्वसाधारणके लिये अङ्ग : मुसलमानों द्वारा जैसे दण्डित किये गये थे, पहलेचे रेजी, तामिल, मलय और ब्राह्मो आदि भाषाओं में कुरान. । इस्लाम ( अर्थात् महम्मदीय धर्मके अभ्युत्थानके समय) का अनुवाद किया गया था। | सम्प्रदायके हाथसे उनको वैसी कठोर ताड़ना सह्य भारतीय मसलमान सम्प्रदायमें केवल हिन्दुस्तान' करनी पड़ी थी या नहीं यह अनुमान किया जा नहीं पा उर्दू भाषा प्रचलित है। केवल ऊ'चे दर्जे के मुसल- : सकता। यथार्थमें इस्लाम-धर्मके प्रतिष्ठाके विषयमें मानों में फारसी भापाका व्यवहार दिखाई देता है। और एक बात है, जातिवरिता तथा कोराइस आदि उच्च शिक्षा प्राप्त हिन्दूजातियों में रह कर और अपनी : विविध मूर्तिपूजक सम्प्रदायोंके विट्ट पभावने उस समयके मानान्धताके कारण भारतीय मुसलमान सम्प्रदाय मुसलमान-सम्प्रदायको प्रतिहिंसाकी अग्निमें झोंक दिया मुगलवंशके अन्तसे आज २०वीं शताब्दीके अंगरेजी | था। इसमें सन्देह नहीं, कि उस नवमुसलिम सम्प्रदाय शासन तक नहीं हो सके। केवल जाट, राजपून, | अपने पक्ष-समर्थनके लिये तलवार हाथमें ले कर अपनी पङ्गालियों में अनेक धर्म का महान् परिवत्तन दिखाई | आकांक्षाओंको वलवती रखने के लिये सचेष्ट था। पीछे- देता है। बङ्गालमें मुसलमान नवावने अपने कठोर के विलासी और भोगप्रिय खलीफों की वर्तमान राज्य- शासन और प्रवल अत्याचारसे प्रजाको उत्पीड़ित कर लालसा और धनलोभने उस समयके मुसलवानोंको और उसे प्राणदण्डका भय दिखा कर मुसलमान बनाया डाकू और लटेरो बना दिया था। यथार्थमें धर्म प्रचार 'था। उनकी इस समयको अवस्थाका पर्यवेक्षण करने | उनका मुख्य उद्देश्य न था । - उनके साम्राज्य विस्तार से मालूम होता है, कि वे आज तक कलमा पढ़ कर की कल्पनाके साथ साथ महम्मदीय राजधर्म समूचे