पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुसलमान १४१ मकवरे, मसजिद होने से साधारण मुसलमानोंके पवित्र। इन सब मुसलमान साधु पुरुषोंके मकबरोंके सिवा तीर्थ और पूजाका कारण हो उठा है। सिवा इसके | - हिन्दू सम्प्रदाय-विशेषके प्रवर्तको द्वारा भी हिन्दू मुसल- एशियाके अन्यान्य स्थानों और भारतवर्ष में मुसलमान मानोंका सम्बन्ध हुआ था। १५वीं शताव्दोके अन्तमें धर्मवीरोंको कत्र है। इन सभी महा पुरुषों ने अमानुषिक गुरु नानक द्वारा सिक्ख धर्म प्रचलित हुआ। इसमें 'क्रियाकलाप दिखा कर सर्वसाधारणके प्रिय और पूज्य हिन्दू मुसलनमान दोनोंकी पद्धतिको एकत्र कर दोनों यने हैं। मुसलमानों के संग साथसे हिन्दू भी ऐसो सम्प्रदायोंको एक अविच्छिन्न बन्धनमें बांधा गया था। शक्तिसम्पन्न इन सव महात्माओं को विशेष सम्मानको' सिक्ख-धर्मावलम्बी हिन्दू-मुसममानमें कोई प्रभेद नहीं दृष्टि से देखते हैं। और तो क्या, उन उन महापुरुषों के है। सिक्ख देखो। स्थानमें आ कर मानसिक पूना देने में भी हिन्दू संकुचित बादशाह अकबर शाहके राजत्वकालमें हिंदू-मुसल- न होते थे। मान सम्मिलित सिक्खधर्मने बड़ो उन्नति लाभ की थी। ___ बुगदाद नगरके समीप जाल नगरके शेख अबदुलका ' उनके पुत्र (सलीम) जहाँगोरके शासनकालमें इसलाम- दिरको (घौप-उल्-आलम् ४७१ हिजरो ) मसजिद् मुल-, धर्ममें अधिक विश्वास रखने के कारण सिक्खधर्मवालों तानके निकटके सुलतान सन्बुवका मकवत भी पूजनीय को कठोर यातना सहनी पड़े थो। उसी समयसे भाज है। लाहोरके (अन्तःपातो दीपालदालके ) शाह- : तक महम्मदीय सम्प्रदायसे सिक्खोंका घोर विरोध चला शमसुद्दोनका मकबरा भी पूजाई है । लाहोरके उक आता है। साधुके बहुतसे हिन्दू भा चले थे। लोगों का कहना है, मुगल सम्राट अकबरके चलाये (इलाही) धर्म और कि उनका कोई धर्मप्रवण हिन्दू चेलों ने उनसे प्रार्थना हिन्दू-सम्प्रदाय द्वारा चलाया सिक्ख धर्म दोनों इस- की कि मैं गंगास्नान करूंगा। उन्होंने कहा, कि तुम लाम और ब्राह्मण्य धर्मके सम्बन्ध और संमिश्रणमें विशेष अपनी आखें वन्द कर लो। आखें बन्द कर लेने पर सहायक हुए थे। फिर कुरानको नोति-पद्धतिक विरुद्ध उसने देखा, कि आत्मियों के साथ गङ्गा मानो सैकतमें और सम्पूर्ण रूपसे असङ्गत होने पर भी भारतीय मुसल- अवस्थान करती हैं। परित्र जाह्नवीके स्पर्श तथा स्नान मान हिंदू क्रियाकाण्डक अनुष्ठानमें विशेष श्रद्धा रखते करनेके वाद प्रफुल्लित हो कर उन्होंने जैसे ही नेत्र खोले थे। और तो क्या वे हिन्दू महापुरुषों के आदर करने वैसे ही अपनेको गुरुके निकट बैठे पाया। शम्सुद्दोन्के , तथा अनेक उत्सवों में सम्मिलित होनेसे विचलित नहीं इस तरहका अलौकिक चमत्कार देख कर हिन्दू-सम्प्रदाय होते थे। इस तरह महम्मदोय-सेवक-मण्डलोके लिये उनके प्रति विशेष अनुरक हुआ था। अव भी हिन्दू निन्दनीय हाने पर भी भारत-मुसलमान समाजमे धीरे उनके मकवरेको रक्षा करते हैं । वे मुसलमानों को अपना धारे साधु पूजाके रूपमे मूर्तिपूजा घुस पड़ी है। यह अधिकार देना नहीं चाहते। नानकसे पहले महात्मा-कवीर एकेश्वरवादको चला ___दिल्ली नगरके कुतव उद्दोनकी मसजिद्, मुलतानके कर हिन्दू-मुसलमानोंको एकता-सूत्रमें बांध इन दोनों . शेख वहादुरदीन जकरियाका मकबरा और फरीद उद्दीन सम्प्रदायोंके सम्मानभाजन हुए थे। यह धर्म सम्प्र- को मसजिद, पानीपतक शेख शरीफ अली, कालन्दर दाय कवीर-पन्थी कहलाता है। और बदायूके शाह निजामुद्दीन अटलियाका मकबरा - लाहोरके अन्तर्गत ध्यानपुर-निवासी -बावालाल आदि हिन्दू और मुसलमानों के लिये उन साधुओं के नामक एक हिंदूने दरवंश वावालाली नामसे एक नया विचारण-क्षेत्र होनेसे तीर्थ हो गया है । सिवा इनके धर्म साम्प्रदाय चलाया। शाहजहांके पुत्र दारा शिकोह- बङ्गाल और मध्य और दक्षिण भारतके बहुसंख्यक पीरों- के साथ उनके धर्ममतक संबंध बहुत आलोचनायें के स्थानमें हिन्दुओं के भी प्रतिनिधि देखे जाते हैं। और वादानुवाद हुआ था । चन्दभान शाहजहानो नामक पीर देखो। । फारसी प्रथमें उनके धर्ममतका विवरण लिखा है। Vol, XVIII, 86