पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७१

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१६८ मुसलमनधर्म ही संमाधिके लिये व्यस्त होना पड़ता है। यहां तक, कि | पर सिनाबंध वा चोली और दमनी वा शिरवंधनी कोई कोई मुसलमान राजा वा नवाव मृत्युके बहुत पहले नामक दो अतिरिक्त वन रहता है। इसके बाद मृतको समाधिके लिये एक स्थान चुन लेते हैं। कभी कभी | आँखमें काजल, हाथमें अंगूठो वा पैसा दे कर सुरमा 'उस स्थानमें बड़ी बड़ी इमारत बनवाते और उद्यान | लगाया जाता है तथा कपाल, नाक, हथेली और पैरके लगाते हैं। वह इमारत आकारभेदसे समाधिमन्दिर, | तलवे, घटने आदि स्थानोंमें कपूर छुला कर समाधि- 'मसजिद, मुसेलेउम चा दरगाह कहलाती है। स्थानमे लाया जाता है। राहमें शव ढोनेवाले कलमा • मृत्युके चार पांच दिन पहले प्रत्येक रोगोको वसिका पढते जाते हैं। वा वसिउतनामा (मृत्युकालका इच्छापूर्वक दान समाधिस्थानमें जो कत्र खोदी जाती है उसकी गह- पत्र) लिख कर उपयुत्ता उत्तराधिकारी स्थिर करना पड़ता| राई पुरुष होने पर कमर तक और स्त्री होने पर छाती है। मृत्युकाल उपस्थित होने पर एक कुरान जानने तक होती है। इस स्थान के लिये मृत शक्तिको मूल्य वाला मुल्ला वुलाया जाता और वह सुरा-ए वासिन देना पड़ता है। शिया और सुन्नी सम्प्रदायको फनमें सुनाता है। इस समय कलमा-ए तयीव और फलमा ए- बहुत फर्क रहता है । सुन्नो उपरोक्त शियाप्रणालीसे • शहादतका पाठ किया जाता है । मृत्युश्वास पहुंच विलकुल उलटा कब्र खोदता है। जाने पर शरवत पिला कर प्राणवायु निकानेकी कोशिश निम्न श्रेणी के मुसलमान समाधिस्तम्भ स्वरूप कन- की जाती है। के ऊपर मट्टोका एक टोला खड़ा कर देते हैं। जो कुछ मृत्यु हो जाने पर शवका मुंह ढक दिया जाता और धनवान हैं वे कत्र पर पत्थर गाड़ देते है। नवाव और उसके दोनों पैर एक साथ बांध दिये जाने हैं। पीछे वादशाह बड़ी बड़ी इमारत बना कर समाधि-मन्दिर वह लाश कब्रिस्तानमें पहुंचाई जाती है। दफनानेके | स्थापन कर गये हैं। आगराका ताजमहल इसका उज्ज्वल पहले उसे स्नान कराया जाता है। इस समय गोसल- निदर्शन है। समाधिके ऊपर ईटोका स्तम्भ खड़ा करना मुर्दा शो आ कर मट्टी खोदता और उसमें जल डाल कर वा नाम खोदना मुसलमान-शास्त्र-निषिद्ध है, पर आज शवदेहको सुला देता है। पुरुष होने पर नाभिमूलसे | कलके मुसलमान इस नियमका पालन नहीं करते। ले कर जानु तक और स्त्री होनेसे छातीसे ले कर पादः। मुसलमानमात्रको ही शवके पीछे जाना उचित है। तल तक सफेद वस्त्र द्वारा ढक दिया जाता है। इसके निसक-उल मस्मविह नामक ग्रन्थमे लिखा है, कि मुसल वाद कुछ गरम और ठंढे जलमे तौलिया भिगो कर उस- मान, यहूदी अथवा जो कोई धर्मावलम्बो क्यों न हो, से शवके सारे शरीरको रगड़ कर धोते हैं। नाक और अशक्त हाने पर उसे कमसे कम ४० कम तक शवके मुहमें जो कुछ मैल रहता है उसे भी साफ किया जाता पीछे पीछे जरूर जाना चाहिये। मुसलमान शास्त्रमें है। इसके बाद वजू समाप्त कर फिरसे वेरके पत्ते मिले | निम्नलिखित ५ 'फर्ज क्रफाइया' मुसलमानमात्रका अवश्य हुए जलसे शवका शरीर धोया जाता है। जलमें जितनी कर्तव्य बतलाया गया है,-१ सलाम करने पर सलाम चार धोया जायेगा, उतनी वार फलमा-ए-शहादत करना। २ पीडितको देखना और उसके मङ्गलके लिये "उश हद दो अन्ना-ला-इल लाहा इलाहे ल्लाहा वहदहु ला | खुदासे इबादत करना। ३ पैदल कब्रिस्तान तक शवके शरिक लहु वो उश हहो अन्ना महम्मदन आवदहु दे | | पीछे पोछे जाना। ४ निमन्त्रण स्वीकार करना। ५ छोंकनेके बाद 'अलहमद-भो-लिल्लाह' कहनेसे उसी समय रसुलहु"--का पाट होता है। ___गोसलकार्य शेप होने पर कफ्फन या नया वस्त्र पह 'यर-हमक-अल्लाह' कह कर उसका प्रत्युत्तर देना। हम लोगोंके देशमे भी छींकनेके बाद 'जीव' और प्रत्युत्तरमें नाया जाता है। पुरुप होने पर लुगी वा इजेर, अलफा, 'त्वयासह' कहनेकी प्रथा है। ' 'पिरान वा कुर्ता ( यह गले से लगायत एड़ी तक लंबा समाधिके बाद तीसरा दिन तीज, जोरारात वा फूल रहता है) और लकाका वा आवरण वन तथा स्त्री होने