पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१८५

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२५२ मुहर्रम उन्होंने आत्मीय स्वजनोंको आलिङ्गन करते हुए कहा, । दो ।' इतना कह कर हुसेन पहली नमाजसे उठ ज्यों हो मेरे आत्मोसर्गके बाद कोई भी विस्वरे हुए बालोंसे छाती दूसरी वार घुटना गिराने पर थे, त्यों ही सुमारने तेज पोट पोट कर न रोना, विलाप करना मूोंके लिये है, | शस्त्राघातसे हुसेनके शिरको घड़से अलग कर दिया। ज्ञानियों के लिये नहीं । विपद और विरहमें धैर्य रखना ही हुसेनके मरने पर ओमर और अबदुल्लाने आत्मीय कर्तव्य है।" इस प्रकार आत्मीय स्वजनोंको उपदेश दे स्वजनोंकी मृत देहको संग्रह कर उनके ऊपर नमाज-इ. कर धर्मवीरने एक बार रुद्रमूर्ति धारण को। इस बार जनाजा का पाठ किया और सवोंकी दफनाया । उनके प्रवल आक्रमणको शव सेना सह न सको, युफ्रे- टिसके दूसरे किनारे तक खदेरी गई। किन्तु अफसोस ! एक व्यक्तिकी देखरेखमें हुसेनका मुण्ड रख कर सभी दूसरे दिन घुड़सवार और पैदल सिपाही खुली नामक हुसेन प्यासे थे, आगे कदम नहीं बढ़ता था, जल मिला अपनी अपनी पेटीमें दो एक मुण्ड बंद कर सिरियाको चल सहो, पर उसो समय उन्हें तृष्णात परिवारवर्गको याद । दिये। दुवृत्त खुलो बर्छकी नोकमें हुसेनके मुण्डको आ गई, जल पोना हराम समझा और घोड़ परसे उतर गांथ कर शहर शहर दिखाता चला। गये। इस समय परोराज-पुत्र जाफर उनकी मददमें . वहां पहुंचा। उसने अलक्ष भावमें युद्ध करके शनुकुल- जहां रक्तसे तरावोर मुण्डहीन हुसेनका दल बल को निर्मूल करनेका अभिप्राय प्रकट किया। किन्तु । । गिरा पड़ा था, कुछ सिपाही हुसेनके परिवारवर्गको हुसेनने धोरमावसे कहा, 'जाओ जाफर ! मैं तुम्हारी । उसी जगह घसीट लायो । उस मर्मभेदी दृश्यको देखनेले सहायता नहीं चाहना । तुम अमानुष हो, तुम्हारे साथ | पत्थर भी पिघल जाता है। हुसेनको प्रियपत्नी शहर- । वाणो और उसकी बहन जैनाब और कुलसुम उस दृश्य- मानुषका युद्ध नहीं शोभता | मैं अधर्म युद्ध हरगिज ! नहीं करूंगा। फिर युद्ध करनेका हो क्या प्रयोजन । को देख कर बेहोश हो पड़ी, चीत्कार कर विलाप करने मुहर्त भरके लिये इस संसारमें आया हूं, मेरे आत्मोय लगों, 'भाई महम्मद तुम कहां हो, अपने प्रिय नाती हुसेन- को दुर्दशा देख जाओ। जिस गालको तुम इतने आदर- सभी स्वजन मुझे छोड चले गये, तब फिर मैं ही अकेला । से चूमते थे, आज उस गाल पर रुधिर पीनेवाले भीषण क्यों रहूं? जाओ, खुदा तुम्हारा कल्याण करें।' अव । खड़ गका चिह्न है। एक बार देख जाओ, तुम्हारे ही जाफर कर ही क्या सकता था, रोता पीटता चला गया। आत्माय परिजन गृहशून्य, वान्धवशन्य निराश्रय हो गये अभी हुसेन निरस्त्र थे, प्राण देनेको तैयार थे। किन्तु हैं-अनाथ हो कर हाहाकार कर रहे हैं। जैनाव और क्या आश्चर्य, कोई भी शन सामने नहीं आता । जो । कुलसुमका विलाप सुन कर शत्रु के भी नेत्रोंसे आंसू उनका मुख देखता वही लौट जाता था। आखिर वहा था। इस प्रकार वन्दिभावमें वे सबके सब सिरिया आयजिदके अनुगत सुमार-जिल-जौसनको साथ ले नर- लाई गई। पिशाच सिनान कार्यक्षेत्र में उतरा । जागीरके लोभसे | दोनों ही लुब्ध थे। किन्तु उन्हें भी खुली आँखोंसे हुसेनका मुण्ड लाते समय राहमें अनेक प्रकारका इनके समीप आनेका साहस न हुआ। समार मुख- आश्चर्य दृश्य दिखाई दिया था। इमाम इसमाइलने लिखा है, कि मौसल शहरमें मुण्डको ला कर एक मस- को ढक कर सामने आया। हुसेनने उसे सम्बोधन कर जिदमें रख दिया गया और बाहरसे ताली भर दी गई। कहा, 'तुम कौन हो? मुंह परका परदा हटाओ। पहरूने झरोखेसे देखा था, कि एक सफेद मूछोंवाले लम्बे सुमारने. परदेको हटा लिया, उसके मुंहमें दो बड़े वराहदन्त थे, वक्षास्थल कृष्णवर्ष से चिहित था। हुसैनने जवानने पेटोसे हुसेनका मुण्ड निकाल कर अजस्त्र आँसू बहाया और उसे वार बार चूना । इस प्रकार एक उसका उद्देश समझ कर कहा, 'थोड़ी देर ठहर जायो। एक कर सभी पितृपुरुषोंने आ कर मुण्ड ले चुम्यन और आज ईदवार ( शुक्रवार ) है. मुहर्रमको दशमी है, जहर- का अच्छा समय है, फरज रफत्-इवादत खतम कर लेने । अश्रुजलसे अभिषेक किया था। कहीं वे लोग मुण्ड ले