पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२०९

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'२०६ मूत्रविज्ञान गर्भकालका आक्षेप रोग ही प्राचीन चिकित्सकोंके मतसे | अभाव, आदि लक्षणोंसे भी रोगको अवस्था ज्ञानी इसका मूल कारण समझा जाता था। किन्तु अभी जाती है। परीक्षा द्वारा स्थिर हुआ है, कि सैकड़े पीछे २०के मूत्रमें पलवुमेन विद्यमान रहता है और वह कभी कभी आक्षेप मूबपरीक्षाकालमें केवल पलवुमेन ही पाया जाता है, सो नहीं। अणुवोक्षण द्वारा देखनेसे उसमें एपिथि- रोगके बाद ही मूत्र में देखा जाता है। गर्भावस्था में लियेल सेल, ट्यूब काष्ट और रक्तकणिका ( Blood- पक्षाघात, अन्धता (Amaurosis), शिरम्पीड़ा, भ्रमि Corpuscle) नजर आती है। (शिर घूमना ), रक्तस्राच, सूतिकाक्षेत्रज उन्मत्तता आदि । नोखाके साथ भी मुत्रमें अण्डलाला पाई जाता है। वाली औषधको व्यवस्था कर तथा रोगोको बलकारक रोगका कारण निर्णय कर मूत्र और पसीना लाने- प्रसव के बाद मूलमें प्रायः एलबुमेन नहीं रहता। । पथ्य दे। मूत्र लानेवाली ओषधियोंमें ये सब प्रधान हैं, गर्भिणीके मन में एलवुमेन रहनेके दो कारण है, १ला टिडिजिटेलिस वा ४ वुद, टिंफेरिपरक्लोराइड १० से गर्भावस्थामें स्वभावतः ही भृणके पुष्टिवर्धनार्थ और १५ वुद, एसिटेट आव पोटाश १० से १५ ग्रेन। इन्हें रा विवृद्ध जरायु कत्तक भेइन वा शिरामें रक्तपरिचा- । १ औंस जलमें मिला कर प्रति दिन ३ वार करके पीनेसे लनाका ध्याघात होनेसे रक्तमें अधिक परिमाणमें एल- । वहुत लाभ पहुंचता है । पलवुमेनका परिमाण हास धुमेन रहता है। इसी कारण गर्भके पांच महीने तक करनेके लिये गालिक एसिड, रिष्टिल, पार्थिवाल, फिट- प्रायः मूत्रमें एलवुमेन नहीं देखा जाता। प्रथम गर्भ- करी और पोटाश आइओडाइडका व्यवहार करना चाहिये। 'क्तीको अकसर यह रोग हुआ कर०ा है। क्योंकि, उन शरीर और पैरको गरम रखने के लिये सर्वदा प्लानेलको का उदर सहजमें नहीं फैलता जिससे उदरस्थ शिराके' काममें लाना चाहिये। अपर अधिक दवाव पड़ता है । चिकित्सकगण इसे पूर्ववत्ती हाथ पैरकी कौषिक झिल्लीसे रक्तका जल-भाग ( Predisposing) कारण ही बतलाते है, यदि निकल जानेसे ही शोथ उत्पन्न होता है। गर्भावस्थामें नहीं होता, तो प्रायः सभी स्त्रियोंको यह पीड़ा हो रक्तका परिवर्तन और विवृद्ध जरायुके चाप द्वारा रक्तके सकती थी। इसके अतिरिक्त कोई हठात परिचालनका ध्याघातही इसका कारण है। इस शोथमें हिमसेवन वा तजनित हठात् पसीनेका सूख जाना आदि मिस मेलिािमाशिव मध है। उहोपक कारणोंसे भी (Exciting causes ) अण्ड- उपरोक्त मूखकारक औषधका भी प्रयोग किया जा सकता लाला निकला करती है। है। १बुद माक्षिक विषके टिंचरको १ औंस जलमें गर्भावस्थाका पलबुमिन्युरिया प्रसवके बाद प्राइ- ' अच्छी तरह मिलावे, प्रति दिन आध डाम १ छटांक जल- दाण्य रोगों ( Bright's disease ) में परिवर्तित हो में मिला कर दिनमें तीन वार करके सेवन करनेसे बहुत सकता है। पेशावके साथ शरीरसे एलबुमेनके वाहर लास पहुंचता है। होमियोपाथ गण इसके विशेष पक्ष- निकलनेसे भ्रषको पुष्टि में बहुत बाधा पहुंचती है। इसी पाती हैं। .कारण अकसर इस रोगाक्रान्त गर्भवतीका गर्भपात होते. पूर्वोक्त औषधका सेवन करनेसे यदि पीडाको देखा जाता है। शान्ति न हो, वरन् दिनों दिन वृद्धि ही देखी जाय, तो . इस रोगका प्रधान लक्षण शोथ है। जरायुके ऊपर अकाल प्रसव कराना ही उषित है, नहीं तो कठिन सूतिका • दवाव पड़नेसे पैरमें रस जम सकता है। किन्तु जव-मुंह क्षेत्रज आक्षेप वा वृक्कमें ( Kidney ) ब्राइटस रोग और हाथ फुल जाता है, तब मूलके एलवुमेनकी परीक्षा उत्पन्न हो सकता है। ७ वा वे मासमें अकाल कर चिकित्सा करना उचित है। इस समय कभी कभी प्रसव करनेसे गर्भस्थ सन्तानके नष्ट होनेका डर नहीं • समूचा शरीर फूट जाता है। शिरापोड़ा, भ्रमि- दृष्टिका रहता; वरन् इस प्रकार रोगले पीड़ित प्रसूति यदि 'पूर्ण पा