पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२७०

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२६७ पाण्डु रोग देखो। भृत्तिजौन-मृत्यु सिनके हो दीप अधिक जलते हैं। परन्तु इस तेलसे। तिब्बत तथा पूर्व में मणिपुर, श्याम, शानराज्य और अधिक प्रकाश होने पर भी विपद्की सम्भावना रहती किराती प्रदेश में भेजा जाता है। है। किरोसिन या पेट्रोलियम लालटेनके तैलपालको मृत्भाण्ड (0पु0) पाण्ड रोगभेद । मट्टी खानेसे जो उत्तप्त कर वाष्प उत्पन्न करता है उसके फट जाने पर पाएड रोग होता है उसे मृत्पाण्डु कहते हैं। घर जल जा सकता है। टूटे फूटे वर्णर ( Burner )| अथवा वर्णरके मुहको अपेक्षा कम वत्तो दे कर रोशनी नृत्पान (सं० श्लो० ) मुन्निम्मित पानः। मृत्तिकानिर्मित जलाना ठीक नहीं, क्योंकि ऐसी हालत में आग लगनेकी । पाल, मट्टीका वरतन। सम्भावना रहती है। अतएव घरमें किरोसिनका दोप मृत्पिण्ड (सं० पु० क्ली० ) मृन्निर्मितः पिण्डः। लोष्ठ, जला छोड़ कर नहीं सो जाना चाहिये। इससे और भो । ढेला। दूसरी दूसरी विपत्ति आ सकती है। इससे घरको दायु मृत्फली (सं० स्त्री०) मृवि फलनमस्याः ङीप । कुष्ठौपध । इतनी पतली हो जाती है कि सांस रुक जाती जिससे मृत्यत्र । सं० पु०) कुम्भकार, कुम्हार । मृत्यु तक हो जाया करती है। कभी कभी इसके धूए के मृत्मा (सं० स्त्री० ) व्याधि, रोग! कण श्वांसक्रिया में बड़ा व्याघात पहुंचाते हैं। इससे मृत्यु (संपु०) त्रियतेऽस्मादिति मृ- (भूमिजमृङभ्यां श्वासकृच्छ रोग हो कर पीछे मृत्यु हो सकती है। शुरुत्यको उण ३।२१ ) इति त्युक् । १ यम । २ कंस । ऐली अनेक दुर्घटनाओंके होने पर भी इस देशके (भागवत१०।११४६ ) ( पु. क्लो० ) ३ प्राणवियोग, प्राण लोग पैसेके ख्यालसे देशी तेलके स्थानमें विदेशी विपको ' छूटना, मौत । पर्याय-पञ्चता कालधर्म, दिष्टान्त, घरमें स्थान देते हैं। याजकल प्रायः प्रत्येक घरमें करा- नाश, मरण, निधन, पञ्चत्व, मृत, मृति, नैधन, संस्था, सनको वत्ती जलतो है ! छोटेसे बड़े तक सभी करासन काल, परलोकगम, दीर्घनिद्रा, निमीलन, अस्त, अवसान, जलाते हैं। केवल भारत हीमें नहीं वरन् व्यापारियों- भूमिलाम, निपात, विलय, आत्ययिक, अप्यय । का जिन जिन सभ्य देशोंमें आन-ज्ञान है वहां भी करासिन (शब्दरस्ना०) : जलाया जाता है। यूरोपके सभ्य राज्यों, अमेरिका के दर्शनशास्त्रकी आलोचना करनेले यह स्पष्ट मालूम भिन्न भिन्न राज्यों, अफ्रिका महादेश, तुर्किस्तान, फारस, होता है, कि मृत्यु और कुछ भी नहीं है, केवल देह- अरव आदि राज्यों तथा सभ्यजाति-शासित द्वीप समूहों : इन्द्रिय का वियोग और संयोग है। जन्म होनेसे मृत्यु में पेट्रोलियम और करासिन तेल बहुतायतसे : अवश्यम्भावी है और फिर मृत्यु होनेसे भी जन्म अवश्य- -विक्रोके लिये भेजे जाते हैं। १८८६ ई०से यूनाइटेड । भावी है। जन्म के साथ मृत्युका सम्बन्ध और मृत्युके टेट्स अमेरिका और वओके साथ पेगोलियम-व्यापार- साथ जन्मका सम्बन्ध है। • की प्रतिद्वन्द्वतामें रूसने ख्याति लाभ की है। प्रतिवर्ष ! इस संसारमें जीवने जन्म ले कर नाना प्रकारका इङ्गलैण्ड, स्काटलैण्ड, यूनाइटेड स्टेट्स, एशिया, रूस, कार्य करके नाना प्रकारका अदृष्ट सञ्चय कर रखा है। ट्रेट सेल्टमेन्ट और अन्यान्य देशोंसे २ करोड़से अधिक (कर्मजन्य संस्कार ही अदृष्ट पदवाच्य है ) ये सव भदृष्ट रु०का मिट्टीका तेल और दूसरा दूसरा खनिज तेल संस्कार सूक्ष्म शरीरमें निबद्ध हैं। जीवकी जव जरा भारतवर्ष आता है। १८८८-८६ ई०में केवल यूनाइटेड | उपस्थित होती है, तब वह सांपकी के चुलके समान इस टेट्ससे २०६५४००० तथा पशियाटिक रूसते १७५- जीर्ण शरीरका परित्याग करता है। इसीका नाम मृत्यु है। १६००० गैलन तेलकी यहां आमदनी हुई थी। ___ आत्मा अजर, अमर और सुखदुःखरहित है तथा उसके भारतवर्ष में जो तेल आता है उसका अधिकांश नेपाल, जन्म नहीं', मृत्यु नहीं, सुख नहीं और दुःख भी नहीं है। लंका तथा सिन्ध पिसिन् रेलवे हो कर पश्चिम सीमा । आत्मा सच्चिदानन्दरूपी है। अव प्रश्न होता है, कि यह वत्ती लुनवेला, शिविस्थान, टिरा, कावुल, लहाख, ' जन्म मृत्यु होती है किसकी ? वार वार कौन जन्मग्रहण