पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मेघ २८१ ओरकी वायु आ कर अग्निशिखाको सन्ताड़ित करती है। इस प्रकार मेधकणों और वाप्पकोपोंमें ठंड लगनेसे वहांका वायुस्थित उद्जन अग्निके साथ दग्ध हो कर जलीय आकार धारण करते ही चर्पा क्यों नहीं होती? वाष्पमें परिणत हो जाता और पतला हो कर ऊपर वह जलके रूपमें ऊपर क्यों उठ जाता और तव वहांसे उठता है । पीछे वाहरकी वायु भा कर खाभाविक ) वर्षा करता है ? इसका कारण यह है, कि वाष्पकणके नियमानुसार उस वायुशन्य स्थानको अधिकार कर जलीय पिण्ड बहुत बारीक ( Extreme tenuity of लेती है। इसीलिये उत्तापयुक्त स्थानमें वायुका सन्ता- the aqueous envelope ) होनेके कारण वे मोटी इन खभावतः ही अधिक हुआ करता है । यही कारण है, वायुसमुद्रको तहको भेद कर नीचे नहीं आ सकते। कि सूकिक्षा ( Ecliptic) के मध्यवत्ती स्थानमें अर्थात् क्योंकि, मेघणमें आपेक्षिक गुरुत्व कभी कभी वायुसे ककट और मकरक्रान्ति सीमाके मध्यस्थ भूभागमें सूर्या | अधिक देखा जाता है। को गरमी अधिक पड़ने के कारण वायुको गति प्रवल हो। यथार्थमें जो मेघपुञ्ज आकाश स्थिर हो कर रहता जाती जिससे कभी कभी तूफान आ जाया करता है। है वह खभावतः ही सङ्कर्षणके कारण (जल) भारी हो यही दक्षिण पश्चिम और उत्तर-पूर्व मौसूम चाय और कर नीचकी ओर उतरता है। सूक्ष्मसे अपेक्षाकृत गुरु- सृष्टिका एकमात्र कारण है । वायु देखो। । भार मेघकणा जव नीचे उतरती है उस समय परि- . सूर्यके ऊत्तापसे इस प्रकार ऊपर उठी हुई वाष्पराशि शुष्क वायुस्तरमें संयुक्त होते ही उसके जलप्रधान कोष आकाशमै धीरे धोरे मेघका आकार धारण करती है। शुष्कवायुमें मिश्रित हो अदृश्य हो जाते हैं। इस प्रकार 'ढ लगनेके कारण उसकी फणा (Molecules) आपसमें मेघ निम्न भागमे जितना ही अदृश्य होगा उतना ही मिल कर धनी हो जाती और पीछे वही कणा जलविन्दु उसके ऊगर नये वापकोष दिखाई देंगे। इसी कारण में परिणत ही कर पृष्टिके आकार ( Rains) में पृथ्वी ऐसे मेघोंसे प्रायः वृष्टिपात होते नहीं देखा जाता है। पर गिरती है। शीतकालमें वायुके स्वाभाविक उत्ताप फिर शून्यमार्गमें सभी समय एक वायवीय शक्ति की न्यूनताके कारण तथा भूपृष्ठ पर संलग्न जलीय (Atmospheric force ) रहती है अर्थात् जलराशिसे वायु जिसमें उत्तापकी मात्रा अधिक रहती है, कुहेसेका विकर्षण प्रभावमें हमेशा उत्थित जलराशि (Ascending आकार धारण करती है। पीछे उस पर जब ऊपरको | current ) अर्ध्वगामी होनेके कारण वृष्टि होनेमें बाधा शीतल वायुका दवाव पड़ता है तब वह ओस (Dews), डालती है। जिस गतिले ऊर्ध्वगामी वाष्पस्रोत वाय- मैं बदल जाती है। सागरको भेद कर ऊपर उठता है, परिष्कार ऋतुम अर्थात् मेध और कुहेसेके कणोंकी परीक्षा करनेसे देखा गया है | जिस दिन आकाशमें मेध नहीं रहता, वाष्पकोषका पतन- कि वे वुद कठिन उपादनभूत (Solid drops) नहीं हैं, वे । परिमाण उससे कहीं कम होता है। यही कारण है, सूक्ष्मतम वायुपिण्ड (Air bells वा Vesicles और सावुन कि Cumuli नामक मेघराशि प्रातःकालकी अपेक्षा मध्य- के फफोले जैसी हैं। वे वापकोष ठंढ लगनेके कारण जव । कालमें ही सबसे ऊंचे स्थानमें उठ जाती है। सन्ध्या- धनीभूत होते; तव वृष्टि होती है। ऋतुविशेषकी जलवायु कालमें ज्यों ज्यों सूर्यका उत्ताप घटता जाता है त्यों त्यों के उत्तापके परिवर्तनके साथ साथ उन वाप्पकोपोंकी वाष्पस्रोतकी गति क्षीण होने लगती है तथा मेघ · धोरे परिणति कुछ और देखो जाती है । शीतनधान उत्तर धीरे अपेक्षाकृत उत्तप्त वायुस्तरमें अवतीर्ण हो क्षयको यूरोपभागमें अगस्तके महीने उसका-व्यास (Mininium)| प्राप्त होता है। जलके विकर्पण और सपण ( Era- कमसे कम -०००६ इञ्च और दिसम्बर के महीने ज्यादेसे | poration and condensation ) के कारण मेधको ज्यादा प्रायः००१५ हो जाता है। यह नियम सभी उत्पत्ति और वृष्टिपरिणति हुआ करती हैं। . जगह एक-सा नहीं रहता, कहीं कहीं मईके महीनेमें वृष्टिपात जो जीव और जगतका मङ्गलजनक है, वह इसमें न्यूनता देखी जाती है। | किसीसे भी छिपा नहीं है। जगत्के आदिग्रन्थ ऋग्वेद Vol. IVIII TI