पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३१२

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३०६ मेरुमा-पेरुशिखर यह पर्वत देवताओंका आवासस्थल है । सुमेरु देखो।। पृथ्वी के दोनों भवाके बीच गई हुई सीधी कल्पित रेहा २ जपमालाके वीचका बड़ा दाना जो सब दानोंके | (Axis) ऊपर होता है। इसीसे जपका आरम्भ और इसी पर मेरुदु-चौद्ध मतानुसार एक बहुत बड़ी संख्याका नाम । उसको समाप्ति होती है। तन्त्रमें लिखा है, कि जप- मेरुदुहितु (सं० स्त्री० ) मे रुकन्या। करनेके समय मेरुका उल्लङ्गन नहीं करना चाहिये, करनेसे मेरुद्वश्वन (सं० त्रि०) मरुदर्शनकारी। यह जप निष्फल होता है। मेरुदेवी (सं० स्त्री०) मे रुकी कन्या और नाभिकी पत्नी जव करमालासे जप किया जाता है, तब मध्यमाके दोनों जो विष्णुके अवतार ऋषभदेवकी माता थी। गर्ग मेहमाने जाते हैं। इसी मेरुको शक्ति भिन्न और मेरुधामा (सं० पु०) १ शिव, महादेव । २ वह जो मेरु सभी विषयों में जानना होगा। शक्तिविषयों स्वतन्त्र पवत पर रहता हो। नियम है। साधारण शक्तिविषयमें तर्जनीके दोनों ही | मेरुध्वज (सं० पु० ) राजभेद । पर्व मेरु है, किन्तु श्रीविद्या विषयमें कुछ प्रभेद है, वह यह मेरुनन्द (सं० पु०) खारोचिप मनुके एक पुत्रका नाम । है, कि उसमें अनामिका और मध्यमाके दोनो ही पर्व | मेरुपीठ-प्राचीन तीर्थभेद । मेरु माने जात हैं। ३ एक विशेष ढांचेका देवमन्दिर । मेरुपुत्रो (सं० स्त्री० ) मेरुको कन्या। यह पट्कोण होता है और इसमें १२ भूमिकाएं या स्खण्ड | मेरुपृष्ठ (सं० क्ली०) १ मे रुशिखर । २ आकाश | ३ स्वर्ग। होते हैं। भीतरमें अनेक प्रकारके मोखे और चारों | मेरुप्रभ (सं० त्रि.) मेरुवत्प्रभासम्पन्न, जिसकी छटा दिशाओं द्वार देते हैं। इसका विस्तार ३२ हाथ और | मेरु पर्वत-सो हो। ऊंचाई ६४ हाथ होनी चाहिये। ४ वीणाका एक अंग | मेरुप्रभवन (सं० क्लो०) वनभेद । ( हरिवंश ) ५पिङ्गल या छन्दशास्त्रको एक गणना जिससे यह पता मेरुप्रस्तार (सं० पु०) मेरुवत् कल्पित छन्दोयोजन । लगता है कि कितने कितने लय गरुक कितने छंद हो मेरुवलप्रमाईिन (सं० पु०) यक्षराजभेद । सकते हैं। मेरुभूत (सं० पु०) जाति विशेष । मेरुआ (हिं० पु०) खेत वरावर करनेके पाटेका छोर पर- मेरुभूतसिन्धु (सं० पु० ) पहव देशका दूसरा नाम । का भाग जिसमें रस्सियां बंधी होती हैं। | मेरुमन्दर (सं० पु० ) पर्वतभेद । (भागवत ५।१६।१२) मेरुक (सं० पु०) मिनोति क्षिपति गन्धानिति मिरु, संज्ञायां मेरुमती-सह्याद्रिपाद-प्रवाहित एक नदी। इसके किनारे कन्। १ यक्षधूप, धूना । २ ईशानकोणमें अवस्थित एक वहुतसे तीर्थ हैं। (देशावली) देश। (वृहतस० १४१२६) मेरुमूल (सं० क्लो० ) मेरुसानु, पहाडका निचला भाग। मेरुकल्प (सं० पु.) एक बुद्धदा नाम । मेरुमित्र-विवादचन्द्र नामक ग्रन्थके प्रणेता। किसी मेरुफूट (सं० पु० ) मेरुङ्ग। किसीने इनका नाम मिसरू मिश्र रखा है। मेरुग्रन्थि (सं० पु०) धुक्कक, गुरदा। मेयन्त्र (सं० क्लो०) १ वीजगणितमें एक प्रकारका चक्र । मेरुटू-वौद्धमतानुसार एक बहुत बड़ी संख्या। २ चरखा। मेरुतुङ्ग (सं० पु० ) १ जैनाचार्य । इन्होंने कङ्कालाध्याय- | मेरुवर्ष (सं० क्ली० ) वर्षभेद । (मार्कपु० ६०७) वार्तिक नामक वैद्यकग्रन्थ और १३६० ई०में प्रवन्ध- मेरुवनस्वामी (सं० पु०) राजतरङ्गिणी वर्णित एक चिन्तामणिकी रचना की। २ मेघदूतकाव्य, महापुरुष- व्यक्ति । चरित और सूरिमन्द्रकल्पसारोद्धार नामक तीनों ग्रन्थ के | मेरुवज (सं० क्लो० ) नगरभेद । प्रणेता। जिनप्रभसूरिने शेपोक्त प्रन्यकी टीका लिखी | मेरुशास्त्री-अर्कसंग्रहोपन्यासके प्रणेता, ब्रह्मानन्दके गुरु । है।३ लघुशतपदोके रचयिता। .. . १८५६ ई०में ये विद्यमान थे। मेरुदण्ड (सं० पु० ) १ पीठके वीचकी हड्डी, रीढ़। २ मेरुशिखर (सं० पु० ) १ मेरुको चोटो। २ हठयोगमें Vol. XVIII 78