पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२०

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मेवाड़मोल-मेवात ३७ लोग पहले हीसे मेवाड़राजके सेनादलमें शामिल हो | किया। साम्राट् वावर शाहके साथ फतहपुर-युद्धमें कर युद्ध विग्रहादिमें मदद देते आये हैं। मेवातीसरदार हसन खां निहत तथा राजपूतगण परा __ वर्तमान राणाका नाम है, राजा चन्द्रशेखर प्रसाद- भूत हुए ! हसन खांके पुतने वावरका अधोनता सिंह देव वहादुर। स्वीकार की। मेवाड़भोल-राजपूतानेके मेवाड राज्यवासी भोलजाति ___दाक्षिणात्यके आदिलशाह-वंशके राजा आदिलशाहके विशेष । राजपूत वोरों के साथ युद्ध में वीरता दिखा कर प्रधान वजोर होमू (ये १५५६ ई०में पानोगतके मैदानमें ये लोग भो इतिहासमें प्रसिद्ध हो गये हैं। राणा प्रताप पराजित हुए थे) माचारोके मेवातो थे। हीमूकी मृत्युके सिंहकी भीलसेना ले कर मुगलवादशाहके साथ युद्ध | वाद यहांकं अधिवासियोंने सम्राट अकवर शाहको एक इतिहासप्रसिद्ध घटना है। भील देखो । विपुल वाहिनीके सामने बड़ो दृढ़ताकं साथ आत्मरक्षा मेवाड़ी (हिं० पु०) १ मेवाड-प्रदेशका निवासी। (वि०) | की थी। कुछ दिन बाद मेवात पुनः मुगलोंके हाथ पड़ा २ मेवाड़में रहनेवाला, मेवाड़से सम्बन्ध रखनेवाला। और यहो खानजादे अपने अपने क्षमता बलले मुगलराज्य. मेवात-दिल्लो राजधानीका दक्षिण-विभाग। मुसल- के सेनाविभागमें प्रवेश कर बड़े प्रसिद्ध हो गये थे। मानी अमलदारोमें मथुरा गुरगांव, अलवर और महम्मद शाहक राजत्वकालमे १७२० ई० करोव भरतपुरका बहुत कुछ अंश ले कर यह प्रदेश गठित हुआ किसी समय जाट-दस्युदल मेवातमें दिखाई दिया तथा था। यहाँक राजपूल सरदारगण दस्युवृत्तिके कारण १७२४ ई०कं वाच उन्होंने लट पाट कर समूचे मेवात इतिहासमे प्रसिद्ध हो गये हैं। यहां तक कि, ये दिल्लीवासी| प्रदेशका नष्ट भ्रष्ट कर डाला। जो कुछ हा, १७५५ ई०में पठान और मुगलोंको भा उत्त्यक्त करनेमें जरा भी न | जाटांका पराजित और राजच्युत कर राजा प्रतापसिंहने डरते थे। आईन-इ-अकबरो पढ़नेसे मालूम होता है, कि । अलवर दुर्ग अधिकार कर लिया। उस समयसे वह उसी यह प्रदेश सूवा आमाके अन्तर्भुत था। नारनौल, अल-। वंशके अधिकारमे आ रहा है । अलवरके वर्तमान महाराव वर, तिजारा और रेवारी नगर अपने सरदारके आधिपत्य राजा प्रतापसिंहके वंशधर थे। प्रतापके अभ्युदयके वाद और वीरत्वके प्रभावसे प्रसिद्ध हो गया था। मेवातका कहानी अलवर और भरतपुर सामन्तराज्यका मेवातक यादववंशीय राजपूत-सरदार राजा मंगल कहानोकं साथ मिला हुई है। सिंहका विवाह पृथ्वीराजको सालीसे हुआ था। पठान ___ मेवातकं सरदार-वंशधर मेवाती नामसे परिचित सम्राट वलबनने यहांके दस्युदल नेताओंको सम्पूर्ण हैं। वहादुर नाहरके वादसे वे खानजादा नामसे प्रसिद्ध रूपसे परास्त कर मेवात राज्य., अपना प्रभाव जमाया | हुए हैं। देशके अधिकांश अधिवासा हा मेव जातिसे तथा इसो समय दस्युप्रभाव उच्छेद करनेके लिये उन्होंने उत्पन्न हैं। मव जातिकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें मतभेद स्थान स्थान पर थाना मुकर्रर किया। पाया जाता है । मेवगणका कहना है, कि वे यादव, कच्छ तैमूर शाह जब भारतवर्ष आये थे उस समयकं | वाहा और तुयर राजपूतके वंशधर हैं किन्तु वहुतेरे उन्हें । प्रसिद्ध मेवाती सरदार बहादुर अपने शौर्यवोर्यके लिये | उस देशके आदिम अधिवासो मानते हैं । वहुर्ताका अनु- इस प्रदेशमें प्रसिद्ध हो गये थे। उन्होंसे दिल्लीराजदर- | मान है, कि ये लोग मीना जातिको दूसरी शाखा है। वारके विशेष विख्यात खानजादावंशका अभ्युदय हुआ। मेवोंमें ५२ थोक है। उनमेसे बड़े १२ थोक पाल और इसी वंशने विशेष दक्षता और विचक्षणताके साथ बहुत | छोटे गोत्र नामसे विख्यात हैं। मोना और मेव जाति- दिनों तक इस प्रदेशमें शासन किया था। में विवाह चलता था, सम्राट, अकबर शाहके समय ___वावर शाहके भारत विजय करनेके समय इसन खाँ। किसी विवाह-उपलक्षमें दोनों श्रेणोमें एक घोर गड़बड़ी खानजादा मेवातके प्रधान सामन्त थे।.तिजाराले उन्होंने मचो जिससे सम्राट ने उनका वैवाहिक सम्बन्ध उठा सपरिवार अलवर नगरमें आ , कर राजपाट स्थापित । दिया। Vol. XVIII 80