पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३२५

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३२२ शालों में इस जातिके मेषके रोए ऐसे छांट दिये गये हैं, sibirica ) मध्य एशियाले साइविरिया तकके विस्तृत कि उसे देखनेसे लकड़बग्घेका भ्रम होता है। मादाका स्थानों में जा कर रहता है । दल वांध कर बाहर निकलता मांस कोमल और खाद्योपयोगी. पर नर मेढका मांस है। प्रत्येक दलमें सौसे अधिक मेष रहते हैं। कातिक- अखाद्य होता है। मासमें मेढ़ा पहाड़की चोटी परसे उतर कर मेढ़ीके साथ २नीलगिरिके जंगली मेष (H. hylocrius) को | सहवासमें मत्त रहता है । भोर होने पर भी अन्य तामिल भाषामें बड़ आड़, कहते हैं। यह आकृतिमें विषयों में यह साहस और सद्बुद्धिका परिचय देता है। हिमालयजात मेषके सदृश है, केवल ऊंचाईमें ६ से ८ पहाड़की चोटी पर जहां एक भी मेष नहीं जा सकता इञ्च तक कम होता है। वहां यह आइवेक (Ibex) स्वच्छन्दसे आ जा सकता नीलगिदि पश्चिमघाट-पर्वतमाला, महिनुर वैनाड़, है। उस समय उसका वुद्धिकौशल देखनेसे चमत्कृत होना मदुरा, पलनी, कोचिन, डिण्डिगल, त्रिवाकोड़ और अन- पड़ता है। एक सरल पत्थरके टुकड़े पर केवल दो मलयके पहाड़ों पर इस जातिके मेप विचरण करते देखे | खुरके वल एक आइवेक सो जाता है तथा विपरीत ओर जाते हैं। इस श्रेणोके मेमने धूम्रपत् पिङ्गलवर्णके होते | जानेवाला मेष उस तंग स्थानमें आसानोसे उसे लांच कर हैं। बूढा मेप विलकुल काला होता है। मादा एक अपने अभीष्ट स्थानको चला जाता है। ये केवल एक वारमें दो बच्चे जनती है। बच्चा जनता है। ३माोर (Copra megaceros) नामक अफगान ४ पंजावका जंगली मेष वा उड़ियाल (Ovis cyclo- और काश्मोरदेशके मेप ग्रीष्मकालमें धूसर और शोतकाल ceros ) हिमालय समतट, पेशावर और पंजावके हमारा में मटमैलापन लिये सफेद होता है । बूढ मेषके वडो। आदि पहाडी भूभागमें पाया जाता है। वे कातिक बड़ी दाढ़ी होती है तथा पीठ और छातीमें घने रोयें मासमें कामोन्नत हो कर स्त्री सहवास करते हैं तथा एक होते हैं। वे रोए घुटने तक लटके रहते हैं । नर समय सिर्फ दो बच्चे जनते हैं । दूरसे ये हरिणके जैसे मढके एक भी रोआं नहीं होता। बड़े मेष वा बकरको दिखाई देते हैं। पर्वतको अनुर्वर भूमि हो इनका विच. लम्बाई ११॥ हाथ होती है। उसके सींग ४ फुटसे | रण स्थान है। ४४" तक लम्बे होते हैं। दोनों सी गमें ३४ इञ्चका तिब्वतीय शा-पू (Oris rignei वा O. montana) फासला रहता है। हिन्दुकुश, पामीर और कास्पियनसागर तक विस्तीर्ण पोरपञ्जाल नामक हिमगिरिश्रेणी, काश्मोर उपत्यका, | भूभागमें हजार फुट ऊंचे पवंत पर इनका वास है। मान- हजारा-पर्वतश्र णो, चनाव और झेलमके मध्यवत्ती बद्ध वर्ण रक्ताम धूसर है। तिब्बतोय ना-वा स्ना (Ovis मान-पर्वत पर, विपासा नदीके उत्पत्ति-स्थानमे, सुले Nahura) हिमालय प्रदेशमैं भकर या भरल कहलाता है। मान पहाड़ पर तथा, अफगानिस्तानमें ये छोटा छोटा यह मेष गाढ़ा नीला होता है, इसीलिये नेपालमें दल बांध कर घूमते हैं। इसके सींगको शिकारी लोग इसका नेरवती (नीलवती ) नाम पड़ा है। बड़ा मेष अधिक मोलमें बेचते हैं। मुंहसे पूछ तक ४॥ यो ५ फुट लम्बा होता है। पूंछ पश्चिम, मध्य और उत्तर एशिया तथा पारस्यराज्यमें ७ इञ्च तथा ऊचाई ३०-३६ इञ्च होती है। ये झण्डके (Capraegagrus ) श्रेणीके मेष रहते हैं। उपरोक्त | मुण्ड चलते हैं। मादा और नर मेष कभी कभी समूचा श्रेणीके अन्तभुक्त होने पर भी बहुत पृथक्ता देखो वर्ष एक साथ रहते हैं। जेठ या आषाड़ महीनेमे ये एक वार दो बच्चे जनते है। आसिन कातिकमें इनके जातो है। हिमालयका इस्किान उक्त श्रेणीके जैसा है। कदमें | शरोरमे चवीं होनेसे मेषमांस उत्तम समझा जाता है। छोटा होने पर भी रंग छोड़ पर और सभी विषयमें | हिमालयके बीच तिब्वतके तुषारधवल नयान या नियार समता देखो जाती है। इस श्रेणीका मेष ( Capra (ovis Ammonoides) नामकी और एक मेषकी जाति