पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३४५

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मैनपुरी-मैपाड़ा लाम धर्मको प्रतिष्ठा यहां न जमने पाई। यहां तक,, पर धावा बोलनेके समय वहांके अधिवासी बड़ी दक्षता- कि कुछ मुसलमान जोदारोंको छोड़ जो राज- के साथ नगरको रक्षा में तत्पर थे। विद्रोहियोंको भगा सरकारसे पुरस्कारस्वरूप भूमि पाते थे, यहांके | कर पुनः अङ्गरेज-शासन प्रतिष्ठित होने तक चौहानराज- स्थानीय अधिवासियोंमें और कोई भी मुसलमान धर्म ने स्वयं यहांका शासनकार्य चलाया था। १८५८ ई०में में दीक्षित न हुए। अकवर शाहके वंशधरोंके शासन विद्रोह दमनके बाद जब अङ्गारेजराज राज्यरश्मि धारण कर कालमें राणी नगर थोभ्रष्ट हो कर जनशन्य हो गया तथा धीर गतिसे राजविधि परिचालित करने लगे तव पटावा नगर समृद्धिसम्पन्न हो कर राजधानीमें | मैनपुरी राजने अङ्गरेजोंके हाथ आत्मसमर्पण किया । परिणत हुआ। उसी समयसे यहां शान्ति है तथा दोनों दलों में मिलता दोआबके अपरापर स्थानोंके साथ धीरे धीरे यह । चली आती है। जिला भी १८वों शताब्दीके अन्तमें महाराष्ट्रोंके २ उक्त जिलेको एक तहसील । यह मेनपुरी, कब्जे में आ गया था। बाद उसके वह अयोध्या राज्य घिरोर और करौलो परगनोंको ले कर गठित है। यहां के अधिकारमें आया । १८३१ ई०में जब अयोध्याके रिन्द और ईशान नदी एवं कानपुर और गंगाको नहर वजीरने अगरेजराजको पाश्ववत्तीं प्रदेश छोड़ दिया तब वहती है। भूपरिमाण ३४६ वर्गगील है । मैनपुरी नगरी समग्र एटावा जिलेका विचार सदर हो। ३ उक्त जिलेका प्रधान नगर और विचार सदर । यह गई। अङ्रेजोंके अधिकारमे आनेके बाद १८०४ ई०में अक्षा० २० १४ १५” उ० तथा देशा० ७६३५" पू० होल्करने इस पर चढ़ाई कर दी। इसके बाद सिपाही. प्रांडटक रोडके आगराकी शाखा पर अवस्थित है। विद्रोहको छोड़ यहां और कोई विशेष शासन विप्लव | प्राचीन मैनपुरी नगरो और उसके पासके माखम- न घटा। गञ्जको ले कर वर्तमान मैनपुरी नगरी बनी है। अङ्करेजोंके दखलमें आनेके वाद शासन विभागको | प्रवाद है, कि पाण्डवोंके समय मै नदेवन यह नगर सुश्शृङ्खलाके लिये इस जिलेके कछ भाग निकाल कर | वसाया। आज भो मैनदेवकी प्रतिमूर्ति स्थापित है। पटा और एटावा जिला संघटित किया गया तथा मैन १३६३ ई०में असौलीसे चौहान राजपूत लोग यहां पुरी नगरीके चारों ओरके ११ परगनोंको ले कर वर्तमान आ कर रहते थे। उन्होंने जहां दुर्ग बनाया था उसके जिला गठित हुआ। मैनपुरोके चौहान राजा अगरेज. निकटका स्थान क्रमशः नगर बन गया । १८०२ ई०में यह गवर्मे एट द्वारा यहांके तालुकदार नियुक्त हुए। इस नगर एटावा जिलेका सदर बनाया गया। १८०३ ई०में समय अङ्गारेजोंका राजस्व तथा दीवानी और फौजदारी | राजा यशवंत सिंहने माखमगा स्थापन किया। १८०४ विचार-विभागके नियमोंको कष्टकर जान स्थानीय राज- ई०में होल्करने नगर लूट कर जला डाला। अगरेजों- पूत जमींदार अङ्ग्रेजोंके विरुद्ध उठ खड़े हुए । अङ्रेजों के दखलमे आनेके बाद बड़ी विपत्ति झेल कर यह नगर ने उन्हें सजा देकर अपने वशमें किया था। इसी जमीं. श्रीसम्पन्न हो गया है। नगरके उपकण्ठस्थ राइकेशगंज दार-दलनसे सिपाही-विद्रोहके समय गंगाकी नहर और लेनगंज Mr, Raikes और Mr. Lane-के नाम पर प्रतिष्ठित है। काटना यहांको उल्लेखयोग्य घटना है। • १८५७ ई०की १२वीं मईको मेरटकी हत्याकाण्ड तथा यहाँके राजपूत और अहीर अपनी कन्याकी हत्या कर • २२ मईको अलीगढ़का विद्रोह-संवाद मिला । यह संवाद | विवाहके खर्चसे छुटकारा पाते थे। १८७५ ई०की पाते हो ६ नम्बरको देशी पलटन इस विद्रोह- प्रचारित राजदण्ड-विधिका उल्लङ्घन कर यहांके अधिवा- में शामिल हो गई । वाद उसके जब झांसीसे सियोंने यह वीभत्स कार्य किया था। विद्रोहदल यहां आ पहुंचा तव अङ्गरेज लोग मैनपुरी | मैपाड़ा-वङ्गालके कटक जिलान्तर्गत एक नदी । ब्राह्मणोकी दक्षिण शाखा इसी नामले चंगोपसागरमें गिरती है । इसके को छोड़ आगरा भाग गये। झांसीको सेनाके नगर