पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३६

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) था। इसके पहले पण्यविनिमयकी एक अपूर्व प्रथा थी। ख० पू०)-की मुद्रामें हीराका अनिन्द्य सुन्दर मुखकमल . इजाइनाको पूर्णवर्ती मुद्रा आज भी आविष्कृत नहीं देखनेसे आर्गसके पालिकिटसका स्मरण हो आता है। हुई। इस प्राचीन मुद्रामें एक. बड़े कुम्भको मूर्ति | जब यह सम्मिलन विच्छिन्न हो गया, उस समयको अङ्कित है। मुद्रामें प्राचीन आदर्शका चित्र देखा जाता है। . वनकी ___ एकाइया नगरको मुद्रा में बहुतसे ऐतिहासिक तत्त्वों- ज्वालामयी मूर्ति तथा नाइसका विलासविभ्रम मुद्रा- का उद्धार हुआ है। ये सव मुद्राएं ई०सन्के ३३० तल पर अङ्कित है। इसका शिल्पनैपुण्य वड़ा ही अद्भुत वर्ण पहले की है। उस समयके दश विभिन्न नगरोंकी है। किसी मुद्रामें ईगल पक्षी एक भीषण सपके साथ दश प्रकारको मुद्रा पाई गई हैं। सभी मुद्राओंके एक युद्ध कर रहा है। उसके नीचे त्रिकोणाकार चिह्न है। भागमें दण्डायमान जियस और उपविष्ट हेमितारकी मूर्ति उस चिह्नको देख कर मुद्रातत्त्ववित् गार्डनरने कहा है, कि है। दूसरे भागमें प्रत्येक नगरका नाम और संक्षिप्त यह साइकल नगरके सुप्रसिद्ध भास्कर डेडालसका अपूर्व विवरण है। शिल्पनैपुण्य है। परवत्तीकालके मुद्रातलमें फिदियस- करिन्थको मुद्रा अधिक संख्यामें मिलती है। ख के जियास चित्रका अविकल अनुकरण देखा जाता है। पू० ६ठी सदीकी मुद्राके एक अंशमें पेगासस और इथाका नगरोको मुद्राके ऊपरी भाग पर युलेसिस- दूसरे अशमें । ऐसा चिह्न देखा जाता है। यह करिन्थ का मस्तक है। मेसिनकी मुद्रा पर पार्सिफोनको मूर्ति नामक आदि अक्षर 'कप्पा (Kappa) वा क है । परवत्ती देखो जाती है। उसके बादकी मुद्रा पर व्यवहारशास्त्र- कालकी मद्रामें एथेनाकी मत्ति है। वर्णमुद्रामों में भवन- | प्रणेता लाइकर्गसका चित्र और नीचे उसका नाम तथा मोहिनी आदिति वा रतिमूर्ति है। किमेरा नगरकी जन्मतिथि खोदी गई है। आर्गसको मुद्रा पर भेड़ियाकी मुद्रामें ओलिभकुञ्जमें उड़ते हुए कबूतरको मूर्ति प्रतिकृति है। दूसरी ओर हीराका चित्र या अंगरेजो अङ्कित है। अक्षर A अङ्कित है। किसी किसी मुद्रामें दिवमिदस एल्लिस नगरकी बहुत सी मुद्राए आविष्कृत हुई है। वाए हाथमें पताकायुक्त चरखा तथा दाहिने हाथमें तल- इन सव मुद्राओंमें जियस, हीरा और नाइसदेवीकी | वार लिये छिप कर कदम बढ़ा रहे हैं। पूजापद्धतिका अविकल चित्र देखने में आता है। ओलि ____आर्केडिया नगरकी मुद्रा बहुत प्राचीन है। इसमें म्पियाक्षेत्रके तथा अन्यान्य नाना देवदेवियोंके चित्र भी प्रकृति पूजाका जाज्वल्यमान निदर्शन देखा जाता है। • इस देशके मुद्रातलमे आश्चर्य शिल्पनैपुण्यसे अङ्कित ___ ख० पू० ५वीं सदीको मुद्राके एक भागमें जियस है। दूसरे अशमे जियासका वन तथा उड़ती हुई आसन लगाये बैठे हैं और उनके हाथसे एक ईगलपक्षी ईगलमूर्ति है। ये सव मुद्रा १० पू० ५वीं सदीकी हैं। उड़ना चाहता है। दूसरे भाग; एक सुन्दर स्त्रीका मुख किसी मुद्रामें ईगल पक्षी सांपको पकड़े हुए ओलिभको | अङ्कित है। खु० पू० ६ठो सदीकी मुद्रा पर तरह तरह- शाखा पर बैठा है और दूसरे भागमें भागता हुआ खरहा के अलङ्कार पहने घूघट फाढ़े होराकी प्रतिकृति शोभा नजर आता है। किसी मुद्रामें पुष्पमाला-सुशोभिता दे रही है। रौप्यमुद्राओंके एक भागमें भालू और नाइसदेवीको हास्यमयी मूर्ति है। ई०सन्के ४२१ वर्ष | दुसरे भागमें आर्कसकी माता कालिप्टोका चित्र है। पहले पल्लिसाने स्माटीनगरके साथ मिल मुद्रा प्रस्तुत | पपिमिनन्दसकी तरह समकालीन मुद्राकी एक पीठ पर की थी। इस समयको भद्राको एक पीठ पर ध्यानमें | पासिंफोनका सुन्दर चित्र तथा दूसरी पोठ पर शिश मग्न जियासको प्रशान्त मूर्ति और दूसरे भागमें विलास. आर्कसको गोदमें लिये तामिसदेवी खड़ो है। पार्सि- चञ्चला नाइलका यौवनसुलभ अपूर्व विभ्रम है। ये सव | फोनके घुघराले वालों में शिल्पीने जो कारोगरी चित्र शिल्पनैपुण्यमें अद्वितोय हैं। एलिसके साथ जब ! दिखाई है वह अकथनीय है। रौप्यमुद्राके एक भागमें अर्गाइभ-समितिका सम्मिलन हुआ था उस समय (४०० । हिराक्लिस तथा दूसरे भागमें एक उड़ते हुए गोधका . Vol. xVII,9