पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४११

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१०५ मौर्यदत्त-पौलिक आदि जातियोंको परास्त किया था। अधिक सम्भव । तीति वा मूलभार (तद्धरति वहत्यावहति भारादशादिभ्यः । है, कि उत्तरापथमें राज्यसम्पद खो कर मौर्यवंशधरगण | पा ५११५०) इति ठञ् । मूलभारहरणकारी, वहनकारी। दाक्षिणात्यमें जा छोटे सामन्तराजरूपमें राज्य करते मौलवी { अ० पु०) १ अरवी भाषाका पण्डित । २ मुसल- होंगे। मान धमका आचार्य जी अरवी, फारसी आदि भाषाओं- वों सदीमें कोटा-झालरापाटनसे मौर्यवंशने राज्या- का ज्ञाता हो। धिकार पाया था । झालरापाटने जो शिलालिपि | मौलसिरी (हिं० स्त्री०) एक प्रकारका बड़ा सदावहार आविष्कृत हुई है उससे जाना जाता है, कि ७४६ संवत्में पेड़। इसकी लकड़ी अदरसे लाल और चिकनी होती मौर्यराज दुर्गगण राज्य करते थे। कोटाके निकटवत्ती है जिससे मेज, कुसी आदि वनाई जाती है। यह दर- कणखाग्रामस्थ महादेव मन्दिरकी शिलालिपिमें लिखा है; | वाजे और स'गहे वनानेके काम आती है। इसके फूल कि मौर्यवंशीय संकुकके वंशधर और पुत्र राजा शिव मुकुटके आकारके तारेकी भांति छोटे छोटे होते हैं और गण ७६६ सम्बत्में विद्यमान थे। उनसे इत्र बनाया जाता है। इसके फल पकने पर खाने सौर्य्यदत्त-दशकुमारचरितोक्त एक नायकका नाम) योग्य होते हैं और बीजोंसे तेल निकलता है। इसकी गौर्यपुत्र-जैनमतानुसार ग्यारह गणाधिपोंमेंसे एक। छाल ओषधियों में काम आती है। इसका पेड़ बीजोंसे पौव्वों ( स० स्त्री०) मूर्वाया विकारः (मूर्वा अवयवे च | उत्पन्न होता है और सब देशों में लगाया जा सकता है। प्राययोषधिवृक्षेभ्यः। पा ४,३१३५ ) इति अण-डोप् । १ पश्चिमी घाट और कनाड़ाके जंगलोंमे यह स्वच्छन्दरूप धनुगुण, धनुषको प्रत्यंचा। २ अजगी, मेढ़ासिंगी। उगता है। यह पेड़ बहुत दिनों में बढ़ता है। यह वर. ३ मूर्वामयो, मूतृणसम्बन्धीय। क्षत्रियके उपनयनके सातमें फूलता और शरद ऋतु में फलता है। इसके फूल समय मूतृणको मेखला पहले पहननी होती है। सफेद, कटावदार और छोटे छोटे वहुत ही कोमल और 'मौली त्रिवृत्समा श्लक्ष्णा कार्या विप्रस्य मेखला। मीठो सुगन्धवाले होते हैं। इसका संस्कृत पर्याय- क्षत्रियस्य तु मौन्वी च्या वैश्यस्य शणतान्तवी॥" वकुल, केसर, सीधगंध, मुकुल, मधुपुष्प, सुरभि, शार- (मनु २।४२) दिक, कटक और चिरपुष्प । पौल (स० पु०) मूलं वेदेति मूल अण्। १ भूम्यादिका | भाटिकी मौलि (स० पु० स्त्री० ) मूल सूतङ्गमादित्वात् इन्। १ मूल ज्ञाता, प्राचीनकालके एक प्रकारके मन्त्री। चूड़ा, किसी पदार्थका सबसे ऊंचा भाग। "एवमुक्त्वा स वामेन यदा मौलिमुपास्पृशत् । "यत्परम्परया मौलाः सामन्ताः स्वामिनं विदुः। शिरश्च राजसिंहस्य पादेन समलोड़येत्॥" तदन्वयस्यागतस्य दातव्या गोत्रजैर्मही ॥" ( दायतत्त्व) (भारत ६५६५) ये भूम्यादि समस्त मूलों से अवगत हैं इसलिये इन्हें २ किरीट। ३ सयतकेश, जूड़ा। ४ मस्तक, मौल कहते हैं। इसका लक्षण- सिर। ५मुख्य या प्रधान व्यक्ति, सरदार। ६ अशोक "ये तत्र पूर्व सामन्ताः पश्चाद्दशान्तरं गताः । वृक्ष । ७ भूमि, जमीन । तन्मूलत्वात् ते मौला: ऋषिभिः परिकीर्तिता॥" मौलिक (सं० पु०) मूले आद्य जातः उञ्। १ कुलीन २ वह जो शत्रुओंके मध्य उदास रहता है। भिन्न, राढ़ीय और वारेन्द्र ब्राह्मणों में 'श्रोत्रिय', दक्षिण- (त्रि०) ३ मूलभूत, मूलसे सम्वन्ध रखनेवाला। राढ़ीय कायस्थोंमें 'मौलिक', दाक्षिणात्य वैदिक ब्राह्मणों- "मौला द्वादश यास्त्वेता ह्यमात्याद्यास्तथा च याः। में 'अन्यपूर्व-परिणेता', वङ्गज कायस्थोंमें 'मध्यल्य', ये सप्ततिश्चाधिका ह्यताः सर्व प्रकृतिमण्डलम् ॥" लोग मौलिक कहलाते है। मध्यल्यका लक्षण-कुल- (कामन्दकी ८।२५) | मध्यस्थित कुलीनके विश्रामस्थलको मध्यल्य कहते हैं। नौलभारिक (स० त्रि०) मूलभार हरति, वहति आवह- दूसरा लक्षण, जैसे-