पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४२२

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४१६ यकृत भूख नहीं लगतो, जीभ मैली दिखाई देती और खट्टी डका उदरामय, कोष्ठ अवरुद्धता और कभी कभी उदरीरोग आती है। सामान्य ज्वरका लक्षण दिखाई देता है, मूल होते देखा जाता है। थोड़ा और लाल निकलता है। छूनेसे यकृत् वड़ो मालूम जाड़ा और साधारणतः शीत और कम्पके साथ ज्वर होती है। आता है। पीप जम जानेसे वार बार कम्प, हकठिक चिकित्सा-यकृत्के ऊपर जोंक या मयेष्टकपि लगावे । ज्वर, नैशधर्म, अत्यन्त दुर्वलता और शोर्णता उपस्थित अन्यान्य वाह्यप्रलेप औषधोंमें पुलटिस, सिनापिजम,/ होती है। पहले मून थोड़ा और लाल, स्फोटक उत्पन्न शुष्ककोर्पि तथा फोमेण्टेशनका व्यवहार हितकर है। दूषित होनेके वाद पतला और परिमाणसे अधिक निकलता है। खाद्यजनित पीडाको प्रथम अवस्थामै मृदु वमनकारक रोग कठिन होनेले दुर्वलता और अचैतन्य आदि विकारों- औषध अथवा रातमें व्लुपिल और कलोसिन्थको मिला के लक्षण उपस्थित हो कर रोगीको मृत्यु होती है। कर गोली सेवन करावे। सबेरे साइट वा सलफेट | कभी कभी स्फोटककी पीपक रूपान्तरित हो जानेसे रोग आव मागनिसिया, सलफेट आव सोडा, क्रोम आव असाध्य हो जाता है। अनेक समय वाहरो भाग फट टार्टर आदि लावणिक विरेचक औषधको काममें लाये।' जाता है, उसके पहले उस जगहका चमड़ा लाल दिखाई प्रवल लक्षण दिखाई देनेसे तिक्त वलकारक औषध और देता है। इस प्रकार विदीर्ण हो जाने पर भी रोग धातव जलका सेवन करे। आरोग्य हो सकता है। प्रवल हेपैटाइटिस (Acute Hypatitis) वा यकृत पेरि और सपिडरेटिभ हिपाटाहटिस रोग इन दोनों- का प्रदाह-यह दो प्रकारका है, पेरिहिपाटाइटिस और का स्थिर करना बहुत कठिन है । पीप होनेसे रोगका सपिउरेटिभ हेपैटाइटिस। यथाक्रम इनका लक्षण और पता लगाने में कोई दिक्कत नहीं होती । पोप सहित कारण नीचे लिखा जाता है। यकृतोष रोगके साथ, पीप आनेके पहले पित्तकोषमें प्रदाह पेरिहिपाटाइटिस-किसी प्रकारको चोट लगने और | और पीपका संचार, पोप उत्पन्न करनेवाला हाइडेभिड पेरिटोनाइटिस तथा निकटवत्ती स्थानमें जलन होनेसे | सिट, उदर प्राचीरमें स्फोटक और अन्नावरण प्रदाहका इसकी उत्पत्ति होती है । इसमें रोगी यकृत्के ऊपर तीक्ष्ण भ्रम होता है । पेरिनोसाइटिसमें लकचुरेशन नहीं पाया वेदना मालूम करता है ; कास, श्वास और प्रश्वास द्वारा | जाता तथा साथ साथ शीतकम्प हो कर ज्वर नही आता। यह वेदना और भी बढ़ जाती है। सामान्य ज्वरके सभी रोगके आनुपूर्विक इतिवृत्तको छोड़ कर दोनों में कुछ भी लक्षण दिखाई देते हैं। लोभरकी क्रियामें कोई विशेष | प्रभेद मालूम नहीं होता। उदरप्राचीरमें स्फोटक होने- परिवर्तन नहीं होता। से अधिक दुर्बलता, शीतकम्प और जण्डिस नहीं रहता। सपिउरेटिभ हेपैटाइस-हेपैटिक कञ्जेश्चनके सभी | यकृत्के वाहर खास कर पन्सिफोरम कार्टिलेजके समीप कारणोंका भातिशय्य होनेसे यकृत् में प्रदाह और स्फोटक विदीर्ण होने वा ब्राङ्काई फट जानेसे भी रोग आरोग्य हो उत्पन्न होता है। आम्विलाइकेल सेनमें जलन होनेसे सकता है। अन्यान्य स्थानोंमें स्फुटित होनेसे सांघा- छोटे छोटे बच्चोंकी यकृत्में कभी कभी स्फोटक पैदा होता | तिक होता है, पोप सहित स्फोटक दुरारोग्य है। है। ग्रीष्मप्रधान देशों के स्फोटकमे एमिराकोलाई नामक ___ चिकित्सा-वाह्य देशमें कोपि, लिचि फोमेण्टेशन, सूक्ष्म उभिज दिखाई देता है, वह भी एक कारण है। | पुलटिस और सिनापिजम प्रयोज्य है; लवण और पारद- इस रोगमें निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं, घटित विरेचक औषधका सेवन करावे । भामाशय रहनेसे यकृत्में आवक वेदना और स्पन्दनका अनुभव, दक्षिण | इपिकाकिवाना दे। पीप होनेसे एस्पिरेटर वा दोकर लोव आक्रान्त होनेसे दक्षिण स्कन्ध और स्कैप्युला तक ओकान्युला द्वारा पीपको बाहर निकाल दे। काष्टिक उसी प्रकारकी वेदना ; जण्डिस, अरुचि, जीभ मैली | पोटाश द्वारा अथवा काट कर जखम करनेसे भी पीप और लाल, प्यास अधिक लगना, विवमिषा, वमन, निकल सकती है। अनन्तर एण्टिसेप्टिक लोषण और