पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४७

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मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) उनमें मिनके पौराणिक चित्र ही अधिक देखे जाते हैं। देखे जाते हैं। उसका गूढ़ रहस्य आज भी किसीको किसीमें मिस्त्रका सूर्य-मन्दिर बड़े ठिकानेले चित्रित है। मालूम नहीं । जिउगिटाना प्रदेशके मध्य कार्थेजके मुंदा.

इसके वादोजन, हाद्रियन और अन्तीनियस पायस शिल्पमें अनेक प्रकारको चमत्कारिता दिखलाई गई है।

आदि रोम-त्रांदशाहोंकी बहुत-सी मुद्राएं मित्रमें पाई | किसीका कहना है, कि फिनिकशिल्पसे इसकी उत्पत्ति । जाती हैं। अन्तोनियसके शासनकालमें ( १३८ ई०में) है। इस विषयकी आज तक कोई मीमांसा नहीं होने मित्री मुद्रामें ज्योतिश्चक्रका एक अपूर्वचित्र अङ्कित देखा पाई है। ई०सान्के ४०० सौ वर्ष पहलेसे कार्थेजका जाता है । यह सथियाक सम्पत्सर ( Sotbiac Cycle) अधःपतन है। १४६ ख ० पू० तक कार्थेज में मुद्रा के १४६ ई० में खोदो गई है। इसमें मिस्री ज्योति:- शिल्पकी यथेष्ट उन्नति हुई थी। कार्थेज-वासियोंने शास्त्रको विशेष उन्नतिका निदर्शन है। इसके सिसाली द्वीपमें जैसी मुद्रा बनाई थी, अपने देशमें भी चादकी मुदा नगरके नामादि और सभी मिती चित्रित उसी तरहकी वनाई । पारसिक शिल्प आदर्श पर धनी हैं। बहुत-सो मुदाओंमें मिस्री पूजापद्धतिके चित्रादि मुद्रा भी कार्थेजके नाना स्थानों में पाई गई है । प्राचीन अंकित देखे जाते हैं। पलुसियन नगरको मुद्रा चित्र- मुद्रामे अश्व और अश्विनीकुमारके विविध चित्र है। शिल्पमें सर्वश्रेष्ठ है। किसी मुद्रामें दो यमज भाई घोड़ोका स्तन्य पान कर अफ्रिकाके अन्यान्य स्थानोंकी अपेक्षा साइरेनेका- रहे हैं। अन्यान्य मुद्राओंमे पास फोनको दिव्यमूर्ति प्रदेशको मुद्रा द्वारा इतिहासके अनेक तत्वोंका आवि- तथा दूसरे भागमे फलशाली खजुरके पेड़का चिन कार हुआ है। ई०सन्के ६४० वर्ष पहले भी यहां वहुत- है। किसी मुद्रामे असामान्य रूपलावण्यवती एक सो ग्रीकमुद्रा पाई गई है । वस ( Battus ) चशके रमणोका मुकुटालंकृत नस्तक देना जाता है। इसका राजत्वकालसं ले कर अगष्टसके समय तक ७ सौ वर्षकी शिल्पसौन्दर्य अतुलनीय है। किसीमें सिंहवाहिनीमूर्ति नाना प्रकारकी मुद्राएं यहां देखी जाती हैं। साइरिन और किसीमें त्रिशूलधारिणी असुरसंहारिणी नाइस- और वार्का नगर में अनेक सुन्दर मुद्रा मिलती हैं। इनमें | देवीको मूर्ति चितित है। प्रधानतः जियासकी मूर्ति तथा दूसरे भागमें 'सिल इसके बाद रोमफपुराणक चित्रादि कार्थेजकी फिया' पेड़की प्रवालपलबमाला अंकित है। यहां ईसा- पीतलकी मुद्रामें देखे जाते है। किसी मोहरमें वरिका जन्मके ४५० वर्ष पहले रौप्यमुद्रा पहले पहल प्रचलित देवीका चित्र सहित है । न्युमिदियाकी मोहरमें हुई। फिनिकिया और सामिया आदर्शकी मुद्रा भो युनिक लिपिके भनेक साङ्केतिक चिह्न देखे जाते है। यहां मिलती है। जियासको कुछ मुद्रा में मूछ दाढ़ीके श्म जिओवाके शासनकालमें जो मोहरें पाई गई हैं वह और कुछमें विना मूछ दाढ़ीके मुखमण्डल देखे जाते हैं। विविध तत्त्वोंसे परिपूर्ण हैं। श्य बोगाद और ३य 'शिल्पसौन्दर्य हर हालतमें प्रशंसनीय है। दो एक जिभोवाको मोहरें प्युनिक लिपि और प्राकशिल्पको प्राचीनतम मुद्दा ख० पू० ७वीं सदीकी है । वहुतोंका | सन्धिस्थल हैं। मार्क भाल्टनियो और मिस्रकी रानी कहना है कि यह लिदिया और इजाइनाकी मुद्रासे भी क्लिओपेद्राको लड़को ८म क्लिओपेद्राके साथ श्य जिओवा- पुरानो है । साइरिनके राजवशने ख० पू० ४५० तक का विवाह हुआ था। स्यु मिदियाकी मोहरोंमें मित्र- राजस्व क्रिया था। इस समयकी स्वर्णमुद्रामें ओलि राजवंशके अन्तिम वंशधर क्लिओपेद्राको शान्तमूर्ति म्पियाका शिल्पानुकरण देखा जाता है। वार्काकी मुद्रा देखनेसे मालूम होता है, कि भावी अधःपतनको विषाद- में फिनिक-आदर्शकी पूर्ण छाया दिखाई देती है । इसके कालिमासे उनका मुखमण्डल समाच्छन्न हैं। . रोमकमुद्रा । • "दूसरे भागमें सिलफिया वृक्षकी शाखा पर बैठे पेचक, छिपकली और एक खरगोशकी मूर्ति है । किसी रोमको मुद्रा दो भागोंमें विभक्त है, प्रजातन्त्र और किसी में प्युनिक लिपिमें उत्कीर्ण अनेक साङ्केतिक चिह्न ! राजतन्त्र । प्राचीन कालसे अगष्टंसके 'संशोधन-आईन:के