पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५

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मुण्डा प्रधान संस्कार है। वर कन्याकी मांगमें और कन्या, कारासरना इनके वास्तुदेवता हैं । सरनाका अर्थ वरके कपालमें सिन्दूर लगाती है। कुञ्जवन है। प्रत्येक प्रामके भिन्न भिन्न देवता है। इन लोगोंमें गन्धर्व-विवाह भी प्रचलित है। किन्तु | कृषक कभी कभी इनकी भी पूजा करते हैं । इस पुरुषकी जो कन्या इस प्रकार अपने इच्छानुसार पति चुन कर | पूजा में भैंसेकी वलि और स्त्री-पूजामे मुर्गेकी बलि दी •विवाह करती है, उसके पुत्र सम्पत्तिके उत्तराधिकारी जाती है। कहीं कहीं गाय और सूअरकी भी बलि देते नहीं हो सकते। केवल भोजन वस्त्र उन्हें मिलता है ।। हैं। शिवोगा या सूर्यकी स्त्री चन्दर, चनला वा चन्द्रा विधवा सगाई प्रथा वा पुनर्विवाह कर सकती है। इस स्त्रियोंले पूजी जाती हैं। नक्षत्रों की उत्पत्ति उसे ही विवाहमें बाएं हाथसे सिन्दूर दिया जाता है। है। प्रवाद है, कि शिवोङ्गाकी स्त्री चनला किसी दूसरे स्वामी और स्त्रोके इच्छा होने पर विवाह-सम्बन्ध | पुरुषके प्रेममें फंस गई थी। इस पर शिवोगाने गुस्सेमें टूट सकता है। छोड़ी हुई स्त्री फिरसे विवाह कर सकती आ कर उसे दो टुकड़े कर दिया। एक दिन स्त्री पर उन्हें है। स्त्री यदि उपपति ग्रहण करे, तो उपपतिको उसके | तरसआया और सोलह कलाओं वा पूर्णसौन्दर्यसे उसे स्वामीके विवाहका पण देना होगा। विभूषित किया । इसकी पूजामें बकरेकी बलि दी जाती मुण्डा लोगोंके धर्ममें शिवोगा सूर्यस्वरुप हैं । ये | है। सृष्टिकार्यका भार भिन्न भिन्न देवता पर सौंपते हैं। हापरोमको ये लोग अपने पितरों के प्रतिनिधि मानते शिवोडा स्वय' कुछ भी नहीं करते। किन्तु विपदके हैं। इसलिये खानेसे पहले वे 'हापरोम' के लिये कुछ समय मुर्गेको वलि दे कर शिवोङ्गाकी पूजा करते हैं। कुछ खाद्य पदार्थ अलग कर देते हैं। कभी कभी मुर्गेकी शिवोङ्गाके वाद 'वुरुवङ्गा' और 'मरङ्ग-चुरु' वा पाटसरना | वलिसे भी उन्हें संतुष्ट किया जाता है। हापरोम इन हो प्रधान देवता हैं। ये सव पर्वतवासी देवता हैं। लोगोंके वंशधरोंकी मङ्गल-कामना करते हैं। छोटानागपुरके उच्च पर्वत पर इनका वास स्थान है । मुण्डा लोगोंमें नाना प्रकारके उत्सव प्रचलित हैं। छोटानागपुरके निकट लोधमप्राममें 'महावुग' वा 'मरङ्ग- | जैसे-१ला 'सरहुल' वा 'सर्जुम वावा' वा वसन्तोत्सव; वुस' का प्रसिद्ध स्थान है। यहां हिन्दू मुसलमान सभी यह उत्सव सन्थाल और हो लोगों के जैसा है। चैत्रमास. जातिके लोग इस देवताको पूजामें शामिल होते हैं। में जव सखुएके पेड़में फूल लगते हैं, तव प्रामवासी एक पर्वतके ऊपर सिर्फ वलिदान दिया जाता है । आनन्दपूर्वक मुर्गेकी वलि और सखुएके फूलको माला- पशुवलि देने के बाद उसका सिर देवताके सामने रखा | से 'सज्जम वावा' की पूजा करके वसन्त उत्सव जाता है। पीछे पाहन वा प्राम्य-पुरोहित उस मुण्डको | मनाते हैं। अपने घर ले जाते हैं। मरङ्गरुको सभी वरुण वारा , वर्षाऋतुमें जव आकाश धनघटासे घिर आता जलदेवता समझ कर पूजते हैं। खास कर अनावृष्टिके | है, तव ये लोग वतौली उत्सव करते हैं। प्रत्येक समय इनकी पूजाकी जाती है। गृहस्थ एक एक मुर्गा बलि चढ़ाता है। इनका विश्वास इकिरवङ्गा कूप, पुष्करिणी आदि जलाशयोंके अधिः है, कि जब तक यह उत्सव मनाया नहीं जाता, तब तक ठात्री देवता, गर्हाएरा नदी और प्रस्रवणादिको अधिष्ठात्री धान नहीं पाता। देवी, नाग वा 'नाएरा' स्वच्छन्दविहारी उपदेवताके नाम- रा, आश्विन मासमें जव धान पक जाता है, तब ये मात्र हैं। ये सब खेतोंमें रहते हैं। मुण्डा लोगोंका | लोग नमा वा जोमनना उत्सव करते हैं। इस समय विश्वास है, कि ये सब देवता लोगोंको कष्ट देते हैं, अतएव शिवोडाके उद्देशसे एक सफेद मुर्गे की बलि दी उनकी पूजा नहीं करनेसे कष्ट दूर नहीं होते । इकिरवङ्ग- जाती है। की पूजामें सफेद वकरे और काले मुर्गेको वलि और ४था, माघमासमे 'खरिया' पूजा वा 'कलमसिंह' नागदेवताको अंडा चढ़ाया जाता है। देशवाली और उत्सव मनाया जाता है । यह उत्सव शीतकालमें