पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०६

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यन्त्र ५०३ के रखना चाहिये। पीछे चक्रमें वारीक छिद्र आधार. | an altitude )-से जो भागफल आयेगा, वही अभिः लषित समय होगा। कई ज्योतिर्विदों का यह मत है। किंतु • स्थान तक एक लम्बी रेखा खींचो। इसके याद इस धातु चक्र पर वीचसे तिर्यक् रेखाये खींचनी होगी। सिद्धांतशिरोमाणके वासनामाग्रकार स्वयं भास्करा- ये तिर्यक् रेखायें किस तरह खींचनी होगी, इसका चार्यने इसके सम्बधमें लिखा है,- "यदि मध्यन्दिनोन्नतांशैदिना नाड्यो लभ्यन्ते तदैभिः विवरण नीचे दिया जाता है। किमित्येवं स्थला घटिकाः स्युः।" इस चक्र परिधिदेशमें भगणांश (Graduated to वक्र द्वारा ग्रहादिका वेधज्ञान होता degrees ) मांकित कर आधार स्थानमें त्रिभ (Three है। इसीलिये इसको वेधयन ( Instrumenf of signs ) अर्थात् ६० रास्यन्तरमें केन्द्रस परिधि तक ohservation ) कहते हैं । इससे ग्रहों के स्फुट स्थान तिर्सान रेखा खीचनी होगी। परिधि संलग्न उस किस तरह निर्णय किये जाते हैं, उसीका उल्लेख यहां तिाक रोणाको धानी ( Earth ) या क्षिति ( Hori- किया जाता है। zon ) कह कर कल्पना करनी होगी। भाईका अन्तर । "पत्रपुष्यांतिमवारुणानामुक्षद्वय नेमिगत यथा स्यात् । . इस नेमिक विपरीत ओर जो ऊर्ध्व रेखा चक्रपरिधिको दूरेऽन्तरेऽल्पेषु भखेचरौ वा तथात्र यन्त्र सुधिया प्रधार्यम् ॥ स्पर्श करेगी, वही खाद्ध (Zenith ) समझना नेमिस्थ दृष्ट्याक्षगतं प्रपश्येत् खेटं च विष्यास्य च योगताराम् । ' अर्थात्-भाधारबिन्दुसे ६० व्यवधानमें पृथ्वी कल्पना नेम्पङ्कयोरक्षय जोस्तु मध्ये येऽशः स्थिता मधु वको युतस्तैः॥ । करनेसे उसको ओक विपरीत दिशाका विदु ही खाद्ध- प्रत्यक स्थिते मेऽथ पुरः स्थिते ते ‘विन्दु कल्पित होगा। हीनो ध्र वः स्यात् खचरस्य भुक्तम् ॥" चक्रकेन्द्र के बारीक छिद्रमें बहुत पतली शलाका ___मघा, पुष्या, रेवती, शततारका आदि स्थिर तारों घुसा दो। इस शलाकाका नाम अक्ष है । इसके चक्र (Fixed star') के बीच दो तारोंको लक्ष्य कर चक्र नेमि जिस भावसे सूर्यको ओर रह सके, उसी भावसे | यत्रको इस तरह मजबूतीसे रखा जिससे वे सदा नेमि- आधारमें (Placing the circle in a rerticle plane) | गत ही रहें। पीछे धिष्न्यद्वयमें एकटा लक्ष्य कर नेमिमें रखो। इस तरह रखने के बाद अक्षकी छाया परिधिक स्थान अडित करो। इसके बाद आगे या पीछे दृष्टि जिस स्थानमें पड़ेगी उस स्थान पर कुज-चिह्न-इन दौड़ा कर ग्रहको प्रायः अक्षगत कर विद्ध करना चाहिये। दोनोंके अंतरमें जो मश है, वही रविका उन्नतांश है। अक्षमूल और ग्रहके अंतर शर प्रहावधि है। अक्षमूल अथवा जो स्थान पृथ्वीका स्थान निर्दिष्ट हुआ है, उस नेमिक जिस स्थानमें लगेगा, उस स्थानमें भी अङ्क स्थानसे अक्षछाया (Shadow of the suns by करना होगा। इन भनहाङ्कद्वयके बीच जो अंश है, वही the axis) चक्रका जितना अंश संख्याका अतिक्रम करेगा, वही उन्नतांश स्थिर करना होगा। परिधिके । निर शालिन नमाज अथवा चित्रा भनवयुत स्फुट ग्रह है। अर्थात् ध्र वविहीन और जिस विन्दुमें अक्षरकी छाया पतित हुई है, वही छाया- rani अप अक्षांशक (दक्षिण) किसी नक्षत्र पर स्थान और खाई चिन्दुका अन्तर जो वृत्तांश है, वहो। मिथर करनेसे ग्रहका खेट निर्णय करना होगा। वह नतांश जानना होगा। निर्दिष्ट नक्षत्रसे बहुत दूर पर अवस्थित है, फिर भी यह नतोन्नतांश जाननेके सिवा इस यंत्रमें दूसरी तरह स्पष्ट दिखाई देता है, कि ग्रह चक्रनेमिमें चला गया है। घटिका आनयन तथा समय निरूपण भी किया जाता है। इस तरहसे चक्रको रख कर इसके समतल पृष्ठको दिनाद्धमान और मध्य दिनको उन्नतांश जान कर गणना वरावर (along its plane ) लक्ष्य करो, तो ग्रह अक्ष कर अनुपात करनेले अर्थात् दिनाई लब्ध्र उन्नतांशसे मूलके विपरीत ओर दिखाई देगा। उसको क्रान्तिवृत्त- गुणा कर उस गुणनफलको मध्यदिनोन्नतांश ( Merid.j को समरेखामें धारण कर पहलेके निर्दिष्ट एक तारे पर