पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३२

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यमुना ५२६ • हमारपुरसे इलाहाबादके गङ्गा-यमुना सङ्गम तक ] है। भारतको सौभाग्यस्पद्धों दिल्लोको सौधमालायें तथा (अक्षा० २५ २५ उ० और देशा० ६१.५५ पू०)। गरेका राजमहल, मथुराकी जैन-हिन्द-कोतियोंका नमूना यमुना नदी पूर्वकी ओर बांदा और फतेपुर जिलों के वोव और वर्तमान अट्टालिकायें इलाहावादके पुल और किले- प्रवाहित होतो है। यमुनाके इस भागमें हिन्दुओंकी के सिवा जगह-जगह अपूर्व स्तूप मण्डित वनमालाये . प्राचीन नगरो प्रयाग तथा मुसलमानोंका गौरवस्थल शस्यश्यामला वसुन्धराकी कमनोय शोभा नदोतदको इलाहावादके सिवा और कोई समृद्धशाली नगर दिखाई / सुशोभित कर रही है। ऐसे सुन्दर और मनोहर नहीं देता। इलाहावादके किले के समीप हो गङ्गा और स्थानोंमें वृन्दावन हो यमुना-तटकी गरिमा प्रकट कर यमुना सरस्वती सङ्गम मौजूद है। सरस्वतीका सङ्गम रहा है। दिखाई नहीं देता । लोगोंका कहना है, कि किलेके ____ यहां ही यमुनाके काले जलमें वृन्दावनविहारो नीचेसे सरस्वतीका प्रवाद गङ्गा और यमुनाके सङ्गममे वनमालीने वराङ्गना गोपकुल-ललनाभोंके साथ जल- भा कर मिल गया। यहां गङ्गाके पीला वालुकामय जल | विहार या जलकलि को यो। यमुना उनको वंशोके तथा यमुनाक निर्मल श्यामकृष्ण जलने मिल कर अपूर्व तान पर विमुग्ध रहता थी। यमुना किनारेके वृन्दावन. शोभा धारण किया है। नदीवक्ष पर नाव में चढ़ कर को अतुलनीय शोभाको जयदेव आदि रसज्ञ भावुक जाने पर जलसङ्गमका पार्थक्य विशेषरूपले परिलक्षित | कवियोंने अपनी कविताओं में अच्छा चित्र खींचा है। होता है। सङ्गम निकट हो गङ्गाजी और यमुनाजोमें| जिन भगवान् कृष्णको महिमासे वृन्दावनका माहात्म्य बंधे पुल दिखाई देते हैं। गङ्गाजीका पुल वी० एन० है, जिन कृष्णको पादस्पर्शसे यमुना कृतार्थ होती डबल्यु रेलवे कम्पनीने तथा यमुनाजीका पुल इष्ट-इण्डिया | थी, उन्हीं कृष्णभगवानको लोलाभूमि वृन्दावनके पाद- कम्पनीने बंधवाया है। इलाहावादके सिवा यमुना- विधौत-कारिणी यमुना नदोका माहात्म्य क्यों न अधिक नदी पर दिल्ली, आगरा, इटावा, काल्पो, हमोरपुर, मथुरा, होगा ? इसमें कौन-सा आश्वयं है ? वृन्दावनके माहात्म्य- चिल्लतारा, आदि स्थानोंमे भी पुल बंधे हुए हैं। । के साथ यमुनाका माहात्म्य भी कवियोंने गाया है। तत्तत् शब्द देखो । केशीघाट, कालोयदमनघाट, चीरहरणघाट आदि तीर्थमें उत्पत्ति-स्थानसे गङ्गासङ्गम तक यमुनाकी लम्बाई । स्नान और तर्पण करनेसे अक्षयपुण्य लाभ होता है। ४३० कास है। यमनोत्तरोके १०८४६ फीट ऊंचेसे जल । ब्रह्मवैवत्तेपुराणमें श्रीकृष्यके जन्मखण्डके १६वें अध्याय- धारा धीरे धीरे पहाड़ो उपत्यकाओंको चीरती हुई १६ , मे तथा भागवतके दशम स्कन्धके दशवें अध्यायमें मील नीचे कौस्तनूर स्थानने ५०३६ फोट नीचेको कालोयदमनके सम्बन्ध तथा श्रीकृष्णके यमुनागर्भमें गिरती है। अतएव प्रत्येक मोल पर ३१३ फोट प्रपात । इबनेका उल्लेख है। होनेसे इसका पार्वत्य स्रोतोवेग वहुत प्रवल हो उठा है। मार्कण्डेयपुराणमे लिखा है, कि यह यमुना सूर्य- तमसा-सङ्गमके पास समुद्रपृष्ठसे १६८६ और आसन- कन्या और यमकी भगिनी है | यमुनाको उत्पत्तिके सङ्गमके समोप १४७० तथा शिवालिककी पहाड़ियोंके । सम्बन्धमे वहां इस तरह लिखा है- नोचे समतलक्षेत्र पर १२७६ फोर नीचे उतरी है। इसी "ततः सा चपला दृष्टिं देवी चक्रे भयाकुला । तरह क्षिप्रगतिले गमन करनेके कारण यमुनाको जलराशि विलोलितदृशं दृष्ट्वा पुनराह च तां रविः ।। इलाहावादके समीप प्रति मुहूर्तमें कोई १३३३००० धन यस्माद्विलोलितां दृष्टिर्मयि दृष्टे त्वयाधुना । फुटके हिसावसे गिर रही है। तस्माद्विलोला तनयां नदी त्व प्रसविष्यसि ।। गङ्गोको तरह यमुनाके किनारे बहुतेरे समृद्धशाली ततस्तस्यान्तु संजज्ञे भतु शापेन तेन वै । नगर न हाने पर भी नाची ओर ऊंचो भूमिको पार करता यमन्च यमुनाचैव प्रख्याता समहानदी॥" हुई प्रवाहित होने को वजह किनारका दृश्य बहुत ही मनोहर Vol XTIII, 133 (मार्क०पु० ७७५-७)