पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यमुना - हरिवंश पढ़नेसे मालूम होता है, कि सूर्यमण्डलके | तक प्रवाहित हुई हैं। इस यमुना-जल में स्नान और 'तीव्र तेजसे संज्ञा दग्धाङ्ग होने से उनकी सुन्दर कान्ति | जल पोनेसे मनुष्य सर्व पापोंसे छुटकारा पाता है और 'विखर पड़ती है। इसके अनुसार यम और यमुना यमज वह अपने सात पुरुषोंको पुण्ययुक्त बनाता है । यमुनाके माताके गर्भसे उत्पन्न हुए। इनका वर्ण काला था। दक्षिण किनारे अग्नितीर्थ एवं पश्चिममें धर्मराजका नरक (६०८18) हरिवंशके उक्त अध्यायके अन्त में यमीका तीर्थ है। यहां कृष्णा चतुर्दशीको स्नान करनेसे महा- यमुनारूप सरिद्वरत्व-प्राप्तिकी बात लिखी है। पापका मोचन होता है। . .. .. यमी देखो। । भागवतमें लिखा है,-जव वसुदेव नवजात शिशु दूसरो जगह लिखा है, कि हलधर वलदेवने लवण- श्रीकृष्णको कंसके जेलसे ले कर छिपे हुए रातको नन्दके जलंगामिनो, महानदी यमुनाको अपने हलसे नगरकी और घर जा रहे थे उस समय घोर वृष्टि हो रही थी, यमुना 'प्रवाहित किया था। (हरिवंश १२०१६) जोरोंसे प्रवाहित हो रही थी। ___ हल द्वारा यमुनाको इच्छापूर्वक लाना देख कर "ताः कृष्यवाहे वसुदेव आगते स्वय' ब्यवर्यन्त यथा तमो रखे। पाश्चात्य पण्डितोंने अनुमान किया कि शूरश्रेष्ठ वलदेव ववर्ष पर्जन्य ऊपाशुजितः शेषोऽन्यगाद्वारि निवारयन् फर्ण। उस प्राचीन समयमें हल (अस्त्र)से यमुनासे नहर निकाला मेघोनि वा त्यसकृयमानुजा गन्भारतोयौधजवोस्मिफेनिला। . था। कलिन्दपर्वतसे निकलनेके कारण यमुनाका दूसरा ' भयानकावर्त्तशताकुला नदीमार्ग ददौ सिन्धुरिव श्रियः पतेः ॥" एक नाम कालिन्दी भी है। कलिन्द शब्दका अर्थ सूर्या ( भाग० १०४०) भी होता है। भगवान् श्रीकृष्णने यमुनालीला-माहात्म्य जन्माएमी व्रत-कथामें सुना जाता है कि कृष्णको गोद- बतलाते हुए किसी प्राचीन कविने लिखा हैं. "कलिन्द.. में ले कर उसी तूफान या दृष्टि में यमुनाके भीषण तरङ्गों नन्दिनी तटे ननन्दनन्द-ननदः।" को देख वसुदेव डर गये। रातके घोर अन्धकारमें शेष. कूर्मपुराणके पूर्वाभागमें ३५, ३६ और ३७वे नागने पीछे पीछे फन फैला कर वृष्टि-जलका निवारण अध्यायके प्रयाग-माहात्म्य वर्णनमें महामुनि मार्कण्डे य., किया था। ऐसे समय जव वसुदेवजी कृष्णको ले कर ने युधिष्ठिरसे कहा था, कि गङ्गा-यमुना-सङ्गममें स्नान यमुना पार करने लगे, तव यमुना कृष्णके चरण छूने के करनेसे ब्रह्मादि द्वारा रक्षित दिव्यलोक प्राप्त होता है। लिये ऊपर उठने लगी। जब वसुदेवके कण्ठ तक जल • यहां काली, धौरी या पोली गाय जिसकी सोगे सोनेकी आ गया और वसुदेव घबराने लगे, तव नवजातशिशु हो; खुर रुपेको हो और कण्ठाभूपणसे भूपित दूध देने : कृष्णने झटसे अपने पैर नीचे वढ़ा दिये। इसके बाद वाली हो-दान करनेसे मनुष्य उस गायके शरीरके चरण स्पर्शसे कृतार्थ यमुनाका वेग घटा और वसुदेव 'प्रत्येक रोम पर एक एक सहस्र वर्ण रुद्रलोकमें पूजित ! कुशलसे यमुनाको पार कर नन्दके घर पहुचे। पूर्व ' होता है। गङ्गा-यमुनाके बोच वसी प्रयागपुरी पृथ्वी । जन्ममें तपस्या कर यमुनाने भगवान के चरणोको प्रार्थना का जंघा कही जाती है। यहां अभिषेक करनेसे राज- को थी। श्रीकृष्ण रूपमें भगवानूने उसकी प्रार्थना पूर्ण ।की। रामायणमें भी. श्रीरामचन्द्र के बन जाते समय) सूय और अश्वमेध-यशंका फल-होता है। माघ महीने में पुण्यताथा यमुना-तटके सिद्धाश्रमीका पूरा-पूरा उल्लेग्न गङ्गा-यमुनासङ्गम पर ६६ हजार तीर्थो'का समागम होता पाया जाता है। ... . . . . . है। इस समय यहां स्नान करनेसे मनुष्य-शरीरके प्रति . रामकूपक हिसाबसे सहस्र सहस्र वर्ष स्वर्गलोकमें ___ यमुनाका जल काला क्यों हुआ, इसके सन्बन्धमें पूंजित होता है। उपयुत पुराणके -३८ वें अध्याय | वामनपुराणमें लिखा है, कि दक्ष यज्ञ विनाशके बाद महा- लिखा है, कि तपनतनया निम्नगा यमुना गङ्गाके सङ्गन दव सता.वरहसं अब दुःला है। कर वाम मो.थे। (स्थानसे निकल कर पापनाशिनी रूपसे चार सौ कोस. ऐसे समय कुसुमायुध कन्दपंने उनको अकेला पत्नी.