पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४४

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यवक-यवतिक्ता लिये तिलके बदले यव और कुशके बदले दूवका ध्यवः, यवक्षा (स. स्त्री०) महाभारतके अनुसार एक नदीका हार हो कर्तव्य है। नाम। २ परिमाणविशेष, चार धान या ६ सरसोंकी तौलका यवक्षार (सं० पु०) यवजातः क्षारः शाकपार्थिववत् एक मान। समासः । क्षारविशेष, जौके पौधोंको जलाकर निकाला "जालान्तरे गते भानौ पचानु दृश्यते रजः। । हुआ खार। संस्कृत पर्याय-यवाग्रज, पाक्य, यव- चतुभिर्भवेवेल्लिख्यालिख्या षड़मिश्च सर्षपः । लास, यवशक, सारक, रेचक, यवनालक, यावशूक, क्षार, षट्सर्षपर्यवेस्त्वको गुम्का तु यबैत्रिभिः ॥" तया, तोक्ष्णरस, यवनालज, यवज, यवशकज, यवाह, (शब्दचन्द्रिका ) । यवापत्य । इसका गुण-कटु, उष्ण, कफ, वात और कलिङ्गदेशमें कोई कोई ८ सरसोंका एक यव वतलाते उदरपीड़ानाशक, सामशूल, अम्लरुक और विषदोष- है। ३ इन्द्रयव, इन्द्रजौ। ४ सामुद्रिकके अनुसार जौके नाशक । ( राजव० ) भावप्रकाशके मतसे इसका गुण- आकारकी एक प्रकारको रेखा जो उगली में होती है और लघु, स्निग्ध, अग्निदीपक, शूल, वात, आम, श्लेष्म, श्वास, जो वहुत शुभ मानी जाती है। कहते है, कि यदि वह गलरोग, पाण्डु अर्श, प्रहणो, गुल्म, अनाइ और हृद्- रेखा अंगूठमें हो तो, उसकाफल और भी शुभ होता है। रोगनाशक । जिसके मध्यमा और अड़ । देशमें सुशोभन जौका यवक्षारजन-वापविशष, भाप । (Nitrogen' वाष्प देखो। चिह्न रहे, वह दूसरेका सञ्चित द्रध्य पाता है। वह यवक्षाराम् -एक प्रकारका अम्ल औषध जो सोरा द्वारा अङ्ग स्थित जौ यदि चक्रयुक हो, तो पितामहादिका। वनाया जाता है। अगरेजीमे Nitrie acid कहते है। अर्जित धन उसे हाथ लगता है। इस रेखाका रामचन्द्र यवक्षेत्र (स० क्लो०) जौके उपजानेका खेत।। दाहिने पैरके अंगूठे में होना माना जाता है। ५ पूर्णपक्ष ।। यवक्षोद (स.पु०) यवानां क्षोदः। यवचूर्ण, जौका (शुक्रयजु०१४॥३१ ) ६ वेग, तेजो। ७ वह वस्तु जो आटा। दोनों ओर उन्नतोदर हो। यवगण्ड (सपु०) यूनो गण्डः स्फोटकः पृषोदरादि- यवक ( स० पु० ) यवप्रकार यव (स्थूलादिभ्यः प्रकारवचने त्वात् यवदेशः। युवागण्ड, महांसा। कन् । पा ५४३) इति कन्,। यव, जौ। यवगोधूमसम्भव (स' क्ली०) १ यवमिश्र काक्षिक या यवकण्टक (संपु०) पर्यटक, खेतपापडा। माड़। २ जौ और गेहूंसे बना हुआ। यवकलश (सं० पु०) इन्द्रयव, इन्द्रजौ। यवनोव (स' नि०) जीकी तरह ग्रीवायुक्त । यवकान्जिक (स० क्ली०) यवसंहित काञ्जिक, जौका यवचतुर्थी ( स० स्त्री०) वैशाख शुक्लाचतुर्थों। इस मांड। यावल देखो। दिन पश्चिमके हिन्दू आपसमें जौका चूर्ण फेकते हैं। यवक्य (त्रि०) यवकानां भवनं क्षेत्रमिति यवक यवज (संपु०) १ यवक्षार। ३ यवानो, अजवायन । (यवयवक यष्टिकात यत् । पा ५।२।३) इति यत्। यव- ३ गोधूम क्षुप, गेहू का पौधा। भवनोचित क्षेत्र, वह खेत जहां जौको फसल अच्छी यवजोद्भव (सं.क्लो०) यवजाभवाऽस्य । यवक्षीर । लगती है। यवतिक्का ( स० स्त्री०) लताभेद, शंखिनी नामकी लता। यवकिन (संपु०) यवक्रोतका नामान्तर। यवक्रीत संस्कृत पर्याय-महातिता, दूढ़यादविसर्पिणी, नाकुली, देखो। नेत्रमीना, शङ्खिनी, पत्रतण्डुली, अक्षपीड़ा, सूक्ष्मपुष्पी, यवलीत (स. त्रि०) १ यवक्रयकारी । २ यवकोत मुनि । यशखिनी, माहेश्वरी, तिकफला, यावो, तिका। इसका यवक्रीत (सं० पु०) १ जो जौके वदलेमें खरीदा गया | गुण-तिकामु. दीपन, रुचिकारक, कृमि, कुछ, विवर्ण हो। ३ एक मुनिका नाम जो भरद्वाजके पुत्र थे। । और अन्नदोषनाशक। २ तण्डलीय शाक, चौलाईका Vol. XVIII, 136