पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७१

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यशस कवि-यशोजी कङ्क देवने युटच । उण, ४१६० ) इत्यसुन् युटच । १ सुख्याति, , यशस्कृत् ( स० त्रि०) यशस्कर, वड़ाई करनेवाला । अच्छा काम करनेसे होनेवाला नाम । पर्याय-कीर्ति, यशस्य ( स० त्रि०) यशसे हित यशस्-यत्। १ यशके समज्ञा, समाख्या, कीर्तना, अभिख्यान, आज्ञा, समज्या। लिये हितकर, यशका उपकारक। स्त्रिया टाप। २ (शब्दरत्ना०) जीवती। किसीके मतसे दानादि पुण्यकर्म करनेसे जो ख्याति | यशस्यु (सं०नि०) यशोलाभेच्छु, यश चाहनेवाला। होती है उसीको यश कहते हैं। फिर कीर्शि एवं शूरता ) यवस्वत् (स' नि. ) यशोऽस्त्यस्य यशस्-मतुप मस्य आदिसे जो ख्याति होती है उसीका नाम यश है । किसी-1 घ। कीर्तिविशिष्ट, यशस्वी। का कहना है, कि यश और ख्यातिमें प्रभेद है। वह यह | यशस्थिन ( स० त्रि०) यशोऽस्त्यस्येति यशस् ( अस्मा- है, कि जीवित व्यक्तिकी ख्यातिको यश तथा मृत व्यक्ति- येति । पा ५।२।१२१) इति विनि । यशोविशिष्ट, कीर्तिमान् । की ख्यातिको कीर्ति कहते हैं। "दानादिप्रभवा कीर्तिः यशस्विन् कवि-साहित्यकौतूहल और सदुज्ज्वलपदाकी शौर्यादिप्रभाव यशः इति माधवी।" टीकाके प्रणेता तथा गोपाल के लड़के । ___ कीर्ति और यशके वीच जो प्रभेद दिखाया गया वह यशस्विनी ( स० स्त्री०) यशस्विन स्त्रियां डीप । । युक्तिसंगत नहीं। किसीकी कीर्ति नष्ट नहीं करनो ख्यातिमती, कीर्तिमतो। २ वनकार्पासी, वनकपास । चाहिये । स्वकीर्ति या परकीर्त्तिनाशक व्यक्ति नरकगामी, ३ यवतिक्ता, शंखिनी नामकी लता। ४ महाज्योति. होता है। (ब्रह्मवैवर्त पु० प्रकृतिख० ४७ अ० ) २ अन्न ।' मती। ५ सत्यवतकी पत्नी । (कथासरित्सा० ७३१२५७) "धयं स्यामयशसो जनेपु" (भृक् ४।५२१११) ३ वड़ाई, गंगा। प्रशंसा। (त्रि०) ४ यशस्वी, प्रतापवान् । यशस्वी (स.नि.) यशस्विन् देखो। यशसकवि-भाषानुशासनके प्रणेता। यशी (सं त्रि०) यशस्वी, कीर्तिमान् । यशसभट्ट-एक प्राचीन कवि। यशुमति (हि स्त्री०) यशोदा देखो। यशस्कर (सं० त्रि०) यशस्करोति यश (कृतो हेतुताच्छो- यशोगुप्त-मगधवासो एक वौद्ध-श्रमण। ये अपने गुरु ल्यानुलोम्येषु | पा ३।२।२० ) इटि ट। १ कीर्शिकारक, ' ज्ञान यशदेवको सहायतासे ५६४से ५७२ ई०तक छः बौद्ध- यश करनेवाला। (को०)२विष्णुक्षेत्र विशेष। ग्रन्थ चीन भाषामें लिख गये हैं। "विरंज पुष्पवत्यायां वालश्चामीकरे विदुः। यशोगोपि (सपु०) कत्यायन-श्रौतसूत्रके एक भाष्य. यशस्करं विपाशाय माहिष्मत्या हुताशनम् ॥" कार। भाष्यकार अनन्तने इनका नामोल्लेख किया है। (नरसिंहपु० ६२ अ०)यशोध्न ( सं त्रि०) यशो हन्ति हन् क। यशोनाशक, (पु०) ३ वह ब्राह्मण जो शोभावतोपुरीमें उत्पन्न कोर्तिको नष्ट करनेवाला। हुआ हो। यशोजी कङ्क-एक पहाड़ी महाराष्ट्र-सरदार तथा महाराष्ट्र- यवस्कर-अलङ्काररत्नाकरोदाहरण-सन्निवद्ध देवीस्तोत्रके | केशरो छत्रपति शिवाजीके एक विख्यात अनुवर । इन्हीं- • रचयिता। ये काश्मोरके निवासी थे। के अमितपराक्रम, साहस और वीर्यवलसे शिवाजीने यशस्करदेव-काश्मीरके एक राजा । ये जातिके ब्राह्मण | अनेक रणक्षेत्रोंमें जयप्राप्त किया था। ये शिवाजीके वायें हाथ थे, ऐसा कहने में भी अत्युक्ति नहीं। इन्होंने यशस्करी (स० स्त्री० ) १ यशस्करी विद्या, वह विद्या कभी भी शिवाजीका साथ नहीं छोड़ा था। १६४६ जो यश बढ़ानेवाली हो। २ वृहज्जीवन्ती लता, वड़ो ई०में इन्हों की एकमात्र सहायतासे नीरानदीके किनारे- जीवंतीको लता। ३ शंखिनी । तोर्णादुर्ग दखल हुआ था। उस समयसे शिवाजोके यशस्काम (सत्रि०) यशसि कामो यस्य । यश:- भाग्याकाशमें गौरव-सूर्य शोभा पाने लगे। शिवाजी देखो। पार्थी, यशकी कामना करनेवाला।