पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५९६

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यष्टिमधुका-यहूदी. चक्षु का हितकर, शीतल, पित्तघ्न, शोष, तृष्णा और प्रण- | यष्ट्याह्न ( सं० क्ली० ) यष्टोत्याहा यस्य । यष्टिमधु, नाशक। (राजनि० ) सुश्रुतक मतसे यह शूलरोगमें मुलेठी। विशेष उपकारक है। विरेचनके पक्षमें यह बहुत बढिया | यस्क (सं० पु० ) यसति मोक्षाय यस्-क्किप संज्ञायां कन् । है। किसी किसीके मतसे यह स्निग्ध और शिथिलता- | गोत्रप्रवर्तक एक मुनिका नाम । कारक है। भावप्रकाशमे इसका गुण-शीतल, गुरु, । यस्मात् (सं० अध्य०) १ जिससे । २ जिस कारण । खादु, चक्षुष्य, बल और वर्णवद्ध क. सुस्निग्ध, शुक्र- यस्य (सं०वि०) १जी अध्यवसाय द्वारा किया गया वर्द्धक, केशका हितकर, पित्त, वायु और रक्तदोषनाशक, हो ।२ वध्य, वध करने योग्य। व्रण, शोथ, विष, छहि, तृष्णा, ग्लानि और क्षयरोग- | यस्यत्व (सं० क्लो० ) १ चेष्टा, उद्यम । २ वधयोग्यता। नाशक माना गया है। | ३ मृत्यु, मरण। . यष्टिमधुका (सं० स्त्री०) यष्टि मधुवत् कायतीति कै-क | यह (सं० पु०) १ जल। २ शक्ति । टाप् । यष्टिमधु, मुलेठी। | यह ( हिं० सर्व०) निकटकी वस्तुका निर्देश करनेवाला यष्टियन्त्र (सं० क्लो०) यन्त्रभेद, वह धूपधड़ी जिसमें एक एक सर्वनाम । इसका प्रयोग वक्ता और श्रोताको छोड़ छड़ो सोधी खड़ी गाड़ दी जाती है और उसकी छायासे | कर और सब मनुष्यों, जीवों तथा पदार्थों आदिके लिये समयका ज्ञान होता है। यन्त्र देखो। होता है। यटिलता (सं० स्त्रो०) भ्रमरारिपुष्पवृक्ष, भ्रमरमारी नामक यहां (हिं० वि०) इस स्थानमें, इस जगह पर। फूलका पेड़। यहि (हिं० वि० सर्व०) १ 'यह' का वह रूप जो पुरानी यष्टिवन-राजगृहके पूर्व में स्थित एक वन। इस वनमें हिन्दी उसे कोई विभक्ति लगनेके पहले प्राप्त होता है । बुद्धदेव विहार करते थे, इसलिये यह स्थान बौद्धोंका २' का विसक्तियुक्त रूप जिसका व्यवहार पीछे कर्म एक पवित्र तीर्थस्थान माना जाता है। बौद्ध-सम्राट् और सम्प्रदानमें ही प्रायः होने लगा, इसको। अशोकने यहां एक स्तूप बनवाया था। चीनपरिव्राजक यही (हिं० अन्य० ) निश्चित रूपसे यह, यह ही। . युएनचुवंगके वर्णनसे मालूम होता है, कि यहां जयसेन | यहु ( स० त्रि०) १ महत्, वड़ा । (पु.)२ पुल, नामक एक त्रिय उपासक रहते थे। वे सब शास्त्रोंको लडका। जानते थे। ब्राह्मण, श्रमण आदि भिन्न भिन्न धर्मावलम्वी यहूद (हिं० पु० ) वह देश जहां हजरत ईसा पैदा हुए थे उनसे शास्त्रालाप करने आते थे। और जहांके निवासी यहूदो कहलाते हैं। यह देश यष्टी (सं० स्त्रो०) यष्टि 'कृदिकारानतिनः' इति डोष ।१ । एशियाकी पश्चिमी सीमा पर है। यष्टिमधु, मुलेठी १२ गलेमें पहननेका एक प्रकारका हार, यहूदो (यहूदा, यहूदी, यिउ)-पश्चिम एशियावासी एक मोतियोंकी ऐसी माला जिसके बीच वोचमें मणि प्राचीन जाति । हिब्रू इस जातिको भाषा है। इससे भी हो। यह हिब्रू जातिके नामसे भी परिचित है। ईसाके यष्टीकर्ण (सं० पु०) कानमें पहननेका एक प्रकारका जन्मसे बहुत पहलेसे यह जाति स्वतंत्र धर्म मार्गका भूषण, कुंडल। माश्रय ले कर वास करती है। वाइवल प्रथका प्राची यष्टीपुष्प (सं० पु० ) यष्टोपुष्पमिव पुष्पं यस्य। पुनश्चीव. नांश (Old testament) हिब्रु भाषामें लिखा हुआ है। . वृक्ष, पुत्रजीवका पेड़। इस जातिको प्राचीन समृद्धिको परिचय बाइविलमें यष्टीमधु (सं० लो०) यष्ट्यां मधुमाधुर्यमस्य । मिष्ट मूल- रहते हुए भी इसको कोई खास वास-भूमि नहीं हैं। विशेष । जेठी मधु । पर्याय-मधुयष्टी, मधुवल्ली, | पृथ्वीके नाना देशोंमें अपने उपनिवेश कायम कर मधुस्रवा, मधूक, मधु, यष्टीक। यष्टिमधु देखो। रहती हैं। यष्ट्र (सं० पु०) यजते इति यज-तृव । यागकर्ता, यजमान। यहूदी राज्यभ्रष्ट हो कर क्यों इधर उधर भटकते हैं। Vol XVIII, 149