पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२७

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६२४ याजपुर ' हुए थे, विष्णुने उसी चेदिवंशीय तुम्माण के राजाको | थे। इन्होंने ही श्रीकूर्मेश्वरमन्दिरके सामने 'योगानन्द परास्त किया था। नृसिंह' नामक एक मन्दिर बनवाया है। साहित्य- अनङ्गभीमके बाद उनके लड़के नृसिंहदेव (१म । दर्पणकार विश्वनाथने २य नृसिंहको सभाको उज्ज्वल 'सिंहासन पर बैठे। इनका राज्यकाल ११६०से ११८६ शक किया था। "है। इन्होंने अपने बाहुवलसे रोढ़ और वरेन्द्र तक जोता य नृसिंहके बाद उनके लड़के चोरादेवीके गर्भ- था। तुधिल इ-तुधान खाँ इनके हाथसे कई बार परास्त जात श्य भानुदेव सिंहासन पर बैठे। इन्होंने १२२७ हुए थे। गाङ्गेय देखो। गाङ्गय शब्दमें अनङ्गभीमके समय से १२५० ई० तक राज्य किया था। इन भानुदेवके युद्धघटनाकी वात लिखी है। किन्तु अभी नाना कारणोंसे | साथ गयासुद्दीन तुगलकका विपुल संग्राम छिड़ा था। जाना जाता है, कि नृसिंहदेवके शासनकाल में ही उक्त जियाउदोन् वरणीके इतिहासमें लिखा है, कि गयासुद्दीन- युघटना घटी थी। यह महावीर कोणार्कका अपूर्ण का लड़का उलुध खाँ जाजनगरकी ओर रवाना हुआ। सूर्यमन्दिर बना कर चिरस्थायी कीर्ति छोड़ गये हैं। वहां ४० हाथी ले कर तिलङ्गकी ओर प्रस्थान किया। 'एकावलीके रचयिता प्रसिद्ध आलङ्कारिक विद्याधरने इस सब हाथी उसके पिताके निकट भेजे गये। इब्न बतूताके नृसिंहदेवको सभाको उज्ज्वल किया था। मतसे उलुघखाँको विजयके बाद याजनगर चङ्गराज्यभुक - विद्याधर नृसिंहराजके प्रशस्तिस्वरूप अपने ग्रन्थमें हुआ था। किंतु तारीख-इ-फिरोजशाहोकार जियाउद्दीन '३१४ श्लोक लिपिवद्ध कर गये हैं। साहित्यदर्पणकार वरणो इसे स्वीकार नहीं करते। 'विश्वनाथके पिता कविवर चन्द्रशेखर भो इस समय विद्य। पूर्णचालुक्य वंशसम्भूत जगन्नाथदेव भानुदेवके 'मान थे। नृसिंहदेवके उनके वाद लड़के भानुदेव (श्य) अधीन सामन्त तथा नाना जनपदविजेता घरड़मजी राजसिंहासन पर बैठे। ११८६से १२०० शक पर्यन्त उन्हों- राम-सेनापति भानुदेवके मन्त्री थे। इसके बाद लक्ष्मी- 'ने शासन किया। कवि चन्द्रशेखर इनके मन्त्री थे। पुष्प ' देवीके गर्भजात भानुके प्रियपुत्र ३य नृसिंहदेव राज- माला नामक संस्कृतकावा और भाषार्णव नामक प्राकृत सिंहासन पर आरूढ़ हुए। इनका शासनकाल १२४६ अन्य चन्द्रशेखरके बनाये हैं। चन्द्रशेखरके रचित भानुदेवके शक तक था। पीछे कमलादेवीके गर्भजात ३य नसिंह- प्रशस्तिसूचक श्लोक उनके लड़के विश्वनाथके साहित्य- देवके पुत्र ३य भानुदेवने २२७४ ५से १३००.१ शक तक 'दर्पणमें उद्धृत हुए हैं। भानुदेवं श्रोत्रिय ब्राह्मणोंको राज्य किया। इन्होंने कूर्मस्वामोके मन्दिर में पौष शुक्ल ताम्रशासन द्वारा उद्यान और भवनशोभित एक-सौ प्रतिपदको आलोकहस्त वीर सिंहदेव और गङ्गाम्बिका- 'प्राम दोन कर गये हैं। की मूर्ति स्थापित की। इससे गङ्गाम्बिकाको ही कोई " - ‘पीछे उनके लड़के चालुक्यकुलसम्भूता जाकल्लदेवी- कोई भानुदेवको माता मानते हैं। के गर्भजात नृसिंहदेवने राजसिंहासन सुशोभित किया। १२५३ ई०में वङ्गाधिप हाजी इलयासने राजाको 'उनका राज्यकाल १२०१ से १२२७ शक माना जाता है। मृत्युका संवाद पा कर हाथी छीन लानेके लिये उनके मन्त्री दोसादित्यके पुत्र गरुड़नारावणके पुत्र थे। जाजनगर पर चढ़ाई कर दी। इसके कुछ समय सुप्रसिद्ध द्वैतमतप्रवर्तक आनन्दतीर्थके शिष्य नरहरि वाद हो विजयनगराधिप १म बुक्के भतीजे सङ्गमने तीर्थ नृसिंहदवके अधीन कलिङ्गके शासनका उत्कलाधिपतिको परास्त किया । तारीख इ-फिरोज- | शाहीमें लिखा है, कि भानुदेवके शासनकाल में दिल्लीश्वर

  • गाय शब्दमें इस तुम्माणको तुमिल-इ-तुधनखा कहा गया फिरोजशाह जाजनगर पर चढ़ आया। भानुदेव पहले

है। किन्तु उस समय तुषान खाका अस्तित्व न रहने तथा चेदि तैलङ्ग भाग गये। आखिर उन्होंने कुछ हाथो भेज कर राजाओंकी शिलालिपिमें तुम्माण जनपदका भूरि भरि -उल्लेख | मेल कर लिया। देखे जानेसे यहां पर संशोधन कर लिया गया। . . . इसके बाद वालुक्यराजकन्या हीरादेवीको गर्भजात -