पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३३

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यात्य-यात्रा यात्यः (सं० वि०).यत कर्मणि हुन् । यतनोय. कोशिश, सप्तमी, पञ्चमी, दशमी, एकादशो और त्रयोदशो इन सव करने लायक। तिथियों में यात्रा करनेसे शुभ होता है। इसके सिवा यात्रा ( सली०) या (हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन् । उण ४।१६७) तिथिकां यदि किसी वारके साथ योग रहे, तो सिद्धि इति ऋन्-टाप् । १ विजयको इच्छासे कहीं जाना, 1 आदि योग होता है। ये सब योग यात्रिक हैं, निषिद्धं चढ़ाई। पर्याय-व्रज्या, अभिनिर्याण, प्रस्थान, गमन, तिथि रहते हुए भी यात्रा शुभ है। . गम, प्रस्थिति, यान; प्रापण। २ प्रमाण, प्रस्थान | ३ ___यात्रांमें उत्तम, मध्यम और अधम ये तीन प्रकारके दर्शनार्थ देवस्थानोंको जाना, तीर्थाटन। ४ उत्सव । नक्षत्र हैं। अश्विनी, अनुराधा, रेवती, मृगशिरा, मूला, ५ व्यवहार । '६ एक स्थानसे दूसरे स्थान पर जानेकी पुनर्वसु, पुष्या, हस्ता और ज्येष्ठा ये सब नक्षत्र यात्रामें किया। सफर। कहीं जानेमें ज्योतिषोक्त शुभदिन | उत्तम हैं। इसीसे इन्हें यात्रिक उत्तम नक्षत्र कहते देख कर यात्रा करनी होती है। क्योंकि, शुभ दिनमें और हैं। रोहिणी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्व भाद्रपद, पूर्णफल्गुनो, शुभ क्षणमें याला नहीं करनेसे पद पद विघ्नकी सम्भा- चिता, स्वाती, शतभिषा, श्रवणा और धनिष्ठा ये सब वना है। ज्योतिष में यात्रिक दिनका विषय इस प्रकार | मध्यम हैं, इसीसे इनका नाम मध्यम नक्षत्र है। उत्तरा. लिखा है-भाद्र, पौष और चैत्र मास दूरकी यात्रा | षाढ़ा, उत्तरभाद्रपद, उत्तरफल्गुनी, विशाखा, मघा, नहीं करनी चाहिये। इन तीन मासोंको छोड़ कर और आर्द्रा, भरणी, कृत्तिका और अश्लेषा ये सव नक्षत्र अधम सभी मासोंमें यात्रा कर सकते हैं। हैं। इस कारण इन सब नक्षत्रोंमें कदापि यात्रा नहीं इस देशमें ऐसा भी देखा जाता है, कि यदि कोई करनी चाहिये। . . . . . . इन तीन महीनोंमें कहीं जाय, तो वह फिर उसी मासमें | नक्षत्रशूल-खाती और ज्येष्ठा नक्षतमें पूर्णदिक - लौट आता है। शल है, इस कारण पूर्व की ओर इन दो नक्षत्रों में यात्रा पहले यानाप्रकरणमें दिक शूल देखना होता है। न करे । इसी प्रकार पूर्वभाद्रपद और अश्विनीमें क्योंकि एक एक दिक का अधिपति एक एक ग्रह है। दक्षिणकी ओर, पुष्या और रोहिणीमें पश्चिमकी ओर उसे अधिपति ग्रहकी ओर यात्रा करनेसे अशुभ होता है । तथा उत्तरफल्गुनी और हस्तामें उत्तरको ओर जाना रवि और शुक्रवारको पश्चिममें दिक शल है, इस- निषिद्ध है। लिये इन दो वारोंमें पश्चिमकी यात्रा नहीं करनी | गरवणिज और विष्टि पे तीन करण यात्रा में चाहिये। इसी प्रकार उत्तरको ओर बुध और मङ्गल- | निषिद्ध बताये गये हैं। किसी किसीका मत है, कि यदि वारमें, दक्षिण ओर वृहस्पतिवारमै तथा किसी किसीके | गर करणमें यात्रा की जोय, तो कोई दोष नहीं । सिह, मतसे वुधवार भी निषिद्ध बताया गया है। उत्तरकी ओर वृष, कुम्भ, कन्या और मिथुन लग्न यात्रा प्रशस्त है। बुध और मङ्गलवार में तथा पूर्वको ओर सोम और शनि- इसके सिवा और सभी लग्नोंमें यात्रा निषिद्ध बताई वारमें नहीं जाना चाहिये। यदि कोई इस दिक शूलका | लडन कर यात्रा.करे, तो वह इन्द्रके समान भी क्यों ने | यात्रामें योगिनीका अच्छी तरह विचार करना होता हो, उसका कार्य सिद्ध नहीं होगा। हैं। योगिनीको सम्मुख वा दक्षिण करके कभी भी याता' पूर्व दिशा जानेमें रवि और शुक्रवार, दक्षिण में मङ्गल-: न करे। जिस ओर जाना होता है, उसके बाएं अथवा बार, पश्चिममें सोम और शनिवार तथा उत्तरमें वृह- | पीठ पर योगिनी रहनेसे शुभ होता है। निम्न प्रकारसे स्पति प्रशस्त है अर्थात् इन सब बारोंमें यात्रा करने योगिनी स्थिर करनी होती है। प्रतिपद और नवमी से शुभ होता है। तिथिमें पूर्णकी ओर योगिनी रहती है, इसी प्रकार तृतीया ___ इस प्रकार वार स्थिर कर पीछे तिथि, नक्षत्र, योग, और एकादशीको नैऋतकोणमें, षष्ठो और चतुर्दशीको करण और लग्न स्थिर करना होता है । द्वितीया, तृतीया, • पश्चिम दिशामें, सप्तमी और पूर्णिमाको वायुकोणमें