पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५२

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६४६ यादवराजवंश शिलालिपि आविष्कृत हुई है। उससे देखा जाता है, कि कर्त्तव्यविमूढ़ हो गये। राजा रामचन्द्र यह संवाद पा कर महिसुरके बहुत दक्षिण तक रामचन्द्रका अधिकार विस्तृत बड़ो तेजीसे चार हजार सेना ले कर शत्रुकी गति.रोकने. था। प्रसिद्ध धर्मशास्त्रवित् चतुर्वर्गचिन्तामणिके रच- के लिये चल दिये। किन्तु सुविधा न देख कर उन्होंने यिता हेमाद्रि पहले महादेवके करणविभागके अधिपति | दुर्गमें आश्रय लिया। इधर अलाउद्दीनने यह प्रचार कर (Chief-Secretary) और पीछे प्रधान मन्त्री हुए थे। दिया, कि दिल्लीश्वर बहुत-सी सेना ले कर पीछे आ रहे उन्होंने स्वरचित चतुर्वर्गचिन्तामणिके अन्तर्गत वनखण्ड हैं। रामचन्द्र इस संवाद पर डर गये और स'धिका में 'राजप्रशस्ति' अभिधेय दो अध्यायमें यादवराजवंशका प्रस्ताव करके उन्होंने एक दूत भेजा। अलाउद्दीनने कई संक्षिप्त इतिहास लिखा है। . मन सोना मांगा । इस समय रामचन्द्रके पुत्र शङ्कर बहुत. वे स्वय पण्डित थे और पण्डितोंक आश्रयस्वरूप थे। सी सेना ले कर उपस्थित हुए। विपुल हिन्दसेनासे वेधामिक, पुण्यचरित्र और महावीर थे। उनकी चतु मुसलमान-सेना विलकुल हार जातो, पर उन्होंने देखा वर्गचिन्तामणि सभी धर्मों और पुराणशास्त्रोंका सार- कि दिल्लीसे बहुत सेना आती होगी, तव'वे सबके सव संग्रह है। यह एक बड़ा ग्रन्थ है, आकारमें महाभारतके निरुत्साह हो गये। इस आशङ्काका फल यह हुआ कि, साथ इसकी तुलना की जा सकती है। हिन्दूसेना बुरी तरहसे परास्त हुई। • "मायुर्वे दरसायन" नामक वाभटकी टोका और वोप- रामचन्द्र के मित्र सभी हिन्दूराजे अपनी अपनी सेना देव-रचित "मुक्ताफल" नामक वैष्णवनथ हेमाद्रिके भेज कर उन्हें मदद पहुंचाने पर तैयार थे। परन्तु राम- वनाये हुए हैं, ऐसा बहुतोंका अनुमान है। मुग्धवोधके । चन्द्रने डरके मारे बहुत जल्द अलाउद्दीनके निकट संधि- • रचयिता पण्डितवर वोपदेवने हेमाद्रिको प्रसन्न करने का प्रस्ताव लिख भेजा। अलाउद्दीनने ६०० मुक्ता, २ लिये ही श्रीमद्भागवतका सारसंग्रह कर 'हरिलीला' की | मन जवाहरात, १००० मन चांदी, ४००० खण्ड रेशमी रचना की। महाराष्ट्रमें हेमाडपन्त नामसे हेमाद्रिका नाम वस्त्र तथा और भी कितनी मूल्यवान वस्तुवे मांग भेजी। प्रसिद्ध है। समस्त महाराष्ट्रमें विद्यमान एक विशेष | जो कुछ हो, रामचन्द्रने एलिचपुर तथा उसके अधीन आकार प्रकारका मन्दिर इन्हीं हेमाडपन्तकी कीर्ति है। देश छोड़ दिये । अलाउद्दीनने मुहमांगा रत्न पा कर देव- वे जव यादवराजके लेखनाधिप थे, उस समय लेखन | गिरिका परित्याग किया। कार्यकी सुविधाके लिये उन्होंने सिंहलसे 'मोड़ी' नामक कुछ वर्ष बाद अलाउद्दीनने अपने चचाका काम एक प्रकारको लिपि ला कर उसका प्रचार किया। | तमाम कर दिल्लोके सिंहासन पर बैठा । यादवराजके हेमाद्रि देखो। कर भेजनेकी वात थो, पर उन्होंने आज तक नहीं भेजा। प्रसिद्ध मराठी साधु ज्ञानेश्वर यादवपति रामचन्द्रके | उनका दमन करनेके लिये अलाउद्दीनने मालिक काफूरके समयमें ही प्रादुर्भूत हुए थे। शानेश्वर देखो। उनकी | अधीन तोस हजार सेना भेजी। मालिक काफूर १२२८ 'मराठी भगवद्गीता १२१२ शकमें सम्पूर्ण हुई। रामचन्द्र शक (१३०७ ई०) में देवगिरि आ धमका। हिन्दू-मुसल- ही यथार्थमें दाक्षिणात्यके अन्तिम स्वाधीन हिन्दुराजा मानमें घमासान युद्ध छिड़ा। रामचन्द्र पराजित और थे। उनसे एक सदी पहले मुसलमानोंने आर्यावर्तमें पन्दीभावमें दिल्ली लाये गये। यहां वे छः मास रहे, अपना आधिपत्य फैलाया था। वे दाक्षिणात्य जीतनेके | पोछे सम्मानपूर्वक छोड़ दिये गये। तभोसे रामचन्द्र लिये विलकुल निश्चेए थे, ऐसा हो नहीं सकता । १२१६ / दिल्लोदरवारमें कर भेजने और मुसलमानराजके साथ शक (१२९४ ई० ) में कराढ़के शासनकर्ताका भतीजा | सद्भाव रख कर चलने लगे। १२३१ शक (१३०६ ई०) में अलाउद्दीन खिलजी आठ हजार सेना ले कर इलिचपुर मालिक काफूर तैलङ्गाधिपको शासन करनेके लिये भेजा पर चढ़ पाया। उस समय रामचन्द्र राजधानी में नहीं गया। देवगिरिमें वह कई दिन ठहरा । रामचंद्रने उसका थे। इस प्रकार अतर्कित आक्रमणसे हिन्दू लोग किं. अच्छी तरह स्वागत किया था ____Vol. XVIII, 163 ।