पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६३

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६६० यावदमन-यावस यावदमन (सं० अव्य०) यावन्ति अमत्राणि सन्ति तावत् । रुचिकर, शीतल, पित्तघ्न, तृष्णानाशक तथा पशोको जितना पात्र हो। दुर्वल करनेवोला माना गया है। (वैद्यकनि० ) यावदर्थ (सं० त्रि०) आवश्यकतानुसार, जरूरतके | यावनालशर (स० पु०) यावनाल इव शरः। शरभेद । मुताविक। पर्याय-नदीज, दृढ़त्वक, वारिसम्भव, यावनालनिम, यावदह (सं० अन्य०) जैसा दिन। खरपत्र । इसका मूल गुण-ईपन्मधुर; रुनिकर, शीतल, यावदाभूतसंप्लव (सं० अव्य०) प्रलयकाल तक। | पिच, तृष्णा तथा पशुओंका बलनाशक । ( राजनि० ) यावदायुस ( स० अव्य०) आजावन, अव तक जिन्दगी ! यावनाली (स० स्त्री०) यवनालस्य विकारः यवनाल- है तव तक। । अण, ततो डीप। मक्के से बनाई हुई चीनी, ज्वारको यावदित्थम् (स अन्य०) जितनी आवश्यकता हो । शक्कर । पर्याय-हिमोत्पन्ना, हिमानी, हिमशकरा, शुद्ध, उतनी। । शरिका, क्षद्रा, गड़भा, जलविन्दुजा। इसका गुण- यावदीप्सित (सं० अव्य० ) जितनी इच्छा हो। उष्ण, तिक्त, अतिपिच्छिल, वातनाशक, सारक, रुचिकर, यावदुक्त (स० लि० ) कहे मुताविक, जैसा कहा गया हो दाह और पिपासावर्द्धक माना गया है। (राजनिः) ठोक वैसा। यावनी (सं० स्त्री० ) यावन ङोप । १ करङ्कशालि नामको योवदुत्तम (स अव्य० ) शेष सीमा तक । ईख, रसाल । (राजनि० ) (त्रि०)२ यवन सम्वन्धी । यावद्गम (सं० अव्य०) जितना शीघ्र जानेका सम्भव हो । यावन्मान (स० त्रि०) १ मानानुरूप, मानाके मुताविक । उतना। २ थोड़ा छोटा। यावद्वल (स० अव्य०) जितनी शक्ति, शक्तिके मुताविक । । यावयद्वपस् ( स० वि०) निशाचर, राक्षस । यावर (फा०वि०) सहायक, मददगार । यावद्भाषित (स० वि०) जितना कहा गया है, कहे यावरी (स. स्त्री०) यावरका भाव या धर्म, मित्रता । मुताविक। | यावल-वम्बई प्रेसिडेन्सो खान्देश जिलाके अन्तर्गत एक यावद्राज्य (स अध्य०) समस्त राज्य । यावद्वेद (स० अव्य० ) जितना लाभ हुआ है या जहां । नगर। यह अक्षा० २०१० ४५” उ० तथा देशा० ७५.४५ पू०के मध्य अवस्थित है। यह नगर पहले तक जाना गया है। सिन्द राजाके अधिकार में था। वे १७८८ ई० मे निम्वल- यावयाप्ति ( स० अध्य० ) शेप तक। कर सेनानायकको दान दिया। १८११ ई में निम्वलकरके यावन (सं० पु०) यवने यवनदेशे भवः यवन अण। १| वंशधरोंने इसे अगरेजोंको दिया । १८१७ ई०मे अगरेजोंने शिहाख्य, शिलारस। (त्रि. ) २ यवनसम्बन्धी, पुनः उसे सिन्दराजको अर्पण किया। किन्तु १८४१ यवनका। ई०से पुनः उसके हाथसे छीन लिया। निम्बलकर-वंश- यावनक ( स० पु०) रक्त एरण्ड, लाल मंडी। के अधिकारकालमें इस जगह एक समय देशो कागज यावनकल्क (स० पु०) शिलारस। । और नीलका विस्तृत कारवार था : इस समय वहां कुछ यावनाल (सं० पु०) यवनाल इवेति यवनाल-स्वार्थे । भो नहीं है। अण। स्वनामख्यात शिम्बीधान्य, जुआर। पर्याय- यावशक (सपु०) यवशूक एव खार्थे अण, यद्वा याव्य यवनाल, शिखरी, वृत्तण्डुल, दोर्घनाल, दीर्घशर, क्षेत्रेक्षु, यवस्य शूका कारणत्वेनास्त्यस्येति अर्श आद्यच्, । यव- इक्षपत्रक। गुण-वलकर, त्रिदोषनाशक, रुचिकर, अशे, | क्षार जवाखार । यक्ष्मा, गुल्म और वणनाशक । (राजनि०) यावस (स० पु० ) चूयते इति यु-( वहियुम्यां णित् । उण यावनालनिभ (सं० पु०) याचनाल, जुआर । २११६ ) इति असच, तस्य णित्वञ्च यद्वा यवसानां यावनाल-रसजगुड़ (सं० पु०) यावनालस्य रसजातः, समूहः ( तस्य समूहः । पा ४।२।३७) इति अण् । यवस- गुड़ः । जुआरका गुड़ । इसका गुण क्षार, कहु, सुमधुर, । समूह, घास, डंठल आदिका पूला।