पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६८

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घटिका, दो घटिकाका एक मुहर्त, तीस मुहूर्त्तका एक 1 इस समय १२ वर्षमें वृद्ध और २० वर्षमें मृत्युमुखमें अहोरात्र, तोस अहोरातका एक मास, छः मासंका एक पतित होगा। इस युगमें जीवकी प्रज्ञा थोड़ी, इन्द्रिय- अयन और दो अयनका एक वर्ण होता है। दक्षिणायन ) प्रवृत्ति अति कुत्सित और अन्तःकरण बहुत अपवित देवताओंकी रात्रि और उत्तरायण दिन है। अतएव होगा। ससुर और सास तथा साला यही तोन पूज्य मनुष्यमानका एक वर्ण देवताओंकी एक दिनरात होती होंगे तथा उन्हींके अनुगत हो कर वह पितामाताका है। इस प्रकार देवमानके वारह हजार वर्णका सत्य, अनादर करेगा। जिसकी स्त्री सुन्दर है,वह सुहृद् होगा। त्रेता, द्वापर और कलि यह चार युग होता है। इसलिये वृष्टिके नहीं होनेसे हमेशा दुर्मिक्ष पड़ेगा। जो कुछ तीन हजार वर्षका एक एक युग होता है। प्रति युगके दोषशब्दवाच्य तथा साधुविगर्हित है वही इस युगमें धर्म पूर्व सन्ध्याका परिमाण यथाक्रम चार, तीन, दो और होगा। किन्तु कलियु गर्भे ये सव दोष रहने पर भी एक पंक सौवर्ण तथा संध्यांश भी उतना ही है। इस प्रकार | बड़ा गुण यह होगा, कि सत्यकालमें कठोर तपस्या द्वारा सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि इसके चार हजार युगका जो पुण्य अर्जित होता था, कलियु गमें बहुत थोड़े परि- ब्रह्माका एक दिन होता है। ( विष्णुपु० ११३ म०) श्रमले ही मनुष्य वह पुण्य अर्जन कर सकेगा। • . इन चार युगोंमेंसे सृष्टिके आरम्भमें सत्ययुग, . (विष्णु०६-१-२ १०) उसके बाद नेता और द्वापर तथा अन्तमें कलियुग होता देवीभागवतमें लिखा है, कि कलियुगके प्रभावसे है। प्रथम सत्ययुगमें ब्रह्मा सब भूतोंकी और अन्तिम ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य अपने अपने भाचार, संध्या- कलियु गमें समस्त सृष्टिका उपसंहार कहते हैं। सत्य- वन्दन और यज्ञसूत्रका पालन न करेंगे। चारों वर्ण अपने युगमें धर्म चतुष्पद, त्रेता त्रिपाद, द्वापर में द्विपाद और शास्त्रका परित्याग कर म्लेच्छशास्त्र पढ़ेंगे और म्लेच्छा. कलिमें पादसान रहेगा। चारी वनेंगे। ब्राह्मणादि तीनों वर्ण शूद्रके दास होंगे। • मैत्रेयने पराशरसे जब कलिय गके माहात्म्यका विषय | तथा वे पाचक, पनवाहक आदि निकृष्ट कर्म करेंगे। पूछा, तंव उन्होंने इस प्रकार कहा था,- पृथिवी शस्यहीना, वृक्ष फलहीन, स्त्री पुत्रहीन और गाय कलियु गमें मनुष्योंका वर्ण और आश्रमधर्म विलुप्त दुग्धशून्य होगी। दम्पतिके वीच प्रीति न रहेगी। गृहस्थ होगा। इस युगमें जिसके मनमें जो आयेगा; उसीको सत्यहीन, राजा प्रतापशून्य, प्रजा करमारपीड़ित ; नद, वह शास्त्र कडेगा तथा अपने अपने अभिप्रायानुसार नंदी, दीर्घकादि जलशून्य, चारों वर्ण धर्म और पुण्यहीन संभी सभी देवताओंकी उपासना करेंगे तथा सभी सभी होंगे। पुरुष, स्त्री और वालक कुत्सितचरित्रके और आश्रमोंमें अनुपणभावसे घुसेंगे। मनुष्यगण धर्मके | कुत्सिताकारसम्पन्न होंगे तथा वे हमेशा लोगोंके मुखसे विषयमें कुछ भी खर्च न करके गृहनिर्माण तथा भोग- कुचारी और कुत्सित शब्दादि सुनेंगे। कोई कोई ग्राम सुखमें अपनी सारी सम्पत्ति नष्ट करेंगे। स्त्रियां अनेक और नगर जनशून्य होगा। कलिके प्रभावसे यही सव प्रकारके सौन्दर्य पर मोहित हो स्वेच्छाचारिणी होगी।। अनिष्ट होंगे। जीवका ध्यान अपने स्वार्थको ओर अधिक रहेगा। देवभक्तगण नास्तिक, पुरवासिगण हिंसक, दयाहीन स्वार्थमें नुकसान पहुंचा कर वे मित्रको भी प्रार्थनाको न और नरघातक होंगे। पुरुष और स्त्री सभी व्याधियुक्त सुनेंगे। शूद्रगण 'ब्राह्मणों और हममें कोई फर्क नहीं हैं। और खर्वाकृतिके होंगे। मानव १६ वर्षमें जरायुक्त होगा 'ऐसा समझ कर स्पद्धित होंगे। सभी मनुष्य दुर्भिक्ष, और २० वर्षमें प्राणत्याग करेगा। स्त्रियां ८ वर्षमें ही रोजकर और व्याधि द्वारा नितान्त पोड़ित रहेंगे, वैदिक ऋतुमती और १६ वर्षमै वृद्धा तथा अधिकांश स्त्रियां क्रियाकलापका होगा तथा वे पापण्ड और अल्पायु होंगे। बन्ध्या होगी। चारों वर्ण कन्यादि विक्रय करेंगे। मनुष्य इस युगमें आठ, नौ और दश वर्षके लड़कोंके सहवाससे प्रायः माता, पत्नी, पुत्रवधू, भगिनी और कन्या इन्ही के पांच, छा वा सात वर्षकी कन्या सन्तान प्रसव करेगी। व्यभिचारलग्ध धनसे जीविका निर्वाह करेगा। हरिनाम- Vol. xviII. 167