पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७२

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युगप-युगान्तर एक पर्वतका नाम। ४ हरिवंशके अनुसार तूणिके पुत्र | युगलाख्य (सं० पु०) युगलमिव आख्या यस्य । १ और सात्यकिके पौत्रका नाम । वरवृक्ष, ववूलका पेड़। (त्रि०) २ युग्मनायक, युग्म- नामका । युगप (संपु०) गन्धर्व । युगपत्र (सं० पु०) युगं पत्रमस्य । १ कोविदार, कच- युगांशक (संपु०) युगस्य अंशकः क्षुद्रांश इति । १ नार। २ युग्मपर्ण वृक्षमात्र, वह वृक्ष जिसमें दो दो वत्सर, वर्ण। (वि०) २ युगका विभाजक । पत्तियां आमने सामने निकलती हैं । ३ पहाड़ी आव- | युगाक्षिगन्धा ( स० स्त्री०) वृद्धदारकलता, विधारा । नूस। युगादि (स० पु०) १ सृष्टिका प्रारम्भ। (त्रि०)२ युगपत्रिका ( स० स्त्री०) युग पत्रमस्याः, कप-टाप् | युग आरम्भका, पुराना। . अकारस्येत्वं । शिशपावृक्ष, शीशमका पेड़। युगादिकृत् (सपु०) शिव । युगपद् (सं० अव्य० ) यु गमिव पद्यने पद-क्विप् । एक- युगादिजिन (स० पु० ) युगके पहले जिस जिनने जन्म- कालीन, एक ही समयमें। ग्रहण किया है, अपभ.। युगपार्श्वग (सं० पु०) युगस्य पार्श्व गच्छतीति गम- | युगादिजिन श्री-ऋषभदेवका एक नाम । डा अभ्यासार्थ लाङ्गलपार्शवद्ध गो। पावद्ध गो। युगादीश (संपु०) ऋषभदेव । युगवाहु (स' त्रि०) जिसके हाथ वहुत लम्बे हों. दीर्घ- | युगाद्या ( स० स्त्रो० ) युगस्य आद्या आदिभूता । युगा. वाहु। रम्भतिथि, जिस तिथिमें प्रथम युगारम्भ हुआ था, उसी- गुगमात्र (सली०) युगं मात्रा यस्य । युगपरिमाण, | को यु गाद्या कहते हैं। चार हाथ परिमाण। ____ वैशाखमासकी शुक्ला तृतीयामें सत्ययुग प्रवर्तित युगल (स' क्ली०) युज्यते परस्परं संगच्छत इति युज हुआ था, अतएव वह तिथि युगाद्या है। इसी प्रकार 'वृषादिभ्यः कलच' न्यडकादित्वात् कुत्वं । यग्म, जोड़ा। कार्तिकमासकी शक्का नवमीमे वेताय ग, भाद्रमासकी युगल-भाषाके एक कवि । इनका जन्म संवत् १७५५ कृष्णा त्रयोदशीमें द्वापरय ग और पौषमासको पूर्णिमा में हुआ था। इनके बनाये हुए पद अति अनूठे और तिथिमे कलियुग प्रवर्तित हुआ। इस लिये ये सव ललित हैं। युगप्रवर्तिका तिथि युगाद्या है। इस तिथिको तिथिकृत्य युगलक (स' क्लो०) युग्मक, वह कुलक या गद्य जिसमें विषयमे तिथियुग्मता नहीं है। जिस दिन इस तिथिमें दो श्लोकों वा पद्योंका एक साथ मिल कर अन्वय हो । रवि उदय होंगे, वही दिन तिथिकृत्य होगा। यह तिथि युगलकिशोरभट्ट-महाराज कैथलके रहनेवाले और भाषा- अनन्त पुण्यजनक है। इसमें स्नान, दान और श्राद्धादि- के कवि । इनका जन्म सं० १७६५ में हुआ था। ये का अनुष्ठान करनेसे अनन्तफल प्राप्त होता है। पापादि- महम्मदशाह बादशाहके बड़े मुसाहियोंमें थे। सम्वत् का अनुष्ठान भी इस तिथिमें फलदायक है। १८०३में इन्होंने अलंकारका प्रन्थ बनाया था। इसमें युगाध्यक्ष (सं० पु०) युगल्य अध्यक्षः । १ प्रजापति, १६ अलंकारोंके लक्षण तथा उनके उदाहरण बतलाये गये हैं। युगाधिपति । २शिव। युगराज-एक भाषा-कवि । इनकी कविता बहुत हो सरस युगान्त (सं० पु०) युगानामन्तो यत, युगानामन्तो वा। तथा मनोहर होती है। १ प्रलय। प्रलयमे युगका ध्वंस होता है इसलिये उसे युगलप्रसाद चौवे-भाषाके एक कवि । इन्होंने दोहा युगान्त कहते हैं। २ युगशेष, युगका अन्तिम समय । वली नामक सरस और मुन्दर पुस्तक वनाई है। युगान्तक (सं० पु० ) युगान्त एव खार्थे कन् । १ प्रलय- युगलमन्त्र (सं० पु०) युगलाख्या मन्तः शाकपार्थिव काल । २ प्रलय। वत् समासः। लक्ष्मीनारायणमन्त्र । युगान्तर (सं० क्लो०) अन्यत् युगं युगान्तरं ।१ दूसरा युग। (पाद्मोक्षरखं० २५ २०) २ दूसरा समय, और जमाना। Vol. XVIII, 168