पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७६

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६७३ सेनाको अगुआ बनाना चाहिये। अपना दुर्ग यदि एक | वेसमराङ्गणमें जा कर आत्मीयका विनाश न करें और द्वारयुक्त और सलिलसम्पन्न हो, तो शत्रुको उस पर न युद्ध छोड़ कर भाग जावें । जो वीरपुरुष हैं, वे आत्म- 'चढ़ाई करनेका साहस नहीं होगा। शून्यप्रदेशकी, पक्षीय सेनाओंकी रक्षा कर अन्तमें विपक्षियोंका विनाश 'अपेक्षा वनको निकटस्थ भूमि सैन्य संस्थापनका उपयुक्त करते हैं। रणमें भाग जानेसे अर्थनाश, मृत्यु और स्थान है। भारी अपयश होता है। अतएव हम लोगोंको उचित है, सप्तर्षिगणको पश्चाद्भागमें रख कर यदि स्थिर कि निरपेछभावमें युद्धस्थल जा कर चाहे जयलाभ कर चित्तसे युद्ध किया जाय, तो दुर्जय शव को भी पराजय चाहे विपक्षियों के हाथ प्राण पारत्याग कर सदति लाम किया जा सकता है। युद्धजयमें शुक्रको अपेक्षा सूर्य करें। और सूर्यको अपेक्षा वायुको अनुकूलता श्रेष्ठ मानी रोजा वा सेनापति इस प्रकार सेनाओंको उत्साह गई है। प्रदान कर युद्ध में प्रवृत्त होवें । युद्धकालमें खगचर्मधारी संग्रामनिपुण वीर जल कीचड़से रहित कंकर पत्थर- पदाति सेनाओंको आगे, शकटारोही लेमाओंको पीछे से शून्य प्रदेश धुड़सवारोंके जलहीन काशयुक्त प्रदेश और घोचौ अन्यान्य वीरोंको सनिवेशित करना कर्तव्य रथियोंके छोटे छोटे पौधोंसे युक्त प्रदेश गजारोहियोंके है। इस समय जो आगे रहेंगे, उन्हें शवविनाशके लिये • तथा पर्वत, उपवन और वेणुवेबसमाकुल बहुदुर्ग सम- पदाविकोंकी रक्षा करनी होगी। मनखिगण सबसे पहले 'न्वित प्रदेश पदातिकोवो संग्रामोपयोगी वतलाते हैं। यदि युद्ध में प्रवृत्त होवे तो अन्यान्य सैन्योंको पीछे पीछे सेनाओंमें पदातिको संख्या अधिक होनेसे वह सुदृढ़ जाकर उनकी रक्षा करनी चाहिये। भोरोंको उत्साह समझा जाता है। निर्मल दिनमें काफी फौज ले कर देने के लिये उनके समीप रहना वोरोंका कर्तव्य है। युद्ध करना उचित है। वर्षाकालमें यदि युद्ध करनेको सेनापति समरप्रवृत्त अल्पसंख्यक सेनाओंको चारों ओर इच्छा हो, तो सेनाओंमें दस्ती और पदाति सेनाको संख्या फैला कर युद्ध करे। अधिक सेनाके साथ अल्पसैन्यका अधिक रखना आवश्यक है। जो व्यक्ति देशकालका | युद्ध उपस्थित होने पर सूचीमुखज्यूह वनाना आवश्यक - विचार कर इन सव नियमोंके अनुसार सुचारुपसे है। घोर संग्रामके समय सेनापति योद्धाओंको उत्साह • सैन्यसंयोजन करके उत्कृष्ट तिथिनक्षत्रमें युद्धयात्रा करता| देनेके लिये कहें, 'शनु पक्षके लोग भाग रहे है और हम है उसकी हमेशा जोत होती है। युद्धकालमें प्रसुप्त, लोगोंका मित्र-दल पहुंच गया। तुमलोग निभीक हो कर तृषित, परिश्रान्त, प्रचलित, खाने पीने में आसक्त, निहत, उन पर टूट पड़ो।' सेनाओंको उत्साह देने के लिये शङ्ख दुरी तरह घायल, निवारित, विश्वस्त, कार्यान्तरव्यापृत, वेणु, शृङ्ग, भेरी, मृदङ्ग और पनव आदि वाद्यध्वनिके तापित, वहिर्गत, तृणादिका आहरणकर्ता, शिविरमें | साथ सिंहनाद करना चाहिये। युद्धस्थलमें कुल और फ्लोयमान और राजा वा अमात्यकी परिचर्यामे निरत | देशाचार-प्रचलित शस्त्र और वाहनका व्यवहार करना अध्यक्षों पर आघात करना उचित नहीं। उचित है। वीर पुरुषोंको चाहिये, कि इसी नियमके भनु राजाको उचित है, कि वे युद्ध शुरू होनेके पहले सार युद्ध में प्रवृत्त हो। , प्रधानानुसार एक एक कर सभी योद्धाओंको बुलावे और वर्मधारी न हो कर क्षत्रियके साथ युद्ध में प्रवृत्त उनसे कहें कि, 'अभी जयलाभार्थ संग्रामस्थालमें शाओ। होना और एकत्र हो कर अनेक क्षत्रियोंके साथ युद्ध और शपथ करो, कि वहां कोई भी एक दूसरेसे जुदान करना राजाको उचित नहीं है। प्रतिद्वन्द्वी वर्म पहन महो। हमलोगोंमें जो कायर हैं अथवा जो लिष्ठुर | कर यदि युद्धस्थलमें आवे तो राजाको भी धर्म पहनना - कार्यका अनुष्ठान कर आत्मपक्षीय प्रधान व्यक्तिका वध होगा और यदि वह सेनाओं के साथ आवे, तो राजाको .. करें, उन्हें अभी उचित है, कि वे युद्धमें सम्मिलित न भी सेनाको सहायता ले कर उसके साथ युद्ध करना · होवें। यदि वे सम्मिलित हो, तो उन्हें उचित है, कि होगा.। शत्रु यदि कपटताका आश्रय कर युद्ध करे, तो Vol. XVIII, 169