पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८०

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युद्ध ६७७ रखें। राजा युद्धक्षेत्रमें उसी हालतमै रह सकते हैं, जब। रहें । गजके द्वारा संहतका भेद, तथा प्राचार, तोरण और वे सेनापति हो। यदि सेनापति न हों, तो उन्हें एक अट्टालिकादि भेद करेंगे । बासमतल भूमिमें पदाति कोस दूर रहना तथा सुदृढ़ रक्षिवर्गसे परिवृत्त हो सेनाओं- सैन्य द्वारा, समतल भूमिमें रथिसैन्य द्वारा और जल- को उत्साह देना चाहिये । युद्धकालमें र्याद प्रधान सेना- कीचड़से युक्त स्थानमें गजसैन्य द्वारा युद्ध करना पति भाग जाय, तो किसीको युद्धक्षेत्रमें ठहरना उत्रित | कर्त्तया है। नहीं। सभीको आत्मरक्षार्थ भाग जाना चाहिये। । पूर्वोक्तरूपसे व्यूहरचना करके सूर्यदेवको पश्चाद्भाग. व्यूहके मध्य सैन्यसंचालनका नियम इस प्रकार मे रख कर युद्धारम्भ करना होता है। इस समय प्रहगण लिखा है-सेनापति योद्धाओंको एक साथ न करें और तथा वायुके अनुकूल होनेसे युद्ध प्रायः जय.हुआ न उन्हें अकेला हो रखें। सेनाओंको इस प्रकार सजावे | करतो है। युद्धके समय प्रधान प्रधान सैनिकोंके नाम जिससे अन चलानेमे कोई रुकावट न हो, और अस्त्र और गोत्रका उल्लेख कर उन्हें उत्साहित और उत्तेजित अनसे टकर न खाये। जव शव सैन्य वा व्यूह भेद करना आवश्यक है। ( अग्निपु० रणदीक्षाप्र०) . करनेकी इच्छा होगी, तब इकट्ठे और स्रोतको तरह हो । ___ युद्धक्षेत्रमें व्यूहस्थ सेना और सेनापतियोंको किस कर भेद करना होगा। तथा शत्रुसैन्य जव आक्रमण प्रकार सञ्चरण वा किस प्रकार युद्ध करना चाहिये, शुक- करनेकी चेष्टा करेगो, उस समय एकत हो कर रक्षा नोतिमे उसका विषय यों लिखा है -सेनाओंके समवेत .फरनी होगी। होनेसे व्य हरचनाके लिये वाद्य वा सङ्केतध्वनि करनी ऐसे नियमसे व्यूह वनाना चाहिये, कि इच्छा करते होतो है। वह ध्वनि सुन कर सेनाको पूर्व शिक्षानुसार ही उस व्यूहको उसो समय तोड़ फोड़ कर फिर छोटे ध्यू हाकारमे हो जाना चाहिये। यह वाद्य वा सङ्केत छोटे अनेक व्यूह बनाये जा सकें। हस्तिसैन्यके चार | ध्वनि सुन कर कोई यह पतो न लगा सके, कि किसी पादरक्षक रथके लिये चार अश्वसैन्य तथा चार वर्मधारी | प्रकारका व्यूह रचा गया है । यह रहस्य केवल अपनी हो और इनकी रक्षाके लिये चार धनुर्धारी नियुक्त करता सेनाको मालूम रहेगा। आवश्यक है। ___राजा वा सेनापति अनेक प्रकारको व्यह-रचना . रणमुखमें चर्मी अर्थात् ढालधारी सेना रखनी होगो। करेंगे। जहां जैसी जरूरत देखें, वहां हाथी, घोड़े इनके पश्चाद्भागमें धनुर्धारी, धनुर्धारोके पृष्टदेशमें अश्या और पदाति सेनाओंका वैसा हो ध्यूह बनावे। राजा रोही, अश्वारोहीके पृष्ठमें रथारोही और रथारोहीके | वा राजप्रतिनिधिको उचित है, कि वह व्यू हसत जोर- पश्चाद्भागमें हस्तिसैन्य रहेगी। से सुनावें। व्यूहके वाम वा दक्षिणभागमें तथा कमी इन सव सेनाओंको बड़ो होशियारीसे अपने अपने कमो मध्यस्थलमें रह कर ऐसे जोरसे साङ्कोतिक शब्द कर्त्तव्यको पालन करना चाहिये । जो शर, उत्साही और करें जिससे घ्यू हस्थ सभी सैनिक सुन जाय। . निर्भीक हैं उन्हीं को सम्मुखभागमें रखना उचित है। सैनिक यह मतध्वनि सुन कर शिक्षाके समय , अनेक भीरुके एकत्र होनेसे व्यूह टूट जाता है, इसलिये उन्होंने जैसा उपदेश पाया था, तदनुसार कार्य करें। उन्हें कभी भी सामने न रखे। युद्धस्थलमें यदि कोई सम्योलन. प्रसरण, प्रभमण. आकञ्चन. यान. प्रयाण. अप. ध्यकि हत या आहत हो जाय, तो उसे फौरन वहांसे | यान, पर्यायकमग्ने सान्मुस्थ, समुत्थान, लुण्ठन, अष्ट- हटा देना होगा। चर्मधारो योद्धाका काम है शव सैन्य- दलाकारमें अवस्थान वा चक्राकारमें वेष्टन, सूचीतुल्य, को भेद करना; अपनी सेनाको बचाना तथा एक साथ शकटाकार, अद्धचन्द्राकार, पृथकमवन, थोड़े थोड़े मिली हुई सेनाको अलग अलग करना । धनुर्धारी योद्धा पर्यायक्रमसे पंक्तिप्रवेश मिन्न प्रकारमें अस्त्रशस्त्रादिका

शत्रु सोको विमुख तथा जिससे वे आगे न बढ़ सके, धारण, संधान, लक्ष्यभेद,. अनक्षेप, शस्त्रनिपात, शीघ्र-

पैसा हो उपाय करें। रथी शव ओंको हमेशा भय दिखाते । सन्धान, शीव अनादि ग्रहण, शोघ्र आत्मरक्षा, मधवा Vol. x11, 170