पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७०६

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७०३ यूसुफौं-यूसुफ शेख अपनेको अलेकसन्दरके वंशधर बतलाते थे। शायद वे के प्रति विश्वास और आश्रितके प्रति दया इनका एक लोग यवन-राजवंशकी कोई शाखा होंगे। महत् गुण है। केवल खाटक आदि अन्यान्य अफगान इन्होंने पहले स्वात और वजावर, पीछे काबुल और जातियों हीके साथ नहीं, वरन् १८४६ ई०के विजयी सिन्धुनदके मध्यवत्तीं प्रदेशको जीता था। अभी लौदे सिख जातिके विरुद्ध युद्ध करके इन्होंने अपने युद्धकौशल सिन्धु वा काबुल नदीके पूर्णवत्तीं सभी भूभागों पर और दुद्धर्षताका यथेष्ट परिचय दिया था। इनका अधिकार है। सम्राट् वावर शाहके समय यद्यपि यूसुफ महम्मद खाँ सम्राट अकबर शाहका वैमात भाई इनके आये थोड़े ही दिन हुआ था, तोभी उसो थोड़े | और पांच हजारी मनसबदार । ६७३ हिमें अधिक शराव समयके अन्दर इन्होंने अपने वीर्यवलसे एक विस्तीर्ण पी लेनेसे उसकी मृत्यु हुई थी। उपनिवेश वसा लिया था। १८५२ ई०में सानी-रानीजै यूसुफ महम्मद खाँ-तारीख महम्मद-शाहो नामक इति- शाखाके यूसुफजैगण अङ्गरेजो सीमाको लांघ कर उपद्रव) वृत्तके प्रणेता। इन्होंने दिल्लीश्वर महम्मदशाहके राजत्व- मचाने लगे । इस समय सर कोलिन काम्बेल एक दल | कालकी घटनाका वर्णन इस प्रन्थमे लिखा है। सेना ले कर उन लोगोंके विरुद्ध रवाना हुए। रानीजने | यूसुफ विन् महम्मद-कापदात् उल्' अखवर नामक अपनी हार कवूल को और फिर वे कभी भी अङ्गरेजोंके | हकीमी ग्रन्थके रचयिता। विरुद्ध खड़े न हुए । रानीजै अगरेजी अधिकारके वाहर यूसुफ शाह पूरवी-बंगालके एक पाठान शासनकर्त्ता और सानी और खात प्रवाहित जिलेमें वास करते हैं। बर्वाक शाहके पुत्र । १४७४ ईमें पिताके मरने पर ये यूसुफजै प्रान्तरमें जो विस्तीर्ण ध्वंसावशेष पडे हैं राजगदी पर बैठे। १९८२ ई० में उनकी मृत्यु हुई। उनमेंसे अधिकांश आज भी उनाड़ा नहीं गया है। यूसुफ शेख-मुलतानके प्रथम मुसलमान राजा। मह- वहां एक समय वौद्धविहारादि विद्यमान थे । सावलधर, मद घोरीके आक्रमणसे ले कर १४४० ई० तक मुलतान शादी बहलोल और जमालगुड़ीकी विविध प्राचीन दिल्ली सरकारके शासनाधीन रहा। यूसुफ इस समय कोर्शि और प्रस्तर-प्रतिमूर्तिसे जान पड़ता है, कि यहां } मुलतानके शासनकर्ता थे। सामरिक राष्ट्रविप्लवमें उन्होंने प्राचीन कालमें भारतीय भास्करोने यवनराजाओंके भी दूसरे दूसरे शासनकर्ताओंको तरह स्वाधीनता पानेके अधीन रह कर ये सब वौद्धमूर्ति बनाई थीं। आज भी लिये अपनेको मुलतानका राजा कह कर घोषित किया। स्वात, वजावर, चुनेर, नवाग्राम, खड़की पाजा आदि | मुलतान तथा उथवासी मनुष्योंने यूसुफके शान, विद्या स्थानों में अतीत कीर्तिको असंख्य निमजित स्मृति | और महानुभवता देख उन्हें अपना राजा मान लिया। फैली हुई है। इन सब कीर्शियोंको देखनेसे प्राचीन यूसुफ कोरेशजातीय अरव थे। समृद्धिका पूरा परिचय पाया जाता है। दुर्भाग्यको सिंहासन पर बैठने के दो वर्ष वीतते न वीतते यूसुफ विषय है, कि इस्लाम धर्गका अभ्युदय होनेसे वे सब अपने लंगाजातीय ससुर राय सेहरा द्वारा पकड़े गये तहस नहस हो गये। गजनीपति महमूदके हायसे हो और वन्दी हो कर दिल्ली भेज दिये गये। उसके बाद इसका अन्तिम ध्वंस हुआ था। राय सेहरा जामाताके स्थान पर कुतवउद्दीन महमूद युसुफजै अपनेको ही प्रकृत अफगान और वनि-इस लंगा नामसे राजसिंहासन पर बैठे थे। आईन-इ-अक- रायलके वंशधर बतलाते हैं। इनके नामका अर्थ यूसुफ वरी नामक मुसलमान इतिहासमें यमुफके सात वर्ष (Joseph)-का वंशधर वा युसुफजात हैं तथा इनके देश-1 राजस्वकी कहानी लिखी है। के कितने स्थानवाचक और जातिवाचक नाम वाइविल | यूसुफ शेख-गुजरातवासी एक मुसलमान-ग्रन्थकार । प्रत्यके नामानुसार ही कल्पित देखे जाते हैं। इन्होंने तज् किरात् उल आकिरा नामक ग्रन्थ लिखा। ये लोग प्रतिहिंसा-प्रिय, परश्रोकातर, अर्थलोलुप, ये (सं० सर्व० ) १ यह देखो। २ यहका बहुवचन, यह दुद्धर्ष, स्वाधीनताभिलाषी और रणकुशल होते है । वंधु- । सव ।