पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४५

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७४२ योगिनी-योगिया पूर्वक सब काम करे। वादमें इस विद्याका ध्यान करना | दिन और रात मूलमः .प करना होगा। . देवी भोरमें होगा। ध्यान यथा- साधकके पास जातो और अभिलषित वर देती हैं। देव, "त्रैलोक्यमोहिनी गौरी विचित्राम्बरधारिणी। दानव, गन्धर्व, विद्याधर, यक्ष या राक्षसकन्या ये सब विचित्रालङ्क तां रम्यां नर्तकीवेशधारिणीम् ॥" साधकको चर्वचोष्यादि नाना प्रकार द्रव्य ला देती हैं। देवी साधकको प्रतिदिन सौ सुवर्ण दान करती हैं। देवी . इस तरह ध्यान कर मूलमन्त्रसे पूजा करनी होगी। 'ओं हो नरिनि स्वाहा' देवीका यह मूलमन्त्र प्रतिदिन इस प्रकार वर दे कर अपने घर चली जाती हैं। इस सिद्धिके वलसे साधक चिरजीवी, निरोग, सधन, हजार धार जप करना होता है। इस भांति एक मास सुन्दर तथा सवोंके अधिपति होता है । (भूतडामर) तक पूजो और जप कर शेष दिन में बड़ी पूजा करना आव- ___ जो सव व्यक्ति सिद्ध हुए हैं उनके उपदेशसे यह सव श्यक है। इस प्रकार जपका पूजा करते रहने पर आधो रात- को देवी साधकको पहले थोड़ा भय दिखाती हैं। इससे साधन करने होते हैं। कारण गुरुके उपदेशके सिवा कोई कार्य हो सिद्ध नहीं होता। साधकके खुद यह सब साधक भीत न हो कर विधिमत जप करता रहे। पीछे। काम करनेसे वह सिद्ध नहीं होता। देवी उसके पास आ कर उसे वरग्रहण करनेका हुक्म __ वृहद्भुतडामरमें इसके अलावा चौंसठ योगिनी- देती हैं। साधक देवीके इस वचनको सुन कर उन्हें माता साधनका विषय उल्लिखित है। विस्तार हो जानेके भय- भगिनी या भार्या कह कर सम्वोधन करे । साधक देवाका से उसका विषय वर्णित नहीं हुआ। चौसठ योगिनी जिस तरह सम्वोधन करेगा, देवी भी उसी तरह काम सात करोड़ योगिनियोंके मध्य मुख्य है। कर साधकको सन्तुष्ट करती हैं। मातृसम्बोधन करनेसे ____ इन सव योगिनियोंका याविधान चक्रधारण कर देवी उसे पुत्रवत् पालन करती तथा प्रतिदिन सौ सुवर्ण साधना करनी होती है। इस चक्रधारणके सिवा सिद्ध और अनेक प्रकारके अभिलषित द्रध्य प्रदान करती हैं। नहीं होता। भगिनी सम्बोधन करने पर देवकन्या, नागकन्या, या राज- "इदानीं श्रातुमिच्छामि योगिनीचक्रमुत्तमम् । कन्या ला देती हैं। इससे साधक भूत, भविष्यत् और वर्त- येन विना न सिध्यन्ति कलौ भृतेन्द्रनायिका ॥" मान संभी विषय जान सकता है । भार्या सम्बोधन (वृहद्भूतडा० ) करनेसे विपुल-धन और सव अभिलाष पूरण करती हैं। योगिनीतन्त्रमें भी इसके साधन आदिका विषय मैथनप्रिया योगिनीसोधन- वर्णित है। भोजपत्र पर कुकुम द्वारा देवीको प्रतिमूर्ति अकित कर, कि योगिनोचक ( सं० क्ली० ) १ तान्त्रिकोंका वह चक्र अष्टदलपद्म अंकित करे। उसके बाद न्यासादि करके जिससे वे योगिनियोंका साधन करते हैं। (प्रभासख०) इस प्रतिमूर्तिकी प्राणप्रतिष्ठा कर ध्यान करे। २ ज्योतिषीका वह चक्र जिससे वह इस वातका पता ध्यान यथा- लगाता है, कि योगिनो किस दिशामें है। "शुद्धस्फटिकसङ्काशां नानारत्नविभूषितां । योगिनोपुर (सं० क्ली० ) विशालके अन्तर्गत एक नगरः। मखरिहारकेयूररत्नकुण्डलमण्डिताम् ॥" यन्त्रराजके मतसे २८/३६ अक्षांशमें यह अवस्थित है। इस प्रकार ध्यान तथा प्रतिदिन एक सहस्र करके मूल | योगिपत्नी (सं० स्त्रो०) योगीकी त्रो। मन्त्र जप करना होगा। मूलमन्त्र "ओं ह्रीं गजानुरा- योगिपुर-गयाके अन्तर्गत फल्गु नदीके तट पर अवस्थित गिनि मैथुनप्रिये स्वाहा" यह साधना कृष्णा प्रतिपदसे | एक नगर। (भ० ब्रह्मख० ३६।४) शुरू करनी होती है। इससे प्रतिदिन तीन सन्ध्यामें योगिभट्ट-पञ्चांगतत्व नामक ज्योतिशास्त्र के प्रणेता। पूजा करनी चाहिये। पोछे पूर्णिमा तिथिमें गन्धादि योगिमातृ (स' स्त्री०) योगीको माता। द्वारा यथाविधानसे पूजा करे। इस तरह पूजा कर समूचा योगिया (हिं०-पु०) १ संपूर्ण जातिका एक राग। जिसमें .