पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/९७

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मुन्थहा-मुन्था शिरोमणिके एक टोकाकार । २ रङ्गनाथके पुत्र विश्वः । लाम, धर्मार्थहानि और सर्वदा सभीसे विवाद हुआ' रूपको दोक्षाका दूसरा नाम || करता है। मुन्धहा (सं० स्त्री०) मुन्था । वर्षप्रवेशकालमे जो कोई भाव पापप्रहसे शुतदृष्टि मुन्था ( सं० स्त्री०) नीलकण्ठोक्त ताजकप्रसिद्ध इन्थिहा द्वारा देखा जायगा, उस भावमें यदि मुन्था रहे, तो उस शब्दार्थ । ज्योतिषमें जिस प्रकार जातव्यक्तिके राशि- भावके कथित शुभफलों का नाश और अशुभ फलोंको चक्रमें लग्नादि स्थिर कर फलका निरूपण करना होता वृद्धि होती है। शुभग्रह और स्वामिमहके योग तथा है, उसी प्रकार नीलकण्ठोक्त ताजकमें वर्ष-प्रवेश दृष्टि और इत्थशाल योग द्वारा मुन्थाका फलाफल करके उसका लग्न और मुन्था स्थिर कर फलाफल जानना होगा। वलविशिष्ट मुन्था जिस भाव में होगी निर्णय किया जाता है । मुन्था लग्नसे हो गणना की उस भावका शुभफल होता है। इसका विपरीत होनेसे जातो है। वृहस्पति जिस तरह प्रतिवर्ष एक एक राशि- । अर्थात् पापयुक्त, पापद्रुष्ट और पापमुख शिलादियोगमें से अन्य राशिमें जोता है, उसी प्रकार मुन्था भी एक एक। अशुभ होता है। जन्मलग्न का चौथा, छा, सातवां, राशि हो कर जाती है। इसकी वाई' ओरसे गणना आठवां वा बारहवां हो कर वर्षप्रवेशकालमें उसी प्रकार को जाती है। जैसे, एक व्यक्तिका मेष लग्नमें जन्म हुआ। मुन्था यदि पापयुक्त, पापद्दष्ट अथवा पापग्रहके साथ है, उसके दूसरे वर्ष वृपराशि मुन्था होगी, तीसरे वर्ष इत्थगाल वा इसराफादि योग रहे, तो भावका नाश मिथुन, चौथे वर्ष कर्कट इत्यादि क्रमते मुन्थाका निरू होता है और यदि शुभग्रह वा खामिग्रहसे दृष्ट हो, तो पण करना होगा। मुन्था स्थिर करके पीछे उसीके शुभफल होगा। जन्मकाल और वर्षप्रवेशकालमें अशुभ अनुसार उसका फल निरूपण करना होता है। भावस्थ मुन्था यदि जन्मलग्नसे भी विरुद्ध स्थानस्थ मुन्थाफल । -जिस वर्ष लग्नमें मुन्था होतो है उस तथा पापयुक वा पापदृष्ट हो, तो उस भावफलका नाश वर्ष शनुभय, मान, पुत्र, अश्वलाभ और प्रतापवृद्धि आदि होता है तथा दोनों लग्नके शुभ स्थानस्थ होनेसे उस शुभफल होते हैं। धनभावमें मुन्था होनेसे उत्साहवृद्धि, भावका शुभफल होगा। वर्षप्रवेशकालमें लग्नसे अशुभ यश, सम्मान, राजाको कृपासे अर्थपाप्ति, मिष्टान्तभोजन, भावस्थ मुन्था यदि जन्मलग्नसे भी विरुद्ध स्थानस्थ वल, पुष्टि और सुख होता है। तृतीयभावमें स्त्रोय परा तथा पापयुक्त वा पापसे देखी जाती हो तो उस भावफल. कम द्वारा वित्त और सुखलाभ आदि शुभफल होंगे।। का नाश होता है। चतुर्थभावमें शरीरपीड़ा, शत्रुक्षय, आपसमें विवाद आदि जन्मकालके लग्नसे चतुर्थ स्थानस्थ मुन्था यदि अशुभफल ; पञ्चमभावमें सद्वन्धुलाभ, सौख्यलाभ, | शुभग्रहयुक्त हो, तो पितृष्यलाभ और यदि पापयुक्त हो, सौख्य और पुत्रलाभ आदि शुभफल ; षष्ठभावमें शरीर- तो राजभय और अति कष्ट होता है। इसी प्रकार दूसरे को-कृशता, शत्रुवृद्धि, रोग, चोर, अग्नि वा राजभय, कार्य भावका भी फल जानना चाहिये । वर्षप्रवेशकालके और अर्थनाश आदि अशुभ ; सप्तम भावमें स्त्री, पुन लग्नसे जिस भावमें स्वामिग्रह वा शुभग्रहयुक्त होगा उस और वन्धुनाश, उत्साहभङ्ग, धन और धर्मनष्ट आदि जन्मलग्नसे जो भावगत होगा वह भाव चिन्तित फलका अशुभ ; अष्टम भावमें शत्रु और तस्करसे भय, धर्म और शुभ होगा, पापयुक्त होनेसे उस फलका नाश होता है। अर्थनाश आदि नाना प्रकार के अमङ्गल ; नवम भावमे | परन्तु यदि वर्षाधिपति वलवान् हो कर शुभफलदायक खामित्वप्राप्ति, अर्थागम, धर्मोत्सव आदि शुभफल ; हों, तो मुन्या-जनित अशुभ फल नहीं होगा। दशम भावमें राजप्रासाद, परोपकार और सत्कार्यसिद्धि; सूर्यके घरमें अर्थात् सिहराशिमें मुन्या होनेसे अथवा • एकादश भावमें विलास. सौभाग्य, नीरोगिता आदि | सूर्य और मुन्थाकं एक घर में रहनेसे राज्य, राजसझम, शुभफलप्राप्ति तथा द्वादशभावमे मुन्था होनेसे अधिक गुणको उत्कर्षता और स्थानलाभ होता है तथा मुस्था व्यय, दुर्जनका संसर्ग, शरीरपोड़ा, अपने विक्रमसे अर्थ: । पर सूर्यकी दृष्टि रहनेसे भी ऐसा ही फल होगा। चन्द्रमाके